नई दिल्ली: देवभूमि उत्‍तराखंड (Uttarakhand) को यूं तो उसकी खूबसूरत पहाड़ियों और सनातन हिंदू धर्म की आस्था के प्रतीक चार प्राचीन धामों के बारे में जाना जाता है. इसके अलावा भी यहां कई ऐसी कहानियां और लोकेशन हैं. जिनके बारे में जानकर आप हैरान रह जाएंगे. इसी उत्‍तराखंड के चंपावत में एक गांव ऐसा मिलेगा जहां पर इंसान नहीं बल्कि भूत रहते हैं. किसी समय में यहां भारी चहल-पहल रहती थी लेकिन अब यहां भूतों का डेरा होने की वजह से सन्‍नाटा पसरा है. 


चंपावत की कहानी


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उत्तराखंड के निवासियों के मुताबिक कहा जाता है कि चंपावत के इस रहस्यमयी गांव में टोटल 8 भूत हैं. जो इस गांव में किसी इंसान को बसने नहीं देते हैं. वहीं जानकार लोग चंपावत के स्वाला गांव में भूलकर भी पैर नहीं रखते. यहां कभी इंसानों की चहल-पहल थी लेकिन आज सन्नाटा पसरा है. हालात ऐसे बने कि लोगों ने गांव का नाम बदलकर ‘भूत गांव’ रख दिया है. 


कैसे हुई शुरुआत?


दरअसल इस भुतहे गांव की कहानी ये है कि करीब 63 साल पहले सुरक्षाबलों की एक गाड़ी के गिरने बाद इसके वीरान होने की शुरुआत हुई. इस गांव के आस-पास भी कोई इंसानी गांव नहीं है. लोगों का कहना है कि गांव की जमीन ऐसी है कि यहां से गुजरने वाले को इनके मंदिर में रुक कर आगे बढ़ना होता है. साल 1952 में हुए उस हादसे के बाद सब कुछ बदल गया. जवानों की गाड़ी खाई में गिरी उसमें सेना के 8 जवान थे. कहा जाता है कि जवानों ने गांव वालों से मदद की अपील की. मगर गांव वाले उन्हें बचाने की जगह उनके सामान को लूटने लगे. 


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यहीं से गांव के वीरान होने की कहानी शुरू हो गई है. आसपास रहने वाले लोगों का मानना है कि उस हादसे के बाद से ही यहां पर 8 जवानों की आत्माएं उस गांव में निवास करती है. उन्होंने गांव वालों को परेशान करने लगे जिसका नतीजा यह हुआ कि गांव वालों को अपना गांव छोड़ना पड़ा. तब से लेकर अब तक गांव आज तक नहीं बसा. 


1700 गांव हुए वीरान


इस वाकये के अलावा उत्तराखंड के सैकड़ों गावों के 'भुतहा' (Haunted)  होने की कहानी भी दिलचस्प है. इन गावों के वीरान होने की वजह यहां से दूसरे प्रदेशों में हुआ पलायन रहा. प्राकतिक आपदाओं, संसाधनों के दोहन के नाम पर हुए मैन मेड डिजास्टर और गांवो में संसाधनों की कमी के चलते लोग दिल्ली समेत देश के बाकी हिस्सों में बस गए. एक अनुमान के मुताबिक बड़े स्‍तर पर होने वाले पलायन की वजह से सूबे के 1700 गांव खाली हो चुके हैं. यही वजह है कि इन गांवों को लोग अब भूतिया गांवों के तौर पर पुकारने लगे हैं.


हालांकि कोरोना काल में बाहर बसे लोगों की जीवनी पर असर पड़ा तो सरकारी आंकड़ों यानी उत्तराखंड माइग्रेशन कमिशन (Uttarakhand migration commission) की 30 सितंबर, 2020 को आई रिपोर्ट के मुताबिक तीन लाख, 27 हजार लोग अपने गांव वापस लौटे. हालांकि भुतहा कैटेगिरी वाले गांवों की बात करें तो इस सूची में बलूनी गांव भी शामिल है जहां अभी तक कोई भी वापस नहीं लौटा. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की आबादी सिर्फ 32 लोगों की थी. उसके बाद ये गांव भी भुतहा करार दिया जाने लगा. इसी तरह रूरल डेवलपमेंट एंड माइग्रेंट कमिशन की वेबसाइट के मुताबिक कुछ गांवों में 100 से भी कम लोग रहते हैं यानी बाकी जिले के गांवों की सूरत भी ऐसी है जहां 80% से ज्‍यादा आबादी का पलायन हुआ.


(नोट - इस लेख में प्रकाशित जानकारी सरकारी आंकड़ो और उत्तराखंड के लोगों की मान्यताओं पर आधारित है. ज़ी न्यूज़ किसी स्थान या गांव के 'भूतहा' होने की पुष्टि नहीं करता.)