मुगल बादशाह शाहजहां ने जिस मुमताज की याद में दुनिया का सातवां अजूबा ताजमहल बनवा दिया, उसकी मौत 39 साल की उम्र में हुई और बेहद दर्दनाक थी. ताजमहल या ममी महल के लेखक... अफसर अहमद ने अपनी किताब में उन दर्दनाक वर्णन पलों का वर्णन किया है जब शाहजहां की बेगम मुमताज ने आखिरी सांस ली थी.....ये तो ज्यादातर लोगों ने किताबों में पढ़ा होगा या सुना तो जरूर होगा कि मुगल शासक शाहजहां अपनी बेगम मुमताज से बेहद प्यार करता था. वह उससे कभी दूर नहीं होना चाहता था. इसलिए जब डेक्कन में विद्रोह को काबू में करने के लिए शाहजहां को दक्षिण भारत जाना पड़ा तो वह मुमताज को भी अपने साथ ले गया. शाहजहां आगरा से 787 किलोमीटर दूर धौलपुर, ग्वालियर, मारवाड़ सिरोंज, हंदिया होता हुआ बेगम मुमताज को बुरहानपुर ले गया. जहां विद्रोही से निपटने का सैनिक अभियान चल रहा था. बेगम मुमताज उस वक्त गर्भवती थी और लंबी यात्रा का असर उनके गर्भ पर पड़ा. इसकी वजह से मुमताज को दिक्कतें शुरू हो गईं. उधर जिस वक्त मुमताज की तबीयत बिगड़नी शुरू हुई शाहजहां डेक्कन के विद्रोह को खत्म करने की रणनीती बना रहा था. और मुमताज के पास नहीं था. शाहजहां ने बेगम की देखभाल के लिए दाइयों को भेजने के निर्देश दिए. 16 जून 1631 की रात मुमताज की प्रसव पीढ़ा बढ़ गई. अपनी मौत से पहले मुमताज ने शाहजहां से दो वादे लिए ...पहला वादा शादी न करने का ...और दूसरा वादा...एक ऐसा मकबरा बनवाने का ...जो अनोखा हो....और इसके कुछ ही देर बाद सुबह होने से पहले मुमताज ने दम तोड़ दिया.