मेरठ/नई दिल्ली: मेरठ के विक्टोरिया पार्क में आज से ठीक 15 साल वो हादसा हुआ था जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. यहां ट्रेड फेयर लगा था. सैकड़ों की भीड़ थी. लोग मन-पसंद चीजें खरीदने-देखने में व्यस्त थे. तभी मेले के पांडाल में एक हल्की चिंगारी उठी. जब तक लोग कुछ समझ पाते आग चिंगारी भीषण आग में तब्दील हो गई. चीख-पुकार मच गई. यह तीन पांडालों में लगी और अपने साथ 64 लोगों को राख बनाकर शांत हुआ. तकरीबन 161 लोग घायल हुए. कई रिपोर्ट्स में दावा किया था कि 3 लोगों की इलाज के दौरान मौत हो गई. हालांकि सरकारी आंकड़े में कुल 65 मौत का जिक्र मिलता है. आज भी लोग विक्टोरिया पार्क अग्निकांड को याद कर सिहर उठते हैं.


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जहां नजर पड़ती दिख रहीं थीं अधजली लाशें
दरअसल, विक्टोरिया पार्क में अग्निकांड शायद इतना वीभत्स न होता. लेकिन पांडाल पैक थे. एंट्री-एग्जिट के रास्ते सिर्फ दो ही थे. इस वजह से लोगों पांडालों से निकलने में परेशानी हुई. शाम को एक पांडाल में शार्ट सर्किट से उठी चिंगारी ने अपनी चपेट में तीन पांडालों को ले लिया था. देखते ही देखते मेले में मौजूद लोग अग्निकांड के शिकार हो गए. हर तरफ लाशों के ढेर थे, घायलों की चीख पुकार मची थी. शहर का ऐसा कोई अस्पताल ऐसा नहीं था, जहां इस हादसे के घायलों को भर्ती न कराया गया हो. मोर्चरी में पड़े शवों के ढेर को देखकर हर किसी का दिल दहल रहा था. सैकड़ों इस अग्निकांड में झुलस गए. कई परिवार उजड़ गए. कइयों को जिंदगीभर का दर्द मिला.


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अग्निकांड के बाद फूटा था लोगों का गुस्सा
इस घटना के बाद से मेले के तीनों आयोजकों और जिला प्रशासन व पुलिस के खिलाफ गुस्सा फूट पड़ा. जगह-जगह विरोध और जाम हुए.  घटना के बाद यहां मलवा हटवाने के लिए चलवाए बुल्डोजर से कलेक्ट्रेट में भी तोड़फोड़ की गई. आयोजक लखन तोमर, असित गुप्ता और सिद्धार्थ मनोहर के खिलाफ मामला दर्ज किया गया. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. वो सुप्रीम कोर्ट चले गए. इस हादसे की जांच के लिए जून 2006 में हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस ओपी गर्ग की अध्यक्षता में प्रदेश सरकार ने एकल आयोग का गठन कर दिया. उसी वक्त इस हादसे में परिवार के पांच लोगों को गंवाने वाले संजय गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई. उन्होंने यह केस सीबीआई को सौंपने और मृतकों के परिजनों को 20 लाख व गंभीर घायलों को 5-5 लाख मुआवजा देने की मांग कोर्ट से की.


मुआवजा के नाम पर ये मिला
साल 2007 के सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने आयोजक लखन तोमर की जमानत मंजूर कर दी. इसके अगले साल तोमर ने हाई कोर्ट से उस पर लगे आपराधिक मामले को खत्म करने की याचिक लगाई. हालांकि इतने सालों बाद भी तीनों आयोजकों पर किसी तरह का क्रिमिनल चार्ज नहीं लगाया गया. सुप्रीम कोर्ट ने ओपी गर्ग को कार्रवाई की जांच में उल्लंघन पाया. इसके बाद 2014 में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज एसबी सिन्हा की अध्यक्षता में आयोग बना. कोर्ट ने संजय गुप्ता की याचिका पर संज्ञान लेते हुए मृतकों के परिजनों को 5-5 लाख गंभीर घायलों को 2 लाख और मामूली रूप से घायलों को 75000 रुपये देने का आदेश दिया था. आयोजकों पर कार्यवाही पर कोर्ट ने कुछ नहीं कहा था. उनसे 30 लाख रुपये अंतरिम मुचलका भरने को कहा था.


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शासन-प्रशासन की घोर लापरवाही, नतीजा सिफर
इस भीषण अग्निकांड में शासन-प्रशासन की घोर लापरवाही सामने आई. मेले के आयोजकों ने घटना के लिए पूरी तरह सरकारी तंत्र को जिम्मेदार बताया. वहीं पीड़ित पक्ष का कहना है कि इस हादसे के लिए आयोजक और सरकारी तंत्र दोनों जिम्मेदार हैं. सरकारी तंत्र ने कर्तव्य नहीं निभाया तो आयोजकों ने नियमों का पालन न कर घोर लापरवाही बरती. चूंकि तत्कालीन सरकार सपा की थी और मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे. आयोजकों को भी सरकारी तंत्र ने पूरा मौका दिया. जिम्मेदारी से बचने के लिए आयोजकों ने अपनी चल-अचल संपत्तियों को अपने परिचितों और रिश्तेदारों को ट्रांसफर करने का आरोप लगा था. 


जारी है इंसाफ की लड़ाई 
इस प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर न्यायिक आयोग पूर्व जस्टिस एसबी सिन्हा की जांच रिपोर्ट सार्वजनिक की जा चुकी है. तमाम गवाहों और लंबी जांच के बाद इसका निष्कर्ष सामने आया. आयोग ने इस मेले के आयोजकों को घटना के लिए साठ प्रतिशत और सरकारी तंत्र को चालीस प्रतिशत दोषी माना, लेकिन पीड़ित लोगों का कहना है कि उन्हें इंसाफ नहीं मिला. पीड़ित पक्ष ने मृतकों के परिजनों के लिए 20-20 लाख रुपये मुआवजे की मांग की थी. अब तक पीड़ित पक्ष को राज्य सरकार की तरफ से सात-सात लाख रुपये मुआवजा मिल चुका है. लेकिन संजय गुप्ता की लड़ाई जा रही है. हादसे में मारे गए लोगों की याद में अग्निकांड आहत कल्याण समिति द्वारा विक्टोरिया पार्क में शांति यज्ञ कराया जाता है. इस बार भी ऐसा किया जाएगा. शाम को साढ़े छह बजे समृतिका पर श्रद्धांजलि दी जाएगी.


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