रजत सिंह/लखनऊ:  उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले जिला पंचायत अध्यक्ष (Zila Panchayat Adhyaksh) के चुनाव हुए. इस चुनाव में भाजपा ने एक तरफा जीत हासिल की. 75 सीटों में से 65 पर भाजपा को जीत मिली, जबकि सपा के खाते में सिर्फ 6 सीटें आईं. कई ऐसी सीटें रहीं, जहां विपक्ष काफी मजबूत था, लेकिन भाजपा ने फिर भी सफलता हासिल कर ली.  लेकिन इन सबके बीच जौनपुर (Jaunpur Zila Panchayat Adhyaksh) की सीट ने सबका ध्यान खींच लिया. यहां भाजपा की समर्थन से अपना दल (S) की प्रत्याशी रीता पटेल चुनावी मैदान में थीं.  अंत में आते-आते अपना दल (S) ने खेल पलट दिया और निर्दलीय श्रीकला सिंह को अपना समर्थन दे दिया. श्रीकला जो बाहुबली नेता धनंजय सिंह की पत्नी हैं, वो बड़े अंतर से जीत गईं.


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Zila Panchayat Adhyaksh: रिजल्ट देखने के पहले ये जान लीजिए कैसे होता है चुनाव, नहीं दबता कोई बटन- नहीं लगती है मुहर


किसे मिला कितना मत? 
चुनावी मैदान में चार प्रत्याशी थे. इसमें भाजपा-अपना दल के गठबंधन से रीता पटेल मैदान में थीं. सपा की तरफ पूर्व विधायक राजबहादुर यादव की बहू निशी यादव मैदान में थीं. वहीं, भाजपा की बागी नीलम सिंह सबको चुनौती दे रही थीं. इन सबके अलावा अजीत सिंह हत्याकांड में फरार चल रहे बाहुबली और पूर्वं सांसद धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला भी चुनाव लड़ रही थीं. अंत में 42 मतों के साथ श्रीकला ने जीत हासिल की, जबकि 23 मत के साथ नीलम सिंह दूसरे नंबर पर रहीं. 


आखिर अपना दल ने क्यों किया धनंजय सिंह का समर्थन
समर्थन के वक्त जौनपुर के अपना दल (S) के जिला अध्यक्ष ने बताया कि ऐसा सपा के प्रत्याशी को हराने के लिए किया गया. इस मुद्दे पर जब हमने जौनपुर के अपना दल के एक पदाधिकारी से बात की, तो उन्होंने नाम न बताने के शर्त पर बताया कि ऐसा नीलम सिंह की वजह से हुआ. दरअसल, नीलम सिंह के खड़े होने के बाद भाजपा और अपना दल के स्थानीय नेताओं के बीच मामला बिगड़ गया. कई बार बैठक हुईं, लेकिन भाजपा की लोकल लीडरशिप अपना दल प्रत्याशी को वोट देने को तैयार नहीं हुई, जबकि केंद्रीय नेत्तृव और राज्य नेत्तृव ने ये सीट अपना दल को दिया था. 


अपना दल के पदाधिकारी ने बताया कि आखिरी समय तक भाजपा के लोकल लीडरशिप से बात चलती रही. लेकिन नीलम सिंह को लेकर बनी स्थिति को देखते हुए फैसला लिया गया. अपना दल ने धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला को समर्थन देने का फैसला लिया. ऐसे में नीलम सिंह नहीं जीत सकीं. हालांकि, समर्थन ना मिलने से लोकल नेताओं में नाराजगी है. लेकिन इसका असर भाजपा और अपना दल के केंद्र और राज्य स्तर गंठबंधन पर नहीं पड़ने वाला है.