Joshimath Sinking : उत्तराखंड का जोशीमठ आज सुर्खियों में हैं, 561 से ज्यादा मकानों में दरारों, सैकड़ों परिवारों के पलायन, सड़कों पर पैदा हुई बड़ी बड़ी खाइयों ने राष्ट्रीय स्तर पर चिंता पैदा कर दी है. लेकिन जोशीमठ में मंडरा रहे ऐसे ही खतरे को लेकर भूगर्भ वैज्ञानिकों ने करीब 50 साल पहले ही चेतावनी दे दी थी. विशेषज्ञों ने भी माना है कि जोशीमठ की जनता के मन में व्याप्त आशंकाएं गलत नहीं हैं.


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जोशीमठ में भूधंसाव क्यों
मीडिया रिपोर्ट की मानें तो भूगर्भवैज्ञानिकों का कहना है कि जोशीमठ के धंसने या दरकने की मुख्य वजह भौगोलिक है.जोशीमठ के बारे में कहा जाता है कि यह प्राचीन काल में हिमालय (Himalayas) की चोटियों में हुए भारी भूस्खलन के बाद एक टीले के तौर पर बना. पिछले कुछ दशकों में यहां तपोवन के काजीगुंड सुरंग परियोजना, एनटीपीसी औऱ अन्य कंपनियों के निर्माण कार्यों के दौरान तमाम कृत्रिम विस्फोट भी कराए गए हैं. यहां की आबादी भी तेजी से बढ़ी है.


1976 में बना आयोग
1976 में एम.सी. मिश्रा की अगुवाई में बने आयोग (Mishra Commission) ने खतरे की घंटी बजा दी थी. रिपोर्ट में लिखा था कि जोशीमठ हजारों साल पहले इस पहाड़ी इलाके में बने लैंडस्लाइड के कारण निर्मित हुआ है, इसे सामान्य प्राकृतिक इलाके की तरह नहीं देखा जा सकता. 


निर्माण कार्य परियोजनाएं बढ़ीं
इसकी चट्टानें ज्यादा भार नहीं वहन कर सकतीं. यहां बड़े स्तर का निर्माण कार्य के अनुकूल नहीं हैं. लेकिन पिछले कुछ दशकों में बढ़ते कंस्ट्रक्शन वर्क (construction work), हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट और नेशनल हाईवे को चौड़ा करने यानी राष्ट्रीय राजमार्ग चौड़ीकरण (National Highway) परियोजना के कारण यह काफी अस्थिर हो गया है. नदियों से रिज की ओर रहे क्षरण के कारण शहर का बुरा हाल हो रहा है. यहां बिखरी चट्टानें पहले हुए भूस्खलन ( landslide) की निशानी हैं. ये चट्टानें ज्यादा मजबूत नहीं हैं.


वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जूलॉजी की रिपोर्ट
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जूलॉजी (Wadia Institute of Himalayan Geology) की रिपोर्ट कहती है कि ये चट्टानें बहुत जल्दी टूटने वाली होती हैं.मानसून के दौरान पानी सोखने पर इनका टिके रह पानी मुश्किल हो जाता है. कंस्ट्रक्शन के भारी दबाव को झेल पानी इनके लिए मुश्किल है. ऊंचाई वाले इलाकों में छिपे नाला (nalas ) जो अब बस्ती वाले इलाके में दबाव के कारण जगह-जगह फूट रहे हैं. इनमें गंदा कीचड़ युक्त पानी भी इसका संकेत है.


तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना
2021 अक्टूबर में हुई Rishiganga flood disaster भी इसका उदाहरण है, जिसके कारण एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना (Tapovan Vishnugarh Hydroelectric Project) को भारी नुकसान पहुंचा था.विशेषज्ञों का कहना है कि यहां जल विद्युत परियोजना और अन्य बड़े निर्माण कार्यों पर तुरंत ही रोक लगा देनी चाहिए. पूरे इलाके का व्यापक भूगर्भीय सर्वेक्षण कराया जाना चाहिए जिसमें स्वतंत्र पर्यावरणविद, भूगर्भविज्ञानी और जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ भी हों.


बद्रीनाथ का बेस कैंप
केदारनाथ से बद्रीनाथ जाते वक्त जोशीमठ को पर्यटक बेस कैंप की तरह इस्तेमाल करते हैं. जोशीमठ से प्रसिद्ध पर्यटन स्थल ओली का भी रास्ता है. जोशीमठ में सेना और आईटीबीपी का ठिकाना भी है. सेना चीन से लगी सीमा के माणा गांव में अपने सैन्य शिविर तक पहुंचने के लिए इसे आधार शिविर की तरह इस्तेमाल करती है. सेना के लिए ये बेहद सामरिक इलाका है.यहां आर्मी का बड़ा कैंटोनमेंट (Army Cantonment) एरिया है, जहां रसद का बड़ा भंडार भी है.


जोशीमठ कहां स्थित है
पहाड़ी इलाका जोशीमठ ऋषिकेश बद्रीनाथ नेशनल हाईवे (Rishikesh Badrinath National Highway यानी एनएच 7 (NH 7) पर स्थित है. बद्रीनाथ, फूलों की घाटी, औली, हेमकुंड साहिब (Badrinath, Valley of Flowers, Hemkund Sahib,  Auli ) जैसे तीर्थस्थल या पर्यटन स्थलों पर जाने के लिए पर्यटक और श्रद्धालु यहीं ठहरते हैं और आराम करते हैं. कई मंदिरों के कारण यह खुद भी एक टूरिस्ट प्लेस है.


मोटी भारी पर कमजोर चट्टानें
यह शहर धौलीगंगा (Dhauliganga) और अलकनंदा (Alaknanda) नदियों के संगम के साथ विष्णुप्रयाग (Vishnuprayag) से एक उच्च ढाल वाली धाराओं को पार करते हुए एक रनिंग रिज पर बसा है. 2022 की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि जोशीमठ के आसपास का क्षेत्र अत्यधिक मोटी चट्टानी परतों से ढंका हुआ है.


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