Sawan 2022: साल में तीन बार रंग बदलता है यह शिवलिंग, यहीं की थी कुबेर ने धनवर्षा
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Sawan 2022: साल में तीन बार रंग बदलता है यह शिवलिंग, यहीं की थी कुबेर ने धनवर्षा

Sawan 2022: भदोही स्थित तिलेश्वरनाथ मंदिर के शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान इसकी स्थापना की थी. दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन यहां भोलेनाथ के दर्शन के लिए आते हैं. 

फाइल फोटो.

भदोही: सावन का महीना शुरू हो चुका है. भारत में भगवान शिव के हजारों मंदिर हैं, जो किसी न किसी चमत्कार और रहस्यों के लिए प्रसिद्ध हैं. कई प्राचीन शिव मंदिर अनोखे और बेहद अदभुत हैं. उन्हीं में से एक यूपी के भदोही जिले (Bhadohi) का तिलेश्वरनाथ मंदिर (Tileshwarnath Temple) है. इस मंदिर का अपना अलग आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व है. यहां मौजूद शिवलिंग मौसम के साथ अपना रंग बदलता है. इतना ही नहीं बल्कि त्वचा का भी विसर्जन करता है. सावन के महीने में यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है. आज इस लेख में हम आपको इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा बताने जा रहे हैं. 

महाभारत काल से जुड़ी है मान्यता
यह अद्भुत शिवलिंग भदोही के गोपीगंज (Gopiganj) स्थित तिलेश्वरनाथ मंदिर का है. पौराणिक मान्यता है कि द्वापर युग के महाभारत काल में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान इस शिवलिंग की स्थापना की थी. तब से रंग बदलने वाला यह अनोखा शिवलिंग आस्था का केंद्र बना है. मान्यताओं के मुताबिक, इस शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा करते समय अर्जुन ने तीर चलाया था. जिसमें कुबेर ने सोने-चांदी की बारिश की थी. इसका उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है. 

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खुदाई में मिले थे सोने-चांदी के सिक्के 
वहीं, जब इस मंदिर का विशाल निर्माण कराने के लिए भक्तों ने खुदाई की थी, उस समय सोने-चांदी के सिक्के भी मिले थे. मान्यता है कि इस शिवलिंग पर जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. सावन के महीने में दूर-दूर से शिवभक्त यहां पूजा-अर्चना करने आते हैं. 

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दावा: साल में एक बार त्वचा का भी करता है विसर्जन
माना जाता है कि साल भर में यह शिवलिंग तीन बार अपना रंग बदलता है. यह गर्मियों में गेहुंआ, सर्दियों में भूरा और सावन में काले रंग का होता है. दावा है कि यह शिवलिंग साल में एक बार अपनी त्वचा का विसर्जन भी करता है. हालांकि, रंग बदलते तो सबको दिखता है लेकिन त्वचा को बदलते किसी को नहीं दिखता है. शिवलिंग की लंबाई 19 फीट से भी ज्यादा है. मंदिर परिसर में सैकड़ों वर्ष पुराना पीपल का पेड़ भी है. जहां श्रद्धालु दर्शन-पूजन के बाद पीपल पर काला धागा बांधकर मन्नत मांगते हैं. 

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क्यों पड़ा नाम तिलेश्वरनाथ?
मंदिर के पुजारी रमाकांत के मुताबिक, हर साल इस मंदिर का शिवलिंग तिल के समान बढ़ता है इसीलिए इसका नाम तिलेश्वरनाथ रखा गया है. पांडवों द्वारा निर्मित इस मंदिर के विषय में कहा जाता है कि सावन के दिनों में इस शिवलिंग पर जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक, दर्शन पूजन करने का अलग ही महत्व होता है. शिव भक्त सुख-समृद्धि के लिए इस प्राचीन मंदिर में पूजा करते हैं. मान्यता है कि भक्त सच्चे मन से जो भी मांगाते हैं, भोलेनाथ उसे पूरा करते हैं. सावन के पवित्र महीने में इस अनोखे शिव मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ होती है. दूर-दूर से दर्शनार्थी यहां दर्शन के लिए आते है.

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