वाराणसी: वाराणसी में इस बात को लेकर काफी समय से संशय चल रहा था कि आखिर देव दीपावली यहां पर कब मनाई जाए लेकिन अब इसे मनाने की तारीख को तय कर लिया गया है. श्रीकाशी विद्वत परिषद की सलाह नकारते हुए केंद्रीय देव दीपावली महासमिति ने वाराणसी में 27 नवंबर को देव दीपावली महोत्सव मनाने पर मुहर लगा दी है.  महासमिति के अध्यक्ष आचार्य वागीश दत्त मिश्र के मुताबिक कोई संशय नहीं हैं, 27 नवंबर को ही महोत्सव मनाने पर निर्णय लिया गया, उन्होंने बताया कि महासमिति समेत 84 घाट की समितियों ने यह निर्णय लिया है. 


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देव दीपावली महोत्सव
पराड़कर भवन में बुधवार को आचार्य वागीश ने जानकारी दी कि पूर्व काशीनरेश और देव दीपावली महोत्सव के प्रधान संरक्षक रहे स्व. डॉ. विभूति नारायण सिंह ने निर्णय लिया था कि उदया तिथि की पूर्णिमा पर देव दीपावली मनाई जाएगी और उसी दिन मां गंगा की महाआरती की जाएगी. काशी के विद्वानों से परामर्श के बाद यह निर्णय लिया था. हालांकि पहले विद्त परिषद ने महोत्सव 26 नवंबर की तिथि पर मनाना बेहतर बताया था. 


श्रद्धालुओं को न हो परेशानी
वागीश ने इस संबंध में और जानकारी दी. उन्होंने कहा कि लोक पर्व देव दीपावली  का आयोजन घाटों की समितियां करती हैं. परंपरा है कि कार्तिक पूर्णिमा का स्नान जिस दिन होता है महोत्सव भी उसी दिन होता है. उन्होंने कहा कि विद्वत परिषद के विद्वानों का सम्मान है पर आयोजन समिति ही तिथि का फैसला करती है. अगर व्यावहारिक दृष्टि से भी देखे तो महोत्सव को 26 नवंबर को नहीं मना सकते हैं क्योंकि 27 नवंबर को स्नान की पूर्णिमा है जिसके एक दिन पहले देव दीपावली महोत्सव के कारण घाटों पर तेल बिखराव रहने से यहां आए श्रद्धालुओं को परेशानी हो सकती है.


देव दीपावली जैसे पर्व अति विशिष्ट 
आचार्यों ने सनातनी शास्त्रों में कार्य और व्रतादि के भेद से इन तिथियों के उदय, अस्त व मध्यरात्रि और मध्यदिन कालिक जैसे अलग अलग तरह की विवेचना की है. उदाहरण के लिए रामनवमी में मध्याह्न कालिक है, तो वहीं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अर्धरात्रि कालिक, प्रदोष कालिक अमावस्या का दीपावली में मान्य होता है. ऐसे ही कार्तिक पूर्णिमा पर कई कई और व्रत पर्व होने के बारे में बताया गया है. जिसमें त्रिपुरोत्सव यानी देवदीपावली जैसे पर्व अति विशिष्ट माने गए हैं और इसका विशिष्ट स्थान काशी में है क्योंकि देवताओं ने काशी में तब दीप जलाया था और अपनी प्रसन्नता व्यक्त की थी जब शिवजी ने त्रिपुरासुर का वध किया था.


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