विशाल सिंह रघुवंशी/ नई दिल्ली: काशी की ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर ASI की सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक हो गई है. भारतीय पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक़ मौजूदा ढांचे को बनाने से पहले हिंदू मंदिर था. ASI ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि ज्ञानवापी में पहले हिंदू मंदिर था. ज्ञानवापी के खंभों पर हिंदू देवी देवताओं के प्रतीक चिन्ह मिले हैं. ज्ञानवापी के खंभों पर पशु पक्षियों के चिन्ह भी अंकित मिले हैं. इसके अलावा ASI ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि पश्चिमी दीवार हिंदू मंदिर का बचा हुआ हिस्सा है. ज्ञानवापी में जो मस्जिद बनी है, उसे बनाने के लिए हिंदू मंदिर के स्तंभों का ही प्रयोग किया गया है.


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ज्ञानवापी के सर्वे के दौरान ASI ने GPR तकनीक का भी सहारा लिया. GPR सर्वे के मुताबिक़ ज्ञानवापी के उत्तरी हॉल में एक कुंआ प्रतीत होता है. मौजूदा ढांचे को बनाने के लिए हिंदू मंदिर के खंभों और प्लास्टर का प्रयोग किया गया. ASI ने अपनी सर्वे रिपोर्ट में साफ़ तौर पर यह लिखा है कि यहाँ पर एक बड़ा हिंदू मंदिर था. ज्ञानवापी परिसर में जो शिलालेख मिले हैं, वो हिंदू मंदिर होने के सबसे बड़े सबूत के तौर पर देखे जा रहे हैं. ASI को पूरे परिसर में लगभग 32 ऐसे सबूत मिले हैं, जिससे यह साबित होता है कि ज्ञानवापी का धार्मिक स्वरूप हिंदू मंदिर का है. यानि हिंदू मंदिर को तोड़कर यहाँ पर मस्जिद बनाई गई. मस्जिद बनाने में हिंदू मंदिर के अवशेषों का ही बड़े स्तर पर प्रयोग किया गया. ASI के सर्वे रिपोर्ट को अध्ययन करने के बाद यह पता चलता है कि ज्ञानवापी के शिलालेख देवनागरी, ग्रंथ, तेलुगु और कन्नड़ भाषा में हैं. शिलालेख पर जनार्दन, रूद्र और उमेश्वरा नाम भी लिखा हुआ मिला है. इसके अलावा शिलालेख पर महामन्त्री मंडप जैसे शब्द भी लिखे हुए हैं, जो कि इस केस में काफ़ी महत्वपूर्ण हैं.


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ASI को सर्वे के दौरान एक पत्थर भी मिला है, जो कि आधा टूटा हुआ है. इस आधे टूटे हुए पत्थर पर फ़ारसी में कुछ लिखा हुआ है. इस पत्थर के मुताबिक़ औरंगज़ेब के शासनकाल में यहाँ पर 1676-77 के बीच मस्जिद का निर्माण हुआ. अपनी रिपोर्ट में ASI ने मासिर ए आलमगिरी नाम की एक पुस्तक का भी वर्णन किया, जो कि औरंगज़ेब की बायोग्राफ़ी है. आलमगिरी पुस्तक के मुताबिक़ औरंगज़ेब के आदेश पर 2 सितंबर, 1669 को काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया था और मस्जिद का निर्माण कराया गया.


ASI की सर्वे रिपोर्ट से यह बिल्कुल साफ़ हो चुका है कि ज्ञानवापी के मौजूदा ढाँचे की जगह बाबा विश्वनाथ का विशाल मंदिर था, जिसे औरंगज़ेब के आदेश पर तोड़ा गया. इसके समर्थन में ASI ने कई अहम सबूत भी इकट्ठा किए है, जिसे ज़िला प्रशासन के पास रखा गया है.


ज्ञानवापी विवाद में ASI की रिपोर्ट एक टर्निंग प्वाइंट है, क्योंकि ASI पुरातत्व से जुड़ी भारत की सबसे बड़ी एजेंसी है. इसकी रिपोर्ट को सबसे सही और तथ्यात्मक माना जाता है. ASI की रिपोर्ट सार्वजनिक हो जाने के बाद हिंदू पक्ष के दावों को और ज़्यादा मज़बूती मिली है. अगर हम अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि और बाबरी विवाद का मामला देखें तो उसमें भी ASI की रिपोर्ट ही सबसे बड़ा आधार था. उसी तरह काशी के ज्ञानवापी मामले में भी ASI की रिपोर्ट एक वैज्ञानिक विधि से तैयार की गई रिपोर्ट है, जिसका प्रयोग आने वाले दिनों में अलग अलग अदालतों में किया जाएगा.


ज्ञानवापी को लेकर अगर ASI की संपूर्ण 839 पन्नों की सर्वे रिपोर्ट को आसान भाषा में एक लाइन में डिकोड करें तो यह सर्वे रिपोर्ट बताती है कि 15 अगस्त, 1947 से पहले ज्ञानवापी का धार्मिक स्वरूप हिंदू मंदिर का रहा है. दरअसल 1991 का पूजा स्थल विधेयक कहता है कि 15 अगस्त, 1947 को देशभर के धार्मिक स्थलों का जो धार्मिक स्वरूप है, वो ही बरकरार रहना चाहिए. इस विधेयक में अयोध्या मामले को अपवाद माना गया था. इसी विधेयक को आधार बनाकर अंजुमन इंतेज़ामिया कमेटी और सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड लगातार ज्ञानवापी केस की सुनवाई को टालने की माँग करते रहे. लेकिन जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा तो 1991 के विधेयक को परिभाषित करते हुए देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि यह विधेयक धार्मिक स्वरूप की जाँच करने से नहीं रोकता है. उसके बाद ही वाराणसी ज़िला अदालत के आदेश पर ASI ने ज्ञानवापी के सर्वे की शुरूआत की. यानि आप इसे यूँ भी कह सकते हैं कि ASI की सर्वे रिपोर्ट के बाद ज्ञानवापी के मामले में 1991 का पूजा स्थल विधेयक हिंदुओं के पक्ष में आ जाएगा, क्योंकि भारतीय पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि ज्ञानवानी का धार्मिक स्वरूप मंदिर का रहा है, जिसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई. यह इस केस की दिशा बदलने वाली रिपोर्ट मानी जा रही है.


ASI की सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने कहा कि अब हम सुप्रीम कोर्ट जाएँगे और सील किए गए वजूखाने वाले क्षेत्र के भी ASI सर्वे की माँग करेंगे. वहीं मुस्लिम पक्ष के वकीलों का कहना है कि वो इस सर्वे रिपोर्ट का अध्ययन कर रहे हैं. इस रिपोर्ट को सार्वजनिक होने के बाद अब दोनों ही पक्ष वाराणसी की ज़िला अदालत में अपना अपना पक्ष रखेंगे और इस केस का ट्रायल चलता रहेगा.


आपको बता दें कि हिंदू पक्ष लगातार यह दावा करता रहा है कि मौजूदा ज्ञानवापी परिसर में ही स्वयंभू विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग है. इस संदर्भ में हिंदू पक्ष कई अहम दस्तावेज और सबूत भी कोर्ट में पेश कर चुका है. जबकि मुस्लिम पक्ष लगातार यह कहता है कि ज्ञानवापी में मस्जिद है और इस केस की सुनवाई 1991 के पूजा स्थल विधेयक का उल्लंघन है.


कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि ASI की सर्वे रिपोर्ट ज्ञानवापी केस की दशा-दिशा बदल देगा, क्योंकि अब किसी भी कोर्ट में मुस्लिम पक्ष की यह दलील टिक पाना मुश्किल हो सकता है कि ज्ञानवापी मामले की सुनवाई 1991 के पूजा स्थल विधेयक का उल्लंघन है. हालाँकि क़ानून लड़ाई अभी काफ़ी लंबी चलेगी और दोनों ही पक्ष अपने अपने दावों के साथ कोर्ट में नज़र आएँगे.


लेकिन इसके साथ ही साथ इस मुद्दे का सियासी असर भी देखने को मिल सकता है. क्योंकि जिस तरह से बीजेपी ने अयोध्या-काशी और मथुरा का संकल्प लिया था. उसमें अयोध्या में राम मंदिर बनकर तैयार हो चुका है और काशी के ज्ञानवापी मामले में भी ASI रिपोर्ट ने आगे का रास्ता काफ़ी हद तक आसान कर दिया है. जबकि मथुरा के मामले में भी लगातार कोर्ट में सुनवाई चल रही है. 2024 के लोकसभा चुनाव में ज्ञानवापी का असर ज़रूर दिखाई पड़ सकता है.