कुलदीप नेगी/देहरादून : उत्तराखंड में भू-कानून (Uttarakhand Bhu Kanoon) में सुधार की संभावनाएं तलाशने को बनी समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. इसमें कृषि भूमि (Agriculture Land) को बेचने की अनुमति देने का अधिकार डीएम स्तर से वापस लेकर शासन स्तर पर सौंपने की सिफारिश की गई है. माना जा रहा है कि इससे कृषि भूमि बेचकर और नियमों को ताक पर रखकर बंगला-रिजॉर्ट बनाने की प्रक्रिया पर लगाम लगेगी. वर्तमान में DM कृषि या औद्योगिक प्रयोजन हेतु कृषि भूमि खरीदने की अनुमति दी जाती है. लेकिन तमाम मामलों में ऐसी अनुमति का दुरुपयोग रिसॉर्ट/ निजी बंगले बनाने में हो रहा था. इससे पर्वतीय क्षेत्रों में लोग भूमिहीन हो रहे थे और रोजगार सृजन नहीं हो रहा था. समिति ने सिफारिश (Uttarakhand Land Reforms) की है कि ऐसी अनुमति जिलाधिकारी की बजाय शासन से ही दी जाए.


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समिति ने सौंपी 23 सिफारिशें
समिति ने भू कानून के अध्ययन और परीक्षण से जुड़ी रिपोर्ट सीएम पुष्कर सिंह धामी को सौंप दी है. समिति ने अपनी रिपोर्ट में दी 23 सिफारिशें की हैं. सीएम ने कहा है कि समिति की संस्तुतियों पर राज्य सरकार विचार कर भू-कानून में संशोधन पर विचार करेगी.


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उच्चस्तरीय समिति का गठन
धामी ने जुलाई 2021 में प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद अगस्त माह में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था समिति को राज्य में औद्योगिक विकास कार्यों हेतु भूमि की आवश्यकता तथा राज्य में उपलब्ध भूमि के संरक्षण के मध्य संतुलन को ध्यान में रख कर विकास कार्य प्रभावित न हों, पर रिपोर्ट देने को कहा था.समिति ने सभी जिलाधिकारियों से प्रदेश में अब तक दी गई भूमि क्रय की स्वीकृति का विवरण मांग कर उनका परीक्षण भी किया.


समिति की अन्य सिफारिशें...
1. वर्तमान में लघु उद्योगों हेतु भूमि क्रय करने की अनुमति जिलाधिकारी दे रहे हैं. हिमाचल प्रदेश की  तरह ये मंजूरी शासन स्तर पर दी जाए. पर्वतीय एवं मैदानी इलाके में उद्योग,आयुष, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा,पर्यटन आदि के लिए 12.05 एकड़ से ज्यादा भूमि आवेदक संस्था/फर्म/ कम्पनी/ व्यक्ति को उसके आवेदन पर दी जा सकती है. लेकिन समिति ने इसे हिमाचल प्रदेश की भांति न्यूनतम भूमि आवश्यकता (Essentiality Certificate) के आधार पर दिया जाने की वकालत की है.


2. बड़े उद्योगों के अतिरिक्त 4-5 सितारा होटल / रिसॉर्ट, मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, वोकेशनल/प्रोफेशनल इंस्टिट्यूट आदि को ही Essentiality Certificate के आधार भूमि क्रय करने की अनुमति शासन स्तर से दी जाए. अन्य प्रयोजनों हेतु लीज का विकल्प बेहतर होगा.


3. वर्तमान में, गैर कृषि प्रयोजन हेतु खरीदी गई भूमि को 10 दिन में S.D.M. धारा- 143 के अंतर्गत गैर कृषि घोषित करते हुए खतौनी में दर्ज करेगा.
परन्तु क्रय अनुमति आदेश में 2 वर्ष में भूमि का उपयोग निर्धारित प्रयोजन में करने की शर्त रहती है. यदि निर्धारित अवधि में उपयोग ना करने पर या किसी अन्य उपयोग में लाने/विक्रय करने पर राज्य सरकार में भूमि निहित की जाएगी, यह भी शर्त में उल्लखित रहता है.


4. यदि 10 दिन में गैर कृषि प्रयोजन हेतु क्रय की गई कृषि भूमि को "गैर कृषि" घोषित कर दिया जाता है, तो फिर यह धारा-167 के अंतर्गत राज्य सरकार में (उल्लंघन की स्थिति में) निहित नहीं की जा सकती है.


5. कोई व्यक्ति स्वयं या अपने परिवार के किसी भी सदस्य के नाम बिना अनुमति के अपने जीवनकाल में अधिकतम 250 वर्ग मीटर भूमि आवासीय प्रयोजन हेतु खरीद सकता है .


6. समिति की संस्तुति है कि परिवार के सभी सदस्यों के नाम से अलग-अलग भूमि खरीद पर रोक लगाने के लिए परिवार के सभी सदस्यों के आधार कार्ड राजस्व अभिलेख से लिंक कर दिया जाए.


7. भूमि जिस प्रयोजन के लिए क्रय की गई, उसका उललंघन रोकने के लिए एक जिला / मण्डल / शासन स्तर पर एक टास्क फ़ोर्स बनाई जाए.ताकि ऐसी भूमि को राज्य सरकार में निहित किया जा सके.


8.सरकारी विभाग अपनी खाली पड़ी भूमि पर साइनबोर्ड लगाएं.


9. कतिपय प्रकरणों में कुछ व्यक्तियों द्वारा एक साथ भूमि क्रय कर ली जाती है तथा भूमि के बीच में किसी अन्य व्यक्ति की भूमि पड़ती है तो उसका रास्ता रोक दिया जाता है. इसके लिए Right of Way की व्यवस्था हो.


10. धार्मिक प्रयोजन हेतु कोई भूमि क्रय/ निर्माण किया जाता है तो अनिवार्य रूप से जिलाधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर शासन स्तर से निर्णय लिया जाए.