Buddhadeb Bhattacharjee Demise: पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज कम्युनिस्ट नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य का कोलकाता स्थित उनके आवास पर गुरुवार को निधन हो गया. वह 80 साल के थे. भट्टाचार्य के परिवार में उनकी पत्नी मीरा और बेटी सुचेतना हैं. उनकी बेटी ने हाल ही में लिंग परिवर्तन से संबंधित सर्जरी कराई है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भट्टाचार्य के निधन पर दुख व्यक्त किया है. 


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ममता बनर्जी सरकार ने भट्टाचार्य के सम्मान में की छुट्टी की घोषणा


पश्चिम बंगाल सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री के सम्मान में गुरुवार (8 अगस्त, 2024) को छुट्टी की घोषणा की. सीएम ममता बनर्जी ने कहा कि राज्य सरकार पूरे सम्मान से भट्टाचार्य का अंतिम संस्कार कराएगी. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट में लिखा, ‘‘पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के आकस्मिक निधन से स्तब्ध और दुखी हूं. मैं उन्हें पिछले कई दशकों से जानती थी और पिछले कुछ वर्षों में जब वह बीमार थे और घर पर थे तब मैंने उनसे कई बार मुलाकात की थी. दुख की इस घड़ी में मीरा दी और सुचेतन के प्रति मेरी हार्दिक संवेदनाएं.’’



बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने भी जताया शोक


बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने भी पूर्व मुख्यमंत्री भट्टाचार्य के निधन पर शोक व्यक्त किया. भाजपा के नेता अधिकारी ने कहा, ''मुझे यह जानकर गहरा दुख हुआ कि पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य नहीं रहे. मैं उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना करता हूं.’’मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की राज्य इकाई के सचिव मोहम्मद सलीम ने बुद्धदेव भट्टाचार्य के निधन की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि भट्टाचार्य ने गुरुवार सुबह साढ़े आठ बजे अंतिम सांस ली. 


मेडिकल रिसर्च के लिए सौंपा जाएगा बुद्धदेव भट्टाचार्य का पार्थिव शरीर


मोहम्मद सलीम ने बताया कि बुद्धदेव भट्टाचार्य का पार्थिव शरीर दिन में शवगृह में रखा जाएगा और शुक्रवार को अलीमुद्दीन स्ट्रीट स्थित माकपा के राज्य मुख्यालय ले जाया जाएगा. जहां लोग उन्हें आखिरी बार देखने और श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए जुटेंगे. सलीम ने बताया कि इसके बाद माकपा मुख्यालय से उनका शव अस्पताल ले जाया जाएगा. क्योंकि भट्टाचार्य ने पहले ही यह ऐलान कर दिया था कि मरने के बाद उनका शरीर मेडिकल रिसर्च के लिए समर्पित कर दिया जाए. 


2011 में खुद हार गए थे भट्टाचार्य, 34 साल बाद लेफ्ट सत्ता से आउट


बुद्धदेव भट्टाचार्य के निधन की खबर सुनकर उनके आवास के पास बड़ी संख्या में माकपा नेता और कार्यकर्ता जमा हो गए. दूसरे तमाम राजनीतिक दलों के नेता भी उनके फ्लैट पर पहुंचे. वरिष्ठ माकपा नेता साल 2000 में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने थे. साल 2011 के बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस से हारने के साथ माकपा के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे का 34 साल का शासन खत्म हो गया था. इस चुनाव में भट्टाचार्य अपनी सीट हारने वाले बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री हो गए थे.


सिंगूर और नंदीग्राम मामले में काफी विवादों में घिर रहे भट्टाचार्य 


साल 2000 से 2011 तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे बुद्धदेव भट्टाचार्य सिंगूर और नंदीग्राम मामले में काफी विवादों में घिर रहे थे. उन्होंने 2015 में माकपा पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति से इस्तीफा दे दिया था. साल 2016 से, वह अपने बिगड़ते स्वास्थ्य और आंखों की रोशनी कम होने के कारण पाम एवेन्यू पर अपने छोटे से दो बेडरूम वाले अपार्टमेंट तक ही सीमित हो गए थे. साल 2018 में उन्होंने अपनी पार्टी के राज्य समिति की सदस्यता भी छोड़ दी थी. 


साल 2022 में पद्म भूषण पुरस्कार लेने से कर दिया था इनकार


रिपोर्ट के मुताबिक कुछ कॉमरेड उन्हें मार्क्सवादी कम और बंगाली ज़्यादा मानते थे. उनके पहनावे और बातचीत के सलीके के कारण लोग उन्हें भद्रलोक कहा करते थे. आर्थिक उदारवाद लागू करने और पूंजीवाद के साथ तालमेल बिठाने के चलते कुछ कॉमरेड उन्हें 'बंगाली गोर्बाचोव' भी कहते थे. पिछले कुछ वर्षों से बिगड़ती सेहत के चलते वह सार्वजनिक कार्यक्रमों से दूर रहते थे और अधिकतर समय अपने आवास में ही बिताते थे. साल 2022 में जब एनडीए सरकार ने उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार देने की घोषणा की तो उन्होंने इसे लेने से इनकार कर दिया था. 


बुद्धदेव भट्टाचार्य की पारीवारिक पृष्ठभूमि, पूजा-पाठ का माहौल


उत्तरी कोलकाता में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में 1 मार्च 1944 को बुद्धदेव भट्टाचार्य का जन्म हुआ था. उनके दादा कृष्णचंद्र स्मृतितीर्थ मौजूदा बांग्लादेश के मदारीपुर जिले के रहने वाले थे. वे संस्कृत स्कॉलर, पुजारी और लेखक भी थे. उन्होंने पुरोहित दर्पण नाम से एक पुरोहित मैनुअल की रचना की थी जो पश्चिम बंगाल में बंगाली हिंदू पुजारियों के बीच आज भी लोकप्रिय है. वहीं, बुद्धदेव के पिता नेपालचंद्र भट्टाचार्य अपने पारिवारिक प्रकाशन सारस्वत लाइब्रेरी से जुड़े थे. 


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बुद्धदेव भट्टाचार्य का शैक्षणिक, आर्थिक और राजनीतिक करियर


बुद्धदेव भट्टाचार्य ने कोलकाता के शैलेन्द्र सरकार स्कूल से शुरुआती पढ़ाई के बाद प्रेसीडेंसी कॉलेज से बंगाली साहित्य में बीए ऑनर्स की डिग्री हासिल की. उन्होंने पुजारी बनने का काम छोड़कर सरकारी स्कूल में शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया था. साल 1966 में उन्होंने माकपा की सदस्यता लेने के साथ राजनीति में एंट्री ली और एक के बाद एक कदम बढ़ाते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे. हालांकि, आर्थिक उदारवाद और औद्योगिकरण के समर्थन के चलते उन्हें पार्टी के अंदर और बाहर काफी विरोध झेलना पड़ा और सरकार गंवानी पड़ी.


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