आम जनता सीधे जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव करती है. ना ही कोई बटन दबता है और ना ही कोई मुहर लगती है.
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लखनऊ: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले जिला पंचायत अध्यक्ष (Zila Panchayat Adhyaksh) के चुनावों को लेकर हंगामा मचा हुआ है. समाजवादी पार्टी (SP) रिजल्ट से पहले ही भारतीय जनता पार्टी (BJP) के ऊपर हमलावर है. विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल कहा जाने वाला ये चुनाव इतना भी आसान नहीं है. ना ही आम जनता सीधे जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव करती है. ना ही कोई बटन दबता है और ना ही कोई मुहर लगती है. आइए रिजल्ट देखने से पहले ये तो जान लेते हैं कि कैसे होता है चुनाव...
कौन करता है चुनाव?
सबसे पहले ग्राम पंचायत के चुनाव होते हैं. कुछ दिनों पहले ही यूपी में ग्राम पंचायत चुनाव समाप्त हुए हैं. इनमें हर जिले में कई वार्ड होते हैं. इन वार्ड से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव किया जाता है. पूरे प्रदेश में 3051 पंचायत सदस्य चुनकर आए हैं. हर जिले के जिला पंचायत सदस्य ही अध्यक्ष का चुनाव करते हैं. कुल 75 जिलों में 75 जिला पंचायत अध्यक्ष चुने जाएंगे.
कौन लड़ सकता है चुनाव?
चुनाव लड़ने के लिए भी हर कोई आवेदन नहीं कर सकता. जिला पंचायत सदस्य ही जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी कर सकते हैं. इसके लिए 1500 रुपये का पर्चा खरीदना होता है और 10 हजार रुपये की जमानत राशि जमा करनी होती है. हालांकि, आरक्षित वर्ग या महिला प्रत्याशी के लिए 750 रुपये में फॉर्म मिला जाता है और 5 हजार रुपये बतौर जमानत राशि जमा करनी होती है.
क्या पार्टियां लड़ती हैं चुनाव?
चुनावी प्रक्रिया समझने के लिए हमने पूर्वांचल के वरिष्ठ पत्रकार और इस विषय पर नजर रखने वाले नीतीश सिंह से बात की. उन्होंने कहा कि दरअसल, किसी को भी पार्टी का सिंबल नहीं मिलता है. चुनाव बिल्कुल व्यक्तिगत रूप से लड़ा जाता है. हालांकि, आज कल पार्टियां लिस्ट जारी करती हैं, जिसके आधार पर मीडिया ये बताता है कि फलां प्रत्याशी फलां पार्टी का है और वोट भी सिंबल पर नहीं, बल्कि व्यक्ति के चेहरे पर मांगा जाता है. पिछले कुछ सालों से देखने को मिला है कि पार्टियां हर चुनाव को अहमियत देने लगी हैं. यही वजह है कि जिला पंचायत अध्यक्ष को लेकर वह इतनी सक्रिय रहती हैं.
कैसे होता है चुनाव?
चुनाव के लिए बैलेट पेपर या वोटिंग मशीन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. पेपर के सामने अंक लिखकर वोट दिया जाता है. नीतीश बताते हैं कि जिस प्रत्याशी के आगे 1 नंबर लिखा जाता है मत उसी का माना जाता है. अगर टाई हो जाए, तो टॉस उछालकर फैसला किया जाता है. दरअसल, दो प्रक्रिया हैं. अगर बराबरी की स्थिति होती है, तो 2 नंबर के मत गिने जाते हैं. लेकिन दिक्कत ये है कि कई वोटर सिर्फ 1 लिखकर ही चले आते हैं. ऐसा कम ही देखने को मिलता है, जब कोई वोटर या जिला पंचायत सदस्य वरीयता के हिसाब से वोट दे. इस स्थिति में टॉस से ही फैसला लिया जाता है.
अंदर खाने और बहुत कुछ
नीतीश के मुताबिक, चुनाव इतना आसान नहीं है. धन बल का खूब प्रयोग होता है. दरअसल, सत्ता में रहने वाली पार्टी अक्सर इसका इस्तेमाल करती है. ज्यादातर प्रत्याशी निर्विरोध चुन लिए जाते हैं. ऐसा इसलिए संभव है कि प्रत्याशी वोटर को नाम और पते से पहचानते हैं. जैसे अयोध्या जिले में 40 जिला पंचायत सदस्य हैं, तो जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ने वाला पहले ही उनके बारे में आसानी से पता लगा लेते हैं. उनके ऊपर दबाव डाला जाता है. चुनाव के बाद उन पर पुलिस केस कराए जाते हैं, जिससे वोट अपने पक्ष में कराया जाए. इसके अलावा, जिला पंचायत सदस्य को जीत के बाद एक सर्टिफिकेट भी मिलता है, जिसके बिना वोट नहीं डाला जा सकता है. मजबूत प्रत्याशी ये सर्टिफिकेट उनसे ले लेते हैं.
वह आगे बताते हैं कि जहां पर स्थिति फंसती है, वहां पैसे का भी खूब इस्तेमाल किया जाता है. यह ऑफिशियल तो नहीं है. लेकिन इस बात की चर्चा कहें या अफवाह कि इस वक्त वोट लेने के लिए प्रत्याशी 50 लाख रुपये तक दे रहे हैं. कहीं-कहीं पैसे के संग गाड़ी भी मिलती है. लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि ऑफिशियल तौर पर प्रत्याशी सिर्फ 4 लाख रुपये तक ही खर्च कर सकता है.
इतनी मेहनत करने के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष को क्या मिलता है?
अब आप सोच रहे होंगे कि इतना खर्च और मेहनत के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष को क्या मिलता है? सबसे पहले रुतबा मिलता है. इस पद को सांसद के बराबार माना जाता है. इसके अलावा सैलरी भी मिलती है, जो करीब 14000 रुपये है. इनके अलावा जिला पंचायत बिल्कुल ही नगर निगम की तरह काम करती है. जैसे शहरों में विकास काम नगर निगम कराती है. ठीक वैसे ही गांवों में जिला पंचायत कराती है. एक किस्म के गांवों में विकास की रुपरेखा खींचती है.
अगर फंड की बात करें, तो राज्य सरकारें और केंद्र सरकार दोनों ही जिला पंचायत को फंड देती हैं. इसके अलावा, जिला पंचायत अपने स्तर पर टैक्स वसूली भी करती है. मकानों के नक्शे पास करने, बाजार से वसूली करने का काम करती है. अब आप समझ गए होंगे कि आखिर जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव को लेकर इतना हंगामा क्यों मचा है.