दिनेश कुमार मिश्रा/वाराणसी: शिरडी के साईं बाबा को कौन नहीं जानता है. संत और फकीर के रूप में पूजे जाने वाले बाबा की खासियत ही यही है कि उनके श्रद्धालुओं में हिंदू और मुस्लिम दोनों आते हैं. साईं गंगा-जमुनी तहजीब का एक दूसरा नाम हैं. कई जगह आपको बाबा के मंदिर भी मिल जाएंगे. लेकिन सनातन रक्षक दल को हिंदुओं द्वारा साईं बाबा का पूजा जाना गवारा नहीं है. दरअसल दल के कार्यकर्ताओं द्वारा मंदिरों से साईं बाबा की प्रतिमा हटाए जाने का मामला सामने आया है. मिली जानकारी के अनुसार वाराणसी के बड़े गणेश मंदिर से साईं बाबा की मूर्ति को हटाया गया है. 


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कई मंदिरों से हटाई जा रही है साईं की मूर्ति
वाराणसी के बड़े गणेश मंदिर स्थित साईं मूर्ति को मंदिर से हटाया गया है. यह सिर्फ एक मंदिर की बात नहीं है बल्कि धर्म नगरी वाराणसी के कई मंदिरों से साईं बाबा की मूर्ति को हटाने की तैयारी है. सबसे पहले काशी के बड़े गणेश मंदिर से साईं मूर्ति को हटाया गया है. सनातन रक्षक दल के सदस्यों ने रविवार रात बड़े गणेश मंदिर में स्थापित साईं की प्रतिमा को कपड़े से बांधकर हटा दिया.


आखिर क्यों हटाई जा रही है साईं की मूर्ति
साईं की मूर्ति हटाने के पीछे सनातन रक्षक दल है. दल के अध्यक्ष अजय शर्मा का कहना है कि धर्मनगरी काशी में जब सनातन धर्म के देवी देवता विराजमान हैं तो भला चांद मियां उर्फ साईं को काशी के देवालयों में क्यों पूजा जाए. इसके साथ ही सनातन रक्षक दल का कहना है कि अब अगस्तेश्वर मंदिर और भूतेश्वर मंदिर के साथ जिन मंदिरों में साईं प्रतिमा विराजमान है उसको हटाया जाएगा.


साईं को पूजे जाने को लेकर विवाद 
ऐसा पहली बार नहीं है जब साईं को पूजे जाने को लेकर विवाद हो रहा है. आपको बता दें कि शिरडी के साईं बाबा 19वीं सदी में जन्मे थे. वे दुनिया में 1918 तक रहे. अपने जीवनकाल में उन्होंने बहुत से चमत्कार दिखाए जिसके बाद से उनके चाहने वालों की संख्या बढ़ती गई. सनातन मतावलंबियों के एक तबके का मानना है कि जब साईं इंसान के रूप में जन्मे और फकीर थे तो भला उनकी पूजा क्यों हो. हालांकि साईं के चाहने वाले उन्हें आध्यात्मिक गुरु के तौर पर पूजते हैं और संत मानते हैं. उन्हें हिंदू और मुस्लिम दोनों भक्त मानते हैं. 


साईं की शिक्षाएं
साईं ने अपने अनुयायिओं को स्वयं की प्राप्ति पर जोर देने की शिक्षा दी थी. साथ ही नाशवान चीजों के प्रति मोह न रखने को कहा था. उनकी शिक्षाएं नैतिकता पर जोर देती हैं. जैसे कि सबसे प्रेम करना, क्षमा करना , दान करना, दूसरों की मदद करना, संतोष रखना, आंतरिक शांति आदि.