UP Vidhan Sabha Chunav 2022: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) में रायबरेली की 6 विधानसभा सीटों में से सदर की सीट इस बार बेहद खास है. यहां पिछले तीन दशकों से एक ही परिवार का कब्जा है. यह वह सीट है जहां जीत की गारंटी कोई पार्टी की न होकर एक परिवार की होती रही है. यहां 3 लाख 64 हजार 8 सौ 64 वोटरों में 32 प्रतिशत दलित,30 प्रतिशत पिछड़े और 12 प्रतिशत मुसलमानों के साथ ही 26 प्रतिशत सामान्य वोटर हैं.


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रायबरेली कांग्रेस का गढ़ होने के बावजूद इस सीट की जीत पार्टी नहीं बल्कि परिवार विशेष की मोहताज है. यह परिवार है स्वर्गीय अखिलेश सिंह का. अखिलेश इस सीट पर कांग्रेस से लेकर पीस पार्टी जैसे बेनाम दल के साथ ही निर्दलीय ही लड़े तो भी जीत उन्ही की झोली में रही. 2017 में अखिलेश सिंह ने स्वास्थ्य कारणों के चलते यहां से चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन सीट उन्ही के परिवार में रही. अखिलेश सिंह की बेटी अदिति सिंह कांग्रेस से दावेदारी पेश की और जीत दर्ज कराई. इस तरह यह जीत भी किसी पार्टी की जगह अखिलेश के परिवार की ही रही.


अदिति सिंह के परिवार में 1989 रही है सदर विधासभा की सीट 
रायबरेली की सीट अदिति सिंह के परिवार के पास 1989 से रही है.  इनके ताऊ अशोक कुमार सिंह 1989 और 1991 में जनता दल से विधायक थे. फिर इनके पिता अखिलेश सिंह साल 1993 से 2012 तक लगातार पांच बार विधायक रहे. 1993 से 2002 तक वह कांग्रेस से जीतते रहे, लेकिन 2007 में निर्दलीय और 2012 में पीस पार्टी से वह जीते. लंबे अंतराल के बाद यह पहला मौका है जब अखिलेश सिंह जीवित नहीं हैं. पिछला चुनाव अदिति सिंह ने पिता अखिलेश के रहते लड़ा था.


हालांकि इस बार उनके भाजपा से लड़ने की उम्मीद है. पिता अखिलेश जीवित नहीं हैं और भाजपा के लिए यह सीट मुफीद नहीं है. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि इस बार भी यह सीट परिवार विशेष की झोली में जाएगी या टूटेगा तिलिस्म. हालांकि भाजपाई आश्वस्त हैं कि भले सदर सीट पर कमल न खिल सका हो, लेकिन इस बार परिवार का साथ मिला तो पार्टी भी यहां जीत का जश्न मनाएगी. उधर इस सीट का परिवार विशेष के पास रहने का कारण अखिलेश की छवि को बताते हैं.


जनता के लिए रॉबिनहुड  थे अखिलेश सिंह 
आम वोटर कहते हैं कि अखिलेश सिंह की छवि रॉबिनहुड की रही है. गरीब तबका अपनी परेशानी लेकर कोर्ट कचहरी की जगह अखिलेश के पास जाता था और इसे राहत भी मिलती थी. अखिलेश सिंह खुद भी भले साधन संपन्न लोगों के दरवाजे न जाते हो, लेकिन गरीब के हर सुख दुख में साथ खड़े होते थे.


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