हरीश रावत का मौन व्रत राजनीतिक गलियारों में हो गया फेमस, बाकी दल खूब ले रहे चुटकी
हरीश रावत के मौन व्रत पर तो भाजपा की प्रतिक्रिया चुटकी लेने वाली है. पार्टी प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. देवेंद्र भसीन की मानें तो हरदा के पास खुद को चर्चाओं में रखने का अब कोई रास्ता नहीं बचा है...
देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 (Uttarakhand Assembly Election 2022) से पहले हरदा की मौन पॉलिटिक्स क्या वास्तव में कारगर है या फिर केवल चर्चा में बने रहने के लिए रावत का सियासी स्टंट? जो भी हो राजनीतिक गलियारों में इसकी चर्चा खूब हो रही है. बीते कुछ महीनों की बात करें तो अब विपक्षी दल हरीश रावत के मौन पॉलिटिक्स पर चुटकी लेने लगे हैं.
हरदा का मौनव्रत को लेकर बाकी दल ले रहे चुटकी
कभी महंगाई का मुद्दा तो कभी देवस्थानम एक्ट, कभी छात्रों के हित, कभी आपदा को लेकर हरीश रावत मौन व्रत रखते रहते हैं. कांग्रेस उनके मौन व्रत को भाजपा सरकार को जगाने के लिए बड़ा अस्त्र मानती है. लेकिन, यहीं यह सवाल भी खड़ा होता है कि क्या वास्तव में हरदा के इस मौन व्रत का सरकार पर कोई असर भी पड़ता है या फिर उनकी मंशा केवल मीडिया की सुर्खियां हासिल करने की है?
चर्चाओं में रहने का कोई रास्ता नहीं, इसलिए ऐसे ध्यान खींचते हैं हरदा- भाजपा
हरीश रावत के मौन व्रत पर तो भाजपा की प्रतिक्रिया चुटकी लेने वाली है. पार्टी प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. देवेंद्र भसीन की मानें तो हरदा के पास खुद को चर्चाओं में रखने का अब कोई रास्ता नहीं बचा है. ऐसे में मौन व्रत के जरिए हरीश रावत लोगों का ध्यान खींचने की कोशिश करते हैं. डॉ. भसीन ने कहा कि हरदा कुछ भी कर लें, उन्हें इस विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद पूरी तरह मौन धारण कर लेना है.
हरदा के मौन व्रत को बताया नाटकीय पॉलिटिक्स
वहीं, आम आदमी पार्टी भी रावत के मौन पॉलिटिक्स को नाटकीय पॉलिटिक्स बता रही है. आम आदमी प्रवक्ता नवीन प्रिशाली का कहना है कि चुनावी साल में राजनीतिक दल सत्ता प्राप्ति के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाते हैं. हरदा का मौन पॉलिटिक्स भी उन्हीं में से एक है. अब देखना यह होगा कि इस मौन व्रत के जरिए कांग्रेस सत्ता हासिल करने की दौड़ में कहां तक पहुंच पाती है.
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