बड़े शहरों के बढ़ते दबाव के बीच एक बार फिर उत्तर प्रदेश में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने की चर्चा ने जोर पकड़ लिया है.
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लखनऊ: पिछले दो दशकों में उत्तर प्रदेश में ऐसे कई मौके आए जब शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली को लागू करने की बात उठी. लेकिन, हर बार मामला ठंडे बस्ते में चला गया. पुलिस अधिकारी हर बार इसका ठीकरा आईएएस अफसरों पर फोड़ते रहे. अखिलेश सरकार में भी तत्कालीन डीजीपी रिज्वान अहमद ने इसकी कवायद शुरू की थी पर बताया गया कि अखिलेश यादव ने इस प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ाया.
वहीं अब, पिछले एक दो दिनों से एक बार फिर उत्तर प्रदेश में पुलिस कमिश्नर प्रणाली के लागू होने की बात जोरों पर है. दरअसल, बड़े शहरों के बढ़ते दबाव के बीच एक बार फिर उत्तर प्रदेश में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने की चर्चा ने जोर पकड़ लिया है. माना जा रहा है कि फिलहाल चर्चा के केंद्र बिंदु में उत्तर प्रदेश के दो प्रमुख शहर हैं. पहला राजधानी लखनऊ और दूसरा एनसीआर क्षेत्र का गौतमबुद्ध नगर. सरकार फिलहाल इन दोनों शहरों में प्रयोग के तौर पर पुलिस कमिशनरी सिस्टम लागू करने पर विचार कर रही है. शायद यही कारण है कि दोनों प्रमुख शहरों में कल हुए स्थान्तरण में कोई भी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अभी तक तैनात नहीं किया गया है. लेकिन, जब इस सिस्टम को यूपी में लागू करने की बात हुई है तब मामले ने आईएएस बनाम आइपीएस का रूप ले लिया है.
आईएएस बनाम आईपीएस की वजह
जानकार इसे वर्चस्व कि लड़ाई के रूप में देखते हैं. जहां एक ओर आईपीएस अपने अधिकारों को पाने के लिए बेचैन दिखाई देता हैं तो वहीं दूसरी ओर आईएएस खेमा अपने अधिकारों को न छिनने देने के लिए लगा रहता है. बता दें कि कमिश्नरी सिस्टम लागू होने के बाद डीएम के अधिकार पुलिस कमिश्नर के पास चले जायेंगे.
डीएम को कानून और व्यवस्था के मामले में सीआरपीसी में 107 से 122 शांति भंग और हैबिट्यूल ऑफेंडर आदि तक के अधिकार हैं. 133 सीआरपीसी पब्लिक न्यूसेन्स में कार्रवाई के अधिकार हैं. साथ ही 144 सीआरपीसी लागू करने का भी आधिकार है. 145 सीआरपीसी कुर्की आदि कि कार्रवाई, शस्त्र लाइसेंस जारी करने का अधिकार भी जिलाधिकारी के पास है. वहीं इसके साथ आर्म्स एक्ट में कार्रवाई, गुंडा एक्ट, गैंगस्टर एक्ट और एनएसए लगाने का अधिकार भी डीएम के पास है.
अभी तक कि व्यवस्था में ज्यादातर मामलों में पुलिस से रिपोर्ट ली जाती है, पर फाइनल अथॉरिटी जिलाधिकारी के पास ही होती है.
लेकिन, पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने के बाद यह सारे अधिकार जिले के पुलिस कमिश्नर के पास आ सकते हैं यदि नियमों में कोई बदलाव नहीं किए गए तो.
बता दें कि अगर उत्तर प्रदेश में कमिशनरी सिस्टम लागू होता है तो जिलाधिकारी के मजिस्ट्रियल पावर खास तौर पर कानून और व्यवस्था संबंधित अधिकार पुलिस कमिश्नर के अधीन हो जाएंगे. शायद, यही शिफ्टिंग ऑफ पावर उत्तर प्रदेश में विवाद की जड़ रहा है और यह सिस्टम आगे नहीं बढ़ पाया है.
हालांकि, आईपीएस इसके लागू होने को आमजन के लिए और कानून और व्यवस्था कि दृष्टि से बेहतर मानते हैं. वहीं आईएएस इसको मोनोपोली के नजरिये से देखते है.
मुम्बई, दिल्ली जैसे शहरों में लागू है पुलिस कमीशनरी सिस्टम
पुलिस कमीशनरी सिस्टम उत्तर प्रदेश के बाहर कई बड़े शहरों में पहले से लागू है. चाहे वो फिर मुम्बई हो, दिल्ली हो, बेंगलुरु हो या फिर गुरुग्राम. पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने के साथ ही ऐसा माना जा रहा है कि आईजी लेवल का अधिकारी ही पुलिस कमिश्नर की कमान संभालेगा. पुलिस कमिशनरी सिस्टम में कमिश्नर के अलावा हर एक क्षेत्र के लिए डीसीपी, एसीपी लेवल के अधिकारी नियुक्त होते हैं जो बेहतर पोलिसिंग में सहायक होते हैं.
हांलाकि, अभी ये कह पाना मुश्किल है कि आईएएस बनाम आईपीएस की इस रस्साकस्सी में क्या यहां वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की जगह पुलिस कमिश्नर लिखा जा पायेगा या नहीं. लेकिन, बढ़ती आबादी और शहर दोनों इस बात की तरफ इशारा कर रहे हैं कि इस सिस्टम से बहुत देर तक अछूता राह पाना सरकार के लिए मुश्किल ही होगा.