नई दिल्ली: आचार्य विनोबा भावे को देश के एक महान समाजसुधारक के रूप में जाना जाता है. विनोबा भावे की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए आज हम उनके जीवन से जुड़े कुछ रोचक पहलुओं के बारे में जानेंगे. 


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प्रारंभिक जीवन
भारत रत्न आचार्य विनोबा भावे का जन्म महाराष्ट्र के कोलाबा जिले के गागोड गांव में 11 सितंबर 1895 को हुआ था. उनकी मां धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं. अपनी मां की वजह से ही उनका रुझान अध्यात्म की ओर हुआ. अपने बाल्यकाल में ही विनोबा जी ने भागवत गीता का अध्ययन कर लिया था. अध्यात्म में मन रमने के कारण उनके मन में समाज के लिए कुछ कर गुजरने की इच्छा पनपने लगी थी.


गांधी जी के विचारों ने किया प्रभावित
विनोबा भावे को राष्ट्रपति महात्मा गांधी के विचारों ने काफी प्रभावित किया था. उन्हीं से प्रेरणा लेकर वे देश के स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े. उन्होंने असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया. जब अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजा तो वहां भी समय का सदुपयोग कर उन्होंने कैदियों को मराठी भाषा में भागवद गीता का अध्ययन कराया. सन् 1940 तक विनोबा भावे को बहुत कम लोग जानते थे. अक्टूबर 1940 में गांधी जी ने उनका परिचय आम जनमानस को कराया. साथ ही गांधी जी ने उन्हें देश का पहला सत्याग्रही का संबोधन भी दिया.


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भूदान आंदोलन से किया क्रांतिकारी बदलाव


विनाबा भावे ने साल 1951 में आंध्र प्रदेश का दौरा किया. वहां उन्होंने गांवों में हरिजनों से मुलाकात की. हरिजनों ने विनोबा भावे से  एक अपील की. उनसे कहा कि वे अगर कुछ भूमि स्थानीय लोगों को उपलब्ध करा दें तो वो अपना घर-बार चला सकेंगे. इस पर विनोबा भावे ने वहां के जमींदारों से अपील करते हुए कहा कि वे अपने बड़े खेतों में से कुछ जमीन गरीबों और वंचितों को दान कर दें. उनकी इस अपील का बहुत व्यापक असर हुआ. यहीं से पूरे देश में भूदान आंदोलन की शुरुआत हुई. यह आंदोलन करीब 13 साल चला जिसमें विनोबा भावे ने देश भर में भ्रमण कर करीब 58741 किलोमीटर की यात्रा की. भूदान आंदोलन से करीब 44 लाख एकड़ भूमि बड़े किसानों ने गरीबों को दान की, जिससे इस आंदोलन को चहुंओर ख्याति मिली.


सत्याग्रही ने इमरजेंसी का किया था समर्थन!


साल 1974 में विनोबा ने एक साल के लिए मौन व्रत धारण किया था. 25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लागू हुई. ऐसे में जब एक दिन वसंत साठे जो बाद में देश के सूचना प्रसारण मंत्री रहे, विनोबा से मिलने उनके निवास स्थान पर गए. इस दौरान मौन व्रत के कारण विनोबा जी ने कुछ नहीं बोला. उन्होंने वसंत साठे को सिर्फ एक किताब दी, जिसका शीर्षक 'अनुशासन पर्व' था. यहां से जाने के बाद वसंत साठे ने मीडिया में ये खबर फैला दी कि विनोबा भावे ने इमरजेंसी को अनुशासन पर्व कहा है. जब विनोबा ने व्रत तोड़ा तो बताया कि अनुशासन पर्व से उनका तात्पर्य आचार्य जो सीख देंगे उसका विरोध अगर शासन करेगा तो उनके खिलाफ सत्याग्रह खड़ा होगा. आज भी इस भी विषय को लेकर लोगों में असहमति है कि क्या विनोबा ने इमरजेंसी का समर्थन किया था.


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इन पुरस्कारों से हुए सम्मानित
देश और समाज के लिए किए गए महान कार्यों के लिए सन् 1958 में उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया. सन् 1983 में मरणोपरांत उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा गया.


1982 में हुआ निधन
पूरे विश्व में देश का गौरव बढ़ाने वाले आचार्य विनोबा भावे नवंबर 1982 में गंभीर रूप से बीमार हुए. उन्होंने खाना और दवा का भी त्याग कर दिया था. वहीं, 15 नवंबर 1982 को देश के इस महान सपूत ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.


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