क्या है हेलो पॉइंट? सूरज की स्टडी करने के लिए इसे क्यों चुना गया, पढ़ें INSIDE STORY
Aditya L1 Mission: यह एक तरह से इसरो का `सूर्य नमस्कार` है और सूर्य मिशन में भारत की बड़ी छलांग है. आइए जानते हैं कि ये हेलो ऑर्बिट क्या है जिसकी काफी चर्चा हो रही है.
What is Halo Orbit: इसरो के आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान ने सूर्य के अंतिम कक्षा में पहुंचकर इतिहास रच दिया है. सूर्य का अध्ययन करने के लिए देश के पहले अंतरिक्ष आधारित मिशन ‘आदित्य एल1’ यान को शनिवार को पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर इसकी अंतिम गंतव्य कक्षा में स्थापित किया गया.. अंतरिक्ष यान पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के ‘लैग्रेंज प्वाइंट 1’ (एल 1) के आसपास एक प्रभामंडल कक्षा में पहुंचा. यह एक तरह से इसरो का 'सूर्य नमस्कार' है और सूर्य मिशन में भारत की बड़ी छलांग है. आइए जानते हैं कि ये हेलो ऑर्बिट क्या है जिसकी काफी चर्चा हो रही है.
क्या है हेलो ऑर्बिट
दरअसल, ‘एल1 प्वाइंट’ पृथ्वी और सूर्य के बीच की कुल दूरी का लगभग एक प्रतिशत है. इसी प्वाइंट के इर्द गिर्द ही आदित्य एल वन को स्थापित किया गया है. ‘एल1 प्वाइंट’ के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा में इस उपग्रह से सूर्य को लगातार देखा जा सकता है. इसी प्वाइंट के चारों ओर मौजूद ऑर्बिट को सोलर हैलो ऑर्बिट कहा जाता है. इसी ऑर्बिट में आदित्य एल वन को स्थापित किया गया. इससे वास्तविक समय में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर इसके प्रभाव का अवलोकन करने में अधिक लाभ मिलेगा.
क्या है लैग्रेंज प्वाइंट (एल1)
‘लैग्रेंज प्वाइंट’ वह क्षेत्र है जहां पृथ्वी और सूर्य के बीच गुरुत्वाकर्षण निष्क्रिय हो जाता है. प्रभामंडल कक्षा, एल 1 , एल 2 या एल 3 ‘लैग्रेंज प्वाइंट’ में से एक के पास एक आवधिक, त्रि-आयामी कक्षा है. इसको ऐसे समझिए कि पृथ्वी से सूरज की जितनी दूरी है, L1 प्वाइंट की दूरी उसका महज 1 फीसद है. आदित्य को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज प्वाइंट 1 (एल1) के चारों ओर हेलो ऑर्बिट में जाएगा.लैग्रेंज प्वाइंट यानि L1 अंतरिक्ष में वह स्थान हैं, जहां पर यदि किसी छोटे पिंड को रखा जाए तो वह वहीं ठहर जाता है. किसी स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में सूर्य और पृथ्वी के बीच इस प्वाइंट पर इसलिए रखा जाता है ताकि वह एक जगह टिके रहें और ईंधन भी कम खर्च हो.
इसी पॉइंट पर ही क्यों स्थापित?
खास बात यह है कि इस प्वाइंट से सूर्य को बिना किसी रोकटोक या बाधा के देखा जा सकता है. यहां तक कि ग्रहण भी आदित्य एल-1 का रास्ता नहीं रोक पाएंगे. मालूम हो कि इसरो के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी-सी57) ने दो सितंबर को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) के दूसरे प्रक्षेपण केंद्र से आदित्य-एल1 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया था. पीएसएलवी ने 63 मिनट और 20 सेकंड की उड़ान के बाद उसने पृथ्वी की आसपास की अंडाकार कक्षा में आदित्य-एल1 को स्थापित किया था.
सूर्य के अध्ययन के लिए...एल 1 पॉइंट को ही क्यों चुना गया. दरअसल इस प्वाइंट से सूर्य पर सातों दिन चौबीसों घंटे नजर रखी जा सकती है, ग्रहण के दौरान भी..वैज्ञानिकों के मुताबिक ये आदित्य एल-1,
- सूरज के किनारों पर होने वाली तपिश का पता लगाएगा
- सूरज के किनारों पर उठने वाले तूफानों की गति मापेगा
- सूरज के तापमान के पैटर्न को समझेगा
- सूरज के वायुमंडल की जानकारी, और
- पृथ्वी पर आने वाली सूरज की किरणों से मौसम पर पड़ने वाले असर का पता लगाएगा
क्या क्या करेगा आदित्य एल वन
‘आदित्य एल1’ को सूर्य परिमंडल के दूरस्थ अवलोकन और पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर ‘एल1’ (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु) पर सौर वायु का वास्तविक अवलोकन करने के लिए डिजाइन किया गया है. अधिकारियों ने बताया कि इस मिशन का मुख्य उद्देश्य सौर वातावरण में गतिशीलता, सूर्य के परिमंडल की गर्मी, सूर्य की सतह पर सौर भूकंप या ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ (सीएमई), सूर्य के धधकने संबंधी गतिविधियों और उनकी विशेषताओं तथा पृथ्वी के करीब अंतरिक्ष में मौसम संबंधी समस्याओं को समझना है.