उत्तरकाशी: आपने अक्सर साधु-महात्माओं या महापुरुषों की समाधि स्थल के बारे में सुना होगा. लेकिन क्या आपने कभी किसी पेड़ की समाधि स्थल बनने की बात सुनी है? जी हां, ये सच है. उत्तरकाशी में एक ऐसा पेड़ है, जिसकी समाधि बनाई गई है. इतना ही नहीं बल्कि इस समाधि को देखने दूर-दूर से सैलानी पहुंचते हैं. अगर आप इस जगह के बार में नहीं जानते हैं तो आइये उस जगह और पेड़ की खासियत के बारे में जानते हैं...


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1997 में घोषित किया गया था महावृक्ष
देहरादून से लगता हुआ त्यूनी के पास देवता रेंज में उत्तराखंड की टोंस नदी के किनारे एशिया का सबसे ऊंचा चीड़ का पेड़ था. भारत सरकार वन एवं पर्यावरण विभाग ने सन् 1997 में चीड़ के इस पेड़ को महावृक्ष घोषित किया था. 08 मई 2007 को तेज तूफान के चलते यह पेड़ टूट कर गिर गया था, इसके बाद घोषित महावृक्ष की समाधि बनाई गयी. आज ये चीड़ महावृक्ष की समाधि पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है.


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इस वजह से है खास 
इस वृक्ष की ऊंचाई 60.65 मीटर थी, जबकि गोलाई 2.70 थी. इसकी अनुमानित आयु 220 वर्ष मानी गयी है. इस महावृक्ष के गिरने के बाद वन विभाग ने पेड़ के तनों के साथ ही इस पेड़ के अलग-अलग हिस्सों से समाधि बनाई. इसके चारों तरफ पेड़-पौधे और हरियाली के साथ एक इको गार्डन का रूप दिया गया है. यही कारण है कि दूर-दूर से पर्यटकों के साथ नये वैवाहिक दंपति भी इस जगह पहुंचकर कुछ पल साथ बिताते हैं. बता दें कि यह चीड़ महावृक्ष समाधि स्थल हनोल महासू देव मंदिर के बिल्कुल करीब है, यही कारण है कि जो भी श्रद्धालु मंदिर दर्शन करने आते हैं, वो समाधि स्थल जरूर जाते हैं. 


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