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अजीत सिंह/लखनऊ: उत्तर प्रदेश में पिछले 10 साल में OBC कोटे के तहत किसको-कितनी नौकरी मिली है? यह आंकड़ा उत्तर-प्रदेश की योगी सरकार जानना चाहती है. इसको लेकर सभी विभागों को जनवरी 2010 से मार्च 2020 तक की गई ओबीसी भर्तियों में सभी उम्मीदवारों की उप-जाति की डिटेल देने को कहा गया है. कल यानी 23 अगस्त को इसको लेकर इन विभागों की बैठक होने वाली है. 


साल 2010 से 2020 के बीच नौकरियों में OBC की संख्या?
इन सभी सवालों के जवाब जानने से पहले यह हम आपको बताते हैं कि योगी सरकार ने OBC कोटे को लेकर विभागों से क्या जानकारी मांगी है. योगी सरकार जानना चाहती है कि साल 2010 से 2020 के बीच उत्तर प्रदेश में कुल स्वीकृत पद, भरे गए पद, ओबसी की संख्या, कुल भरे गए पदों के मुकाबले ओबीसी का प्रतिशत कितना रहा? ओबीसी आरक्षण कोटा पूरा हुआ या नहीं ये आंकड़े भी सरकार ने मांगे हैं. पहली बार समूह ''क'' से ''घ'' तक के पदों में ओबीसी की उपजातियों के हिसाब से कार्मिकों की गिनती होगी. पदों की डिटेल कैडर के मुताबिक देनी होगी. इसके लिए सरकार ने सभी विभागों के अपर मुख्य सचिवों को पत्र भेजा है. 


इसी के मद्देनजर 83 विभागों में से 40 के अफसरों एक बैठक 23 अगस्त को और बाकी विभागों के अधिकारियों की बैठक 24 अगस्त को बुलाई गई है. 
सीएम योगी ने 83 विभागों से OBC भर्तियों में सभी उम्मीदवारों की उप-जाति का विवरण मांगा है. 


इस रिपोर्ट का मकसद क्या ?
दरअसल,योगी सरकार पिछले 10 साल में सरकारी नौकरियों में ओबीसी प्रतिनिधित्व का आकलन करने जा रही है. इसके तहत राज्य सरकार की सेवाओं में ओबीसी की 79 उपजातियों के हिसाब से कार्मिकों की गिनती होगी. इस संख्या के आधार पर तय होगी कि सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट लागू होगी या नही. अगर लागू होगा? तो कब होगा? साथ ही इस संख्या के आधार पर सरकार विपक्ष के सवालों के जवाब भी देगी और साख तौर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को घेरा जा सकता है. 


क्या है सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट
यूपी में योगी सरकार ने ओबीसी आरक्षण के आंकलन के लिए जस्टिस राघवेन्द्र सिंह की अगुवाई में एक कमेटी बनाई थी. दिसंबर 2021 में यह रिपोर्ट सरकार को सौंप दी गई थी. इस कमेटी का गठन अत्यधिक पिछड़े, वंचित व अनुसूचित वर्गों के उत्थान और असमानता दूर करने के लिए किया गया था. क्योंकि आरक्षण का लाभ कुछ ही जातियों में सिमट कर रह गया था. इस रिपोर्ट में OBC को तीन श्रेणियों- पिछड़ा, अति पिछड़ा और सबसे पिछड़ा में बांटने करने की सिफारिश की गई थी.


इसमें 12 ओबीसी उप-जातियों को पिछड़ा वर्ग में रखा गया है, वहीं 59 को अति पिछड़ी श्रेणी में और 79 को सबसे पिछड़ी श्रेणी में रखा गया है. सरकार पर इन सिफारिशों को लागू करने का दबाव लगातार बढ़ रहा है. 


मायावती से लेकर अखिलेश सरकार का होगा आंकड़ा
योगी सरकार ने जनवरी 2010 से 2020 तक के आंकड़े मांगे हैं. इसमें दो साल मायावती शासन के, पांच साल अखिलेश यादव के शासन के और तीन साल योगी सरकार के कार्यकाल के हैं. इससे पता चलेगा कि किस सरकार में ओबीसी की किस जाति को कितनी नौकरी मिली है. माना जाता है कि यूपी में ओबीसी आरक्षण का सबसे ज्यादा फायदा यूपी में यादव, कुर्मी, चौरसिया, कुशवाहा, मुस्लिम जुलाहे और जाट समुदाय के लोगों को मिला है. ओबीसी की बाकी जातियों को इनकी तुलना में ज्यादा लाभ नहीं मिला. 


यूपी में शुरू होगी कोटा पॉलिटिक्स
योगी सरकार के इस कदम से यूपी में कोटा पॉलिटिक्स शुरु हो सकती है. ​​​​​​​योगी सरकार की इस कवायद के दो मायने निकाले जा रहें है. सरकार 2024 लोकसभा चुनाव से पहले या तो सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट को लागू कर सकती है. दूसरा विभागीय आंकड़ों के आधार पर मायावती और अखिलेश को घेर सकती है. इससे पता चल जाएगा कि पिछले 10 साल में ओबसी आरक्षण का किस जाति के लोगों को ज्यादा फायदा मिला. इस आधार पर सरकार अखिलेश यादव और मायावती को घेर सकती है. 


राजभर और निषाद भी लड़ रहें है कि हक की लड़ाई 
सुभासपा के मुखिया ओम प्रकाश राजभर ने 26 सितंबर से ''सावधान यात्रा'' शुरू करने का फैसला किया है, जो जाति जनगणना के मुद्दे को उठाएगी. राजभर ने कहा है कि सरकारी भर्तियों में ओबीसी उप-जातियों का यह आकलन महत्वपूर्ण है. एक बार यह हो जाने के बाद, हम उम्मीद करेंगे कि सरकार सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट को जल्दी से लागू करेगी. इतना ही नही यूपी में बीजेपी की सहयोगी निषाद पार्टी ने कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही उनके समुदाय को ओबीसी से हटाकर अनुसूचित जाति में स्थानांतरित किया जाएगा. 


UP में OBC के तहत आती हैं 234 जातियां 
उत्तर प्रदेश में OBC के तहत 234 जातियां आती हैं. उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग सामाजिक न्याय समिति ने अपनी रिपोर्ट में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को इनके लिए तीन भागों में बांटने की सिफारिश की है. पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा और सर्वाधिक पिछड़ा. पिछड़े वर्ग में सबसे कम जातियों को रखने की सिफारिश की गई है, जिसमें यादव, कुर्मी जैसी संपन्न जातियां हैं. अति पिछड़े में वे जातियां हैं जो कृषक या दस्तकार हैं और सर्वाधिक पिछड़े में उन जातियों को रखा गया है, जो पूरी तरह से भूमिहीन, गैरदस्तकार, अकुशल श्रमिक हैं.