Hindutva and Hinduism: महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने एक वीडियो (Iltija Mufti on Hindutva) शेयर करके 'हिंदुत्व' को बीमारी बताया था. भारी आलोचना के बाद महबूबा की बेटी ने बयान पर सफाई देते-देते एक बार फिर करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं से खिलवाड़ कर दिया. भारत में सेकुलरिज्म के नाम पर हिंदुओं के देवी-देवनाओं को निशाना बनाइए, गालियां दीजिए या इससे भी आगे बढ़ जाइए, सहिष्णु हिंदुओं की ओर से कभी भी हिंसक प्रतिक्रिया नहीं आती है. इसे उनकी कायरता समझा जाता है. इस तरह हिंदुत्व और हिंदुओं को कोसना कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं का पसंदीदा सगल बन गया है. जम्मू-कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक एक ऐसी जमात है, जिसका खाना हिंदुओं को कोसे बिना नहीं पचता. इल्तिजा मुफ्ती का नाम उस लिस्ट में हाल ही में जुड़ा.


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दरअसल हिंदू विरोधी बयान देने वाले न 'हिंदुत्व' को जानते हैं न ही 'हिंदुइज्म' को पढ़ते या समझते हैं. पढ़े लिखे राजनेताओं से ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि उनके बयान से देश में वैमनस्य फैले. खास को तो छोड़िए अब तो आम लोग भी सोशल मीडिया पर जगह-जगह छितरे कथित 'व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी' के अधकचरा ज्ञान के आधार पर हिंदुत्व विरोधी बयान देते हैं. ऐसा करने को आज 'फैशन' समझ लिया गया है. 



हिंदुत्व और हिंदुइज्म में फर्क से इतर एक बार फिर पढ़िए महबूबा का असहज करने वाला बयान


सावरकर को लेकर भी PDP की युवा नेता इल्तिजा मुफ्ती के बयान को धीरे-धीरे और दो बार में पढ़ें तो पहले हिस्से में इल्तिजा ने कहा, 'हिंदुत्व और हिंदुइज्म में बहुत बड़ा फर्क है'. हिंदुत्व, नफरत का दर्शन है जिसे सावरकर ने 1940 के दशक में फैलाया. जिसका मकसद भारत में हिंदुओं का आधिपत्य स्थापित करना था. उनका दर्शन ये था कि भारत हिंदुओं का और हिंदुओं के लिए है. इस्लाम की तरह, हिंदुइज्म धर्म भी एक ऐसा धर्म है जो धर्मनिरपेक्षता, प्रेम और करुणा को बढ़ावा देता है. इसलिए, हमें जानबूझकर इसे विकृत नहीं करना चाहिए.'


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महबूबा मुफ्ती के इस बयान के हिसाब से इस्लाम, धर्मनिरपक्षेता यानी सेकुलरिज्म को बढ़ावा देता है. जबकि बात-बात पर हिंदू विरोधी और हिंदुओं की भावनाओं को खुलेआम आहत करने वाले कृत्यों पर ऐसे नेता सामूहिक चुप्पी साथ लेते हैं. हिंदुत्व और हिंदुओं को निशाना बनाने वालों के इसी सेलेक्टिव सेकुलरिज्म को लेकर आज करोड़ों लोग सोशल मीडिया पर ऐसी चीजों की मुखर आलोचना करने लगे हैं. जबकि एक और सच ये भी है कि हिंदुत्व पर ज्ञान देने वाली इल्तिजा मुफ्ती के कट्टर समर्थक तक शायद ही उनकी बात से इत्तेफाक रखते होंगे कि क्या वाकई उनकी डिक्शनरी में धर्मनिरपेक्षता नामक शब्द है?


क्या कहता है संविधान?


भारत संविधान से चलता है. यहां पूजापाठ करने का मूलभूत अधिकार है. उसमे कोई भी प्रतिबंध नही लगा सकता. यदि कोई, व्यक्ति, संस्था या कानून ऐसे करता है तो वह संविधान विरोधी है. संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धर्म के अधिकार की पूर्ण गारंटी है. संविधान के मुताबिक किसी को किसी भी धर्म के खिलाफ टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है. यानी अपने धर्म को सबसे अच्छा और दूसरे को कमतर आंकना या उसकी बुराई करना गलत है. संसद हिंदू के धार्मिक अधिकार को छीनने या उनके धर्म को अपमानित करता हो ऐसा कोई भी कानून नही बना सकता है. 


लेकिन ऐसी बातों को एक बड़ा तबका न सुनता है और ना ही मानता है. ऐसी स्थितियों में आपके मत से मेल न खाने को अक्सर 'ईश निंदा' जैसा महापाप घोषित कर दिया जाता है.इसके बाद तन से जुदा ऐसे नारे लगते लगते हैं, और बहुसंख्यक हिंदुओं के मन में भी कुछ पल के लिए अज्ञात भय आ जाता है कि आगे भविष्य कैसा होगा. 


आगे महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा ने कहा, 'जय श्री राम' का नारा 'रामराज्य' के बारे में नहीं है, बल्कि इसे लिंचिंग से जोड़ा जा रहा है यह बहुत शर्मनाक है कि हिंदू धर्म को विकृत किया जा रहा है. 'जय श्री राम' का नारा गलत जगह इस्तेमाल हो रहा है. किसी बच्चे को मार रहे हैं और 'जय श्री राम' का नारा भी लगा रहे हैं. मैंने हिंदुत्व की आलोचना की क्योंकि यह एक बीमारी है.' महबूबा के बयान के इस हिस्से में लिंचिंग की घटनाओं का हवाला देते हुए पूरे हिंदुत्व को महबूबा मुफ्ती की बेटी ने 'बैड कैरेक्टर' सर्टिफिकेट लगे हाथ दे दिया. 


दुनिया के सबसे बड़े हिंदू संगठन का इस पर क्या कहना है?


विश्व हिंदू परिषद, आरएसएस (RSS) यानी संघ का एक अनुशांगिक संगठन है. जिसकी शाखाएं और सदस्य दुनिया के कई देशों में हैं. कई हिंदूवादी संगठनों का कहना है कि पीडीपी (PDP) की राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभाने वाली इल्तिजा, पार्टी प्रमुख की मीडिया सलाहकार के रूप में काम कर रही हैं. ऐसे में उनके इस बयान पर उन्हें ऐसे ही नहीं बख्शा जा सकता, महबूबा की बेटी इल्तिजा को हिंदुत्व को बीमारी बताने पर माफी मांगनी चाहिए. 



महबूबा मुफ्ती की बेटी के हिंदुत्व के बीमारी वाले बयान पर VHP के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने कहा, 'विपक्षी नेताओं को जब अपना कोई पॉलिटिकल प्रोडक्ट लॉन्च करना होता है यानी अपने शहजादे-शहजादी को उतारना होता है तो उसके लिए सबसे पहले हिंदुओं की आस्था के केंद्र पर हमला किया जाता है. ऐसा करना इनकी नियति बन चुका है. जम्मू-कश्मीर में एक शहजादी लान्च होने वाली है, इस घटना को देश की सुर्खियों में लाने के लिए एकमात्र यही तरीका (लॉन्चिंग पैड) है. यानी हिंदुओं को निशाना बनाइए और तत्काल मशहूर हो जाइए. इनके मां-बाप को शर्म नहीं आती. भगवान को गाली दो, हिंदुत्व को गाली दो. इन सहिष्णुता और सेकुलरिज्म की बातें करने वालों के मुंह से बांग्लादेश में हिंदुओं के कटने और उनके उत्पीड़न पर अबतक एक शब्द भी नहीं निकला है, वो बांग्लादेश में अपने समुदाय के लोगों की करतूतों पर एक शब्द नहीं बोलेंगे. जानबूझकर हिंदुओं को निशाना बनाने के कृत्य पर शर्म आनी चाहिए'.


हिंदुत्व को लेकर क्या है सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या?


हिन्दुत्व शब्द न्यायालय की चौखट तक कई बार पहुंचा हैदेश में कुछ लोग संविधान और सुप्रीम कोर्ट के अलावा तीसरी बात सुनना पसंद नहीं करते. हालांकि यहां भी सेलेक्टिज्म रहता है. मनमाफिक फैसला आ जाए तो सही और विरोध में फैसला आए तो सुप्रीम कोर्ट पर भी उंगली उठा दी जाती है. आइए बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की एक बड़ी बेंच ने हिंदुत्व को लेकर क्या कहा था. 


साल 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हिंदुत्व को जीवन शैली या मन की स्थिति के रूप में देखा जाना चाहिए. इसे धार्मिक हिंदू कट्टरवाद के तौर पर नहीं समझा जाना चाहिए. 


हिंदू धर्म पर एक महत्वपूर्ण फैसले में SC ने कहा था- 'हिंदू धर्म एक जीवन जीने की पद्धति है. हिन्दू धर्म या हिन्दुत्व को संकीर्णता की दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए. 2016 में एक बार फिर ये शब्द चर्चा में तब आया जब तीस्ता सीतलवाड़ ने याचिका दायर की और SC ने 1995 के अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने की याचिका को पूरी तरह से खारिज कर दिया. तब 7 जजों की पीठ ने ‘हिन्दुत्व’ को जीवन शैली के रूप में परिभाषित करने वाले 1995 के फैसले पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया था और साथ ही चुनावों में 'हिंदुत्व' शब्‍द के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की मांग खारिज कर दी थी.


2016 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा, 'हिंदुत्व क्या है और इसका अर्थ क्या है - अदालत इस समय इस विवाद में नहीं पड़ेगी. अदालत 1995 के फ़ैसले पर पुनर्विचार नहीं करेगी और साथ ही इस स्तर पर हिंदुत्व और धर्म की पड़ताल भी नहीं करेगी.' सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस टी एस ठाकुर की अध्यक्षता वाली 7 सदस्यीय संविधान पीठ ने ये बात कही.


हिंदुत्व और सावरकर का हिंदुत्व


हिंदुत्व और सावरकर के हिंदुत्व का मुद्दा उठा है, ऐसे में आइए आपको पहले बताते हैं कि कौन थे सावरकर? सावरकर का हिंदुत्व कोई अलग या नया हिंदुत्व नहीं है. बॉम्बे प्रेसिडेंसी के नासिक में 28 मई 1883 को जन्मे सावरकर की प्रारम्भिक पढ़ाई पुणे के नामी फर्ग्यूशन कॉलेज में हुई थी. वो अपने हिंदुत्ववादी दर्शन में राष्ट्रवाद की बात करते हैं. खासकर राजनीतिक विचारधारा में 'हिंदुत्व' और राष्ट्रवाद को विकसित करने का एक बड़ा श्रेय वीर सावरकर को जाता है. सावरकर एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि और लेखक थे. सावरकर, उस हिंदू महासभा से जुड़े थे, जो हिंदू राष्ट्रवाद की बात करता है.


(वीर सावरकार)

सावरकर पर कई किताबें लिखी गई हैं. उन्हें अंग्रेजों ने काले पानी की सजा सुनाई थी. ऐसी ही एक किताब की बात करें तो उसकी प्रस्तावना लिखते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदुत्व और सावरकर पर बड़ी बारीक बात कही है. उन्होंने कहा- 'सावरकर को स्वतंत्र भारत में उनका हक नहीं मिला'. 


सावरकर को कांग्रेस के नेता न तो उनके जीवनकाल में पसंद करते थे और न आज पसंद करते हैं. यही हाल कुछ अन्य दलों का है. इस बीच देश के अधिकांश हिंदूवादी नेताओं का कहना है कि महबूबा मुफ्ती की बेटी 2024 का विधानसभा चुनाव हार चुकी हैं, इसलिए सुर्खियों में रहने के लिए ऐसे बयान दे रही हैं. हिंदुत्व को बीमारी बताने वाला इल्तिजा का बयान अक्षम्य है, जिस पर उन्हें माफी मांगनी चाहिए.