Shri Shri 108 : हिन्‍दू धर्म में गुरु-शिष्‍य परंपरा सदियों पुरानी है. सनातन धर्म में साधु-संत और गुरुओं का नाम बड़े ही आदर से लिया जाता है. बहुत कम ही लोगों को पता है कि संत महत्‍मा के नाम के आगे श्रीश्री, 108 और 1008 क्‍यों लिखा होता है. तो आइये जानते हैं इसके पीछे का कारण और इसका मतलब?. 


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यह है असली वजह 
दरअसल, संत-महत्‍मा के नाम के आगे श्रीश्री, 108 और 1008 लिखने की परंपरा बहुत पुरानी है. 108 अथवा 1008 की संख्या को जोड़ने पर सभी अंकों का योग 9 आता है. वास्तव में संन्यासी एवं आध्यात्मिक जगत के विद्वान तथा ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाता 9 अंक को पूर्णांक मानते हैं. पूर्णांक होने के कारण सनातन धर्म का पूर्ण ज्ञान होने पर यह उपाधि दी जाती है. 


यह है अंक का मतलब 
हिंदी वर्णमाला के सभी अक्षरों को यदि क्रमानुसार अंक दिए जाए तो विद्वानों के अनुसार ब्रह्म शब्द के सभी अक्षरों से संबंधित अंकों का योग करने पर 108 बनता है. यही कारण है कि हिन्दू धर्म में इस संख्या को खास महत्‍व दिया गया है. एक सौ आठ का अंक ब्रह्म की पूर्णता को प्रदर्शित करता है. एक सौ आठ में एक का अंक ब्रह्म की पूर्णता को प्रदर्शित करता है. एक सौ आठ की संख्या में शून्य का अंक विश्व की अनुपस्थिति में उत्पन्न हुई शून्य की अवस्था को दर्शाता है. वहीं, आठ का अंक विश्व की अनंत का सूचक है. इसलिए अति विशेष व्यक्तियों के नाम के आगे 108 लगाया जाता है. 


ये नहीं मानते परंपरा 
वहीं, कुछ साधु-संन्यासी इस परंपरा का पालन नहीं करते. इनमें निर्मल अखाड़ा, उदासी और वैरागी शामिल हैं. फिर भी धर्मनगरी के साधु-संत अपनी गाड़ियों के नंबर प्लेट पर 108 या 1008 देखना चाहते हैं. जब बात गाड़ी के रजिस्ट्रेशन की आती है तो साधु-संतों के पास यही विकल्प होते हैं. इन गाड़ियों के नंबरों से साधुओं की अनूठी पहचान का पता चलता है. इसका आकर्षण उन साधुओं में भी है जिन्हें 108 या 1008 की उपाधि नहीं दी गई है. 


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