देहरादून: तुर्की और सीरिया (Turkey and Syria) में आए बड़े भूकंप (Earthquake) में आठ हजार से ज्यादा लोग मारे गए हैं. सैकड़ों इमारतें धराशायी हो गई हैं. ऐसे में भूगर्भ विशेषज्ञों के बीच चिंता उठी है कि अगर इतनी ही तीव्रता का जलजला भारत में खासकर पहाड़ी राज्यों में आता तो क्या हालात होते. खासकर उत्तराखंड और हिमाचल का इलाका, जो भूकंप के खतरे वाले जोन में है.  उत्तराखंड के जोशीमठ (Joshimath Crisis) में हाल ही के दिनों में भूधंसाव देखने को भी मिला था. भारत सरकार और भूगर्भ विशेषज्ञों की चिंताएं हैं कि इतना बड़ा भूकंप अगर भारत में आए तो कैसी तबाही हो सकती है. क्या कुछ बेहतर तैयारियां करके भूकंप के खतरे से बचा जा सकता है. भूकंप के खतरे को लेकर वाडिया भूगर्भ संस्थान के विशेषज्ञों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है.


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उत्तराखण्ड को लेकर बढ़ी चिंताएं
तुर्की और सीरिया में आए बड़े भूकंप के बाद उत्तराखंड को लेकर चिंताएं बढ़ने लगी हैं. क्योंकि उत्तराखंड का अधिकांश हिस्सा भूकंप के लिहाज से जोन 5 में आता है. ऐसे में अगर कोई बड़ा भूकंप आता है तो उसके झटके उत्तराखंड से लेकर दिल्ली एनसीआर तक तक महसूस किए जाएंगे.


वाडिया हिमालयन भूगर्भ संस्थान के निदेशक डॉ काला चांद साईं का कहना है कि तुर्की में जो भूकंप आया है वह 7 मेग्नीट्यूड से ज्यादा का है. इसके आफ्टरशॉक्स भी 7 मेग्नीट्यूड से ज्यादा हैं. उनका कहना है जब बड़े भूकंप आते हैं तो सबसे ज्यादा नुकसान हाई राइज बिल्डिंग में होता है जो देखने को मिल रहा है.


उत्तराखण्ड में आए भूकंपो का किया अध्ययन
विशेषज्ञों का कहना है उत्तरकाशी में 1991 और चमोली में 1999 में आया भूकंप 6 मेग्नीट्यूड से ज्यादा का था. तब इससे भारी नुकसान हुआ था. ऐसे में अब उत्तराखंड में अगर कोई बड़ा भूकंप आता है तो लगभग 300 किलोमीटर क्षेत्र में इसका नुकसान देखने को मिल सकता है. राजधानी दिल्ली एनसीआर में इसका बड़ा प्रभाव देखने को मिल सकता है. वाडिया निदेशक का कहना है कि लगातार भूकंप आने से एनर्जी रिलीज होती है, लेकिन स्टडी में यह साफ हुआ है कि अभी भी जमीन के अंदर बहुत सारी एनर्जी स्टोर है. यह भूकंप के तौर पर कब बाहर निकलेगी यह कहना मुश्किल है, लेकिन यह निकलेगी यह तय है.


भूकंप रोधी बनाएं घर
डॉ. साईं ने कहा है कि भूकंप से लोग अपनी गलतियों से प्रभावित होते हैं. यदि हमारे घर अगर भूकंप रोधी हों तो बड़े भूकंप से भी दिक्कतें नहीं होती हैं. जापान इसका सबसे अच्छा उदाहरण है. लेकिन दिल्ली एनसीआर और बड़े शहरों में हाई राइज बिल्डिंग हमेशा खतरे की जद में रहती हैं.


भूकंप के फोरकास्ट और अर्ली वार्निंग सिस्टम (Early Warning Sysytem) को लेकर वाडिया संस्थान के निदेशक का कहना है कि अभी इस पर पूरी तरह से कोई दावा नहीं कर सकता. कुछ स्टडी में अर्ली वार्निंग सिस्टम ने बेहतर काम किया है. लेकिन वहां के विशेषज्ञ भी इस पर दावा नहीं कर सकते हैं. इसलिए हमें भूकंप के दौरान होने वाले नुकसान से बचने के लिए पहले से तैयार रहना चाहिए.


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