Navratri 2022: मां ललिता देवी मंदिर में दर्शनमात्र से पूरी होती हैं मनोकामनाएं,नवरात्रि में लगता है श्रद्धालुओं का तांता
shardiya navratri 2022: नैमिषारण्य तीर्थ स्थित शक्ति पीठ ललिता देवी मंदिर में नवरात्रों को लेकर तैयारियां शुरू हो गयी हैं. शारदीय नवरात्र में नौ दिन देवी की आराधना और पूजन अर्चन से बीतेंगे. मंदिर में दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं.
राजकुमार दीक्षित/सीतापुर:विश्वप्रसिद्ध तीर्थ नैमिषारण्य तीर्थों की नगरी है. यहां स्थित आदिशक्ति ललिता देवी का अति प्राचीन मंदिर है. देवीभागवत पुराण के अनुसार जब राजा जन्मेजय ने व्यास जी से देवी के जाग्रत स्थानों के बारे में पूछा तो उन्होंने जिन 108 शक्तिपीठों का वर्णन किया था. उनमें नैमिष तीर्थ स्थित मां ललिता देवी का दरबार भी है,देवी भागवत में इस शक्ति को लिंगधारिणी कहा गया है.नवरात्र के दिनों में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता हैं.
माँ ललिता देवी पूरी करती हैं भक्तों की मनोकामनाएं
नैमिषारण्य तीर्थ स्थित शक्ति पीठ ललिता देवी मंदिर में नवरात्रों को लेकर तैयारियां शुरू हो गयी हैं. शारदीय नवरात्र में नौ दिन देवी की आराधना और पूजन अर्चन से बीतेंगे. नवरात्र के महापर्व के पहले दिन से ही सनातन धर्म का नववर्ष भी शुरू होगा. साधना के उद्देश्य से अतिविशिष्ट यह नौ दिन बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. नैमिषारण्य में नवरात्रि के नौ दिन अति विशिष्ट माने जाते हैं, इन दिनों मां ललिता देवी के दरबार में विभिन्न प्रदेशों से भक्त आकर दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं. नवरात्रि व्रत समापन पर सभी देवी भक्त करोड़ों वेदमंत्रों से देवी के हवन में आहुतियां देते हैं और अपने कल्याण की कामना करते हैं.
नैमिष महात्म्य के अनुसार जब भगवान ब्रम्हा द्वारा भेजा गया ब्रह्मनोमय चक्र पृथ्वी के साढ़े छ:पाताल भेद चुका था. तब देवों और ऋषियों की विनती पर मां ललिता ने ही उसे अपनी दाहिनी भुजा से उसको रोका था. तबसे इनका नाम चक्रधारिणी भी कहा जाता है.
मान्यता के अनुसार देवी भागवत के अनुसार, जब प्रजापति दक्ष ने यज्ञ आयोजन किया था. जिसमें सभी देवताओं एवं ऋषिगणों कॊ आमंत्रित किया मगर भगवान भोले शंकर कॊ नही बुलाया था जिससे माता सती अपने पति का अपमान देखकर क्रोधित हो पिता दक्ष के यज्ञ मे कूद गई थीं. तब शिव ने सती के वियोग में माता सती के शव कॊ लेकर घूमने लगे. जिससे भगवान विष्णु ने सती के वियोग कॊ भंग करने के लिये अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर कॊ एक सौ आठ टुकडों मे बांट दिया और यहां माता का ह्रदय अंग गिरा. जिससे मां ललिता देवी शक्तिपीठ के नाम से विख्यात हुईं.
पुराणों के अनुसार मुख्य रूप से जो दस महाविद्याओं का उल्लेख किया गया है. वह सभी मां ललिता का ही स्वरूप बतलाए गए . इस पौराणिक मंदिर की बनावट अपने आप में अद्भुत है. इसके चारों कोनों पर छोटे छोटे गुम्बद बने हुए हैं. मंदिर के अंदर लिंगधारिणी मां ललिता का श्री विग्रह है और पास में ही श्री ललितेश्वर महादेव का शिवलिंग स्थापित है. वहीं मन्दिर के मुख्य गर्भगृह में ऊपर दुर्गा और काली की मूर्तियां बनी हुई है. मंदिर की पूर्व की ओर पंचप्रयाग तीर्थ स्थापित है.