संतोष जायसवाल/चंदौली: दीपावली का त्योहार ज्यादा दूर नहीं है. हर तरफ खुशी का माहौल है. लोग दिवाली के लिए कैंडल, रंगोली, डेकोरेशन, झालर, आदि की शॉपिंग करने में लगे हैं. लेकिन, इसी बीच एक तबका ऐसा है, जिसके चेहरे पर मायूसी ही दिख रही है. हम बात कर रहे हैं मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हारों की, जो मेहनत से दीपक और खिलौने बनाते हैं और फिर आजीविका चलाने के लिए इन्हें बेचते हैं. एक तरफ कोरोना की मार, दूसरी तरफ कमरतोड़ महंगाई और तीसरी तरफ चाइनीज झालरों का दबदबा. इन तीनों ने मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हारों की खुशियों पर कुठाराघात किया है...


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झालर और रेडीमेड दीये कर रहे कुम्हारों का व्यापार खराब
दीपावली को लेकर लोगों के चेहरे पर मायूसी छाई हुई है. क्योंकि काफी प्रयास के बाद भी खरीदार नहीं मिल रहे हैं. एक समय था जब दीपावली पर मिट्टी के दीपक और खिलौनों की बड़ी डिमांड हुआ करती थी. लेकिन, जब से बाजार में चाइनीज झालर और रेडीमेड दिए आए हैं, तब से मिट्टी के दीपक बनाने वाले लोगों को परेशानी का सामना कर पड़ रहा है. इस तबके को यह उम्मीद थी कि इस दीपावली पर उनके घर में थोड़ी खुशियां लौटेंगे, अच्छी बिक्री होगी और घरवाले दीपावली खुशी-खुशी मनाएंगे. हालांकि, ऐसा होता नहीं दिख रहा. 


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कुम्हारों की आंखों में आए आंसू
एक तरफ महंगाई खून के आंसू रुला रही है. वहीं, अच्छी मिट्टी न मिल पाना भी एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रहा है. इन मिट्टी के खिलौने बनाने वालों के लिए खड़ी हो गई है. आलम यह है कि अपनी परेशानी बताते-बताते कुम्हारों के आंखों में आंसू तक आ गए. वहीं, लोग महंगाई के कारण भी परेशान हैं. उनको उचित मूल्य नहीं मिल रहा है और चाइनीज झालरों के कारण खरीदार भी कम हो गए हैं. धीरे-धीरे कुम्हार मिट्टी के दीये और खिलौने बनाने के इस पुश्तैनी काम को छोड़ कोई दूसरा काम अपनाने को मजबूर हो गए हैं. ताकि वह अपने परिजनों का पेट भर सकें. क्योंकि, इस महंगाई में अब मिट्टी के दीये और खिलौनों को बनाकर अब गुजारा होना संभव नहीं है.


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