UP: सबसे पहले जहां होने जा रही 136 सीटों पर वोटिंग, जाने क्या है वहां का सियासी गणित?
Western UP Politics: बीजेपी के नेता जब पूर्वी उत्तर प्रदेश से विकास के दावे कर रहे थे तब समाजवादी पार्टी (SP) पश्चिमी यूपी पर फोकस कर रही थी. दरअसल 2017 के विधान सभा चुनाव में पश्चिमी यूपी के 26 जिलों की 136 में से 109 सीट पर बीजेपी (BJP) ने जीत हासिल की थी.
नई दिल्ली: पांच राज्यों में सियासी बिगुल बज चुका है. इस बार सात चरणों में होने जा रहे यूपी विधान सभा चुनाव (UP Election 2022) में सबसे पहले वोटिंग पश्चिमी उत्तर प्रदेश (West UP) में होने जा रही है. ऐसे में क्या कहता है वहां का सियासी गणित ये सवाल सभी पॉलिटिकल पंडितों के दिमाग में गूंज रहा है. राजनीति के जानकारों के अलावा चाय और छोटी मोटी दुकानों पर जुटने वाले लोग भी जानना चाहते हैं कि क्या इस बार यहां 2017 के नतीजे दोहराएंगे या फिर नई इबारत लिखी जाएगी.
10 फरवरी को लगेगी मुहर
Western UP में पहले चरण का मतदान 10 फरवरी को है. तो क्या जो शुरुआत में बढ़त हासिल करेगा, उसे आखिरी दौर तक एक एडवांटेज रहेगा या क्या यहां की सियासत यूपी के बाकी इलाकों में भी असर लाएगी या फिर इसका कोई राजनीतिक महत्व नहीं होगा? ऐसे कई सवाल हैं जिनको लेकर चर्चा का दौर तेज हो गया है. ऐसे में आइए चर्चा करते हैं ऐसे ही कुछ अहम फैक्टर्स पर.
किसान आंदोलन का फायदा किसको?
इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सियासी हवा किस ओर बह रही है? हाल ही में खत्म हुए किसान आंदोलन में भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत की अहम भूमिका रही. टिकैत पश्चिमी यूपी से आते हैं. कहा जाता है कि 26 जनवरी को लाल किले में हुए बवाल के बाद आंदोलन को राकेश टिकैत के आंसुओं ने संभाल लिया था. आंदोलन के शुरू होने से लेकर खत्म होने के बीच टिकैत देश भर में घूम घूम कर चुनावों में बीजेपी को नुकसान पहुंचाने की बात करते रहे.
ऐसे में खासतौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश यानी हरित प्रदेश जो किसानों और किसानी के मुद्दों के लिए जाना जाता है वहां एक साल तक चला किसान आंदोलन मुद्दा जरूर बनेगा. कृषि कानून वापस लेने के बाद यहां के किसानों की नाराजगी कुछ कम जरूर हुई है लेकिन कितनी कम हुई ये फिलहाल नहीं कहा जा सकता. अब भी कई ऐसे लोकल मुद्दे हैं जिन को लेकर किसान नाराज हैं खासतौर पर उत्तर प्रदेश की सरकार से.
पश्चिमी यूपी में और कौन- कौन से मुद्दे?
जमीनी हालातों की बात करें तो 2 मुद्दों पर किसान ज्यादा नाराज दिख रहे हैं. पहला मुद्दा आवारा पशुओं का है जो किसानों की खड़ी फसल को बेहद नुकसान पहुंचा रहे हैं फिलहाल इसका उपाय न तो सरकार के पास है और ना ही किसानों के पास. दूसरा बड़ा मुद्दा गन्ने की कीमत का है. क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तमाम जिले गन्ने की पैदावार के लिए जाने जाते हैं और यहां पर बने चीनी मिल इस गन्ने के महत्वपूर्ण खरीददार हैं. इसलिए गन्ने की कीमत को लेकर के हमेशा किसान चिंतित रहते हैं और साथ ही साथ चीनी मिलो से किए गए भुगतान को लेकर भी.
कानून व्यवस्था का मुद्दा
लेकिन किसानी का मुद्दा ही सब कुछ नहीं है. किसान आंदोलन से लगे डेंट की भरपाई के दौरान BJP खासतौर पर कानून-व्यवस्था को लेकर काफी आक्रामक तौर पर अपना चुनाव प्रचार कर रही है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की हालत हमेशा चुनाव से जुड़ा हुआ है एक अहम मुद्दा रहा है. बीजेपी ने सीएम योगी, गृह मंत्री अमित शाह से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तक लंबे समय से सूबे की जनता को संदेश दे रहे हैं कि अखिलेश राज में जो गुंडागर्दी थी उसे योगी सरकार में कम किया गया है और इसका क्रेडिट एक मजबूत सरकार को जाता है.
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ध्रुवीकरण की राजनीति
ध्रुवीकरण की राजनीति भी एक बड़ा मुद्दा है. दरअसल पिछले कुछ चुनाव में वेस्टर्न यूपी में बीजेपी के अच्छे प्रदर्शन की एक बड़ी वजह धार्मिक तौर पर ध्रुवीकरण भी रहा है. पूरे प्रदेश में वैसे तो मुस्लिम आबादी तकरीबन 19 फीसदी है लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की तादाद 26 फीसदी हो जाती है. यानी यहां पर ध्रुवीकरण का कार्ड बीजेपी खेलना चाहती है ताकि मुस्लिमों के खिलाफ हिंदुओं को लामबंद किया जा सके.
पिछले कुछ चुनाव में 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों को लेकर ऐसा करने में बीजेपी कामयाबी रही और उसका सियासी फायदा सीटों में तब्दील होता भी नजर आया. पिछले दिनों जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सहारनपुर के देवबंद में एक रैली की तो वहां उन्होंने एक नया नारा भी दिया, जिसमें यह कहा गया था, 'काम भी लगाम भी'. इसका मकसद साफ दिखा कि विकास कार्यों की बात तो सरकार करेगी ही लेकिन साथ ही साथ असामाजिक तत्वों पर लगाम लगाने की बात कहकर बीजेपी इसका लाभ उठाना चाह रही है.
कांग्रेस को आधी आबादी से उम्मीद
कांग्रेस ने भी इस बार अपना महिला कार्ड खेला है और महिला सशक्तिकरण के नाम पर इस वोट बैंक को अपनी तरफ खींचने की जुगत में लगी हुई है. मुरादाबाद की एक रैली में प्रियंका गांधी ने पिछले दिनों जमकर अखिलेश और साथ ही साथ योगी आदित्यनाथ पर भी निशाना साधा था और यह तक कहा था कि दोनों सरकारों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की भलाई के लिए कुछ भी नहीं किया.
क्या साइलेंट फैक्टर बनेगा बीएसपी का कैडर वोट?
मायावती की बहुजन समाज पार्टी ऐतिहासिक तौर पर इस इलाके में बहुत मजबूत रही है. उसके पास अपना एक खास वोट बैंक है जो ऐसा माना जाता है कि मायावती से आमतौर पर छिटकता नहीं है. अनुसूचित जाति और खास तौर पर जाटव वोट बैंक के सहारे मायावती कई सारी सीटों पर अच्छा खासा प्रभाव रखती हैं और अपने दम पर जीतने की हैसियत भी. दिल्ली एनसीआर के इलाकों में भी उनकी पार्टी का अच्छा खासा असर माना जाता रहा है. हालांकि बीएसपी इस बार पूरी तरीके से चुनाव को लेकर जमीन पर सक्रिय नहीं दिखाई दे रही है फिर भी उसके वोट बैंक का क्या होगा वह भी इस इलाके में चुनावों की दिशा तय कर सकता है.
2017 में क्या रहे थे नतीजे?
पश्चिमी यूपी में 26 जिलों की 136 विधानसभा सीट आती हैं, जिसमें मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद, बरेली, आगरा समेत कई जिले आते हैं. पश्चिमी यूपी में 20 फीसदी के करीब जाट और 30 से 40 फीसदी मुस्लिम आबादी है. इन दोनों समुदायों के साथ आने से करीब 50 से ज्यादा सीटों पर जीत लगभग तय हो जाती है. वहीं, 2017 के नतीजों की बात करें तो बीजेपी को रिकॉर्ड 136 में से 109 सीट मिली थीं. जबकि अखिलेश यादव के हिस्से में 20 सीट ही आई थी. इसी किले को भेदने के लिए सपा पहले RLD के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ गठबंधन कर चुकी है.