महाकवि कालिदास द्वारा रचित अभिज्ञान शाकुन्तलम में भी कण्वाश्रम और उसके आस पास के इलाकों का उल्लेख मिलता है.
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कोटद्वार: उत्तराखंड में भी अब एक शहर का नाम बदलने को लेकर तैयारी हो रही है. दरअसल, पौढ़ी जिले के कोटद्वार का नाम कण्व ऋषि के नाम पर रखने के लिए सरकार कैबिनेट में प्रस्ताव लाने जा रही है. कण्व ऋषि के कण्वाश्रम में ही पांडवों के पूर्वज और हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त और शकुंतला के पुत्र भरत का जन्म हुआ था. भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा.
आज कोटद्वार को गढ़वाल का एक प्रवेश द्वार भी कहा जाता है. कोटद्वार एक पौराणिक शहर है, जिसका जिक्र कई धर्मग्रन्थों और महाभारत कालीन साहित्य में मिलता है. प्राचीन काल में कोटद्वार में कण्व ऋषि का आश्रम होता था. ये उच्च शिक्षा का प्रमुख केंद्र हुआ करता था. देश के कई हिस्सों से छात्र यहां आश्रम में वेद पुराणों की शिक्षा लेने आते थे. वेद पुराणों के अलावा ये आश्रम ज्योतिष, कर्मकांड और आयुर्वेद की शिक्षा का प्रमुख केंद्र हुआ करता था. इसी आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत और शकुंतला को विवाह के बाद पुत्र प्राप्त हुआ था. इन्हीं भरत के नाम पर हमारे देश का नाम आगे जाकर भारत पड़ा.
कोटद्वार के पास बहने वाली मालिनी नदी का जिक्र भी पौराणिक साहित्य में मिलता है. महाकवि कालिदास द्वारा रचित अभिज्ञान शाकुन्तलम में भी कण्वाश्रम और उसके आस पास के इलाकों का उल्लेख मिलता है. कोटद्वार के कण्वाश्रम में इन दिनों मुस्लिम समुदाय के करीब 200 लोगों को योग की शिक्षा दी जा रही है. इस योग शिविर का उद्घाटन करने पहुंचे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि कण्वाश्रम भारत की संस्कृति का प्रमुख केंद्र रहा है. सरकार कैबिनेट में प्रस्ताव लाकर कोटद्वार का नाम बदलने जा रही है.
मुख्यमंत्री ने ये भी कहा कि कोटद्वार शब्द अपने में कई तरह का इतिहास समेटे हुये है, इसलिए इस नाम से छेड़छाड़ नहीं की जायेगी. सरकार ने इसका नाम कण्व नगरी कोटद्वार करने की घोषणा की है. मुख्यमंत्री ने इस सुंदर घाटी का नाम भी बदलने की घोषणा की है. अभी तक जिस क्षेत्र को कलाल घाटी कहा जाता है, उसे अब कण्व घाटी के नाम से जाना जायेगा. कोटद्वार शहर का नाम बदलने को लेकर कोटद्वार नगर निगम पहले ही प्रस्ताव पास कर राज्य सरकार के पास भेज चुकी है.
आधुनिक कोटद्वार 1890 के आसपास अस्तित्व में आया. जब अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में रेल लाइन के लिए सर्वे किया. 1900 के आसपास रेल लाइन बन जाने से यहां आबादी बढ़ने लगी. अब कोटद्वार एक नगर निगम है और गढ़वाल के प्रमुख क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है. देखना होगा कि कण्वनगरी कोटद्वार का नाम मिलने से पर्यटन के क्षेत्र में ये शहर कितनी तरक्की कर पाता है.