Waqf boards: अब वक्फ बोर्ड की मनमानी नहीं चलेगी. मोदी सरकार आज यानी गुरुवार को संसद में वक्फ बोर्ड के अधिकारों में कटौती वाला बिल पेश कर सकती है. इस समय वक्फ बोर्ड के पास किसी भी संपत्ति को वक्फ बोर्ड की संपत्ति घोषित करने का अधिकार है. इस बिल पर संसद में हंगामा के आसार हैं. विपक्ष लगातार इस बिल का विरोध कर रहा है. बिल से जुड़ीं जाने सारी डिटेल्‍स. 


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क्या बदलाव हो सकते है ?
वक्फ कानून 1995 का नाम बदलकर एकीकृत वक्फ प्रबंधन,सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995 होगा.
केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में मुस्लिम और गैर मुस्लिम का उचित प्रतिनिधित्व होगा.
एक केंद्रीय पोर्टल और डेटाबेस के माध्यम से वक्फ के पंजीकरण के तरीकों को सुव्यवस्थित करना होगा.
इसके साथ ही दो सदस्यों के साथ ट्रिब्यूनल संरचना में सुधार होगा. ट्रिब्यूनल के आदेशों के खिलाफ 90 दिनों के अंदर कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का समय निर्धारित किया गया है. वक्फ की संपत्तियों के सर्वेक्षण के लिए के लिए सर्वे कमिश्नर का अधिकार जिलाधिकार को दिया गया है.
वक्फ परिषद में वक्फ परिषद में केंद्रीय मंत्री, तीन सांसद, मुस्लिम संगठनों के तीन नुमाइंदे, मुस्लिम कानून के तीन जानकार, सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के दो पूर्व जज, एक प्रसिद्ध वकील, राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चार लोग, भारत सरकार के अतिरिक्त या संयुक्त सचिव आदि होंगे. इनमें दो महिलाओं का होना जरूरी होगा.


सभी दलों की सर्वसहमति के लिए दोनों सदन के संयुक्त समिति को भेज सकती है बिल
संशोधन बिल 2024 के जरिए सरकार 44 संशोधन करने जा रही है.
सरकार वक्फ से जुड़े दो बिल संसद में लाएगी.


एक बिल के जरिए मुसलमान वक्फ कानून 1923 को समाप्त किया जाएगा
मुसलमान वक्फ कानून 1923 ब्रिटिश राज में वक्फ सम्पत्तियों को चिन्हित करने और उनकी लिस्ट बनाने के लिए बनाया गया कानून था. मुस्लिम समाज की  शिकायत थी की देश में मुसलमान वक्फ सम्पत्तियों पर कब्ज़ा किया जा रहा है, इसी शिकायत को दूर करने के लिए मुसलमान वक्फ कानून 1923 बनाया गया था


दूसरे बिल के जरिए वक्फ कानून 1995 में महत्वपूर्ण संशोधन होंगे


  • वक्फ कानून 1995 के सेक्शन 40 को हटाया जा रहा है जिसके तहत वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित करने का अधिकार था.

  • निकायों में मुस्लिम महिलाओं और गैर-मुसलमानों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है.

  • बोहरा और आगाखानियों के लिए एक अलग औकाफ बोर्ड की स्थापना का भी प्रस्ताव है.

  • मुस्लिम समुदायों के बीच शिया, सुन्नी, बोहरा, आगखानी के प्रतिनिधित्व का प्रावधान करता है.

  • "वक्फ' को कम से कम पांच वर्षों तक इस्लाम का पालन करने वाले और ऐसी संपत्ति का स्वामित्व रखने वाले किसी भी व्यक्ति द्वारा वक्फ के रूप में स्पष्ट रूप से परिभाषित करना है"..

  • एक केंद्रीय पोर्टल और डेटाबेस के माध्यम से वक्फ के पंजीकरण के तरीके को सुव्यवस्थित करना दो सदस्यों के साथ ट्रिब्यूनल संरचना में सुधार करना और ट्रिब्यूनल के आदेशों के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील के लिए  90 दिनों की मियाद. वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण के लिए सर्वे कमिश्नर का अधिकार  कलेक्टर या कलेक्टर द्वारा नामित डिप्टी कलेक्टर को होगा.

  • किसी भी संपत्ति को वक्फ के रूप में दर्ज करने से पहले सभी संबंधित पक्षों को उचित नोटिस.

  • वक्फ परिषद में केंद्रीय मंत्री, तीन सांसद, मुस्लिम संगठनों के तीन नुमाइंदे, मुस्लिम कानून के तीन जानकार, सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के दो पूर्व जज, एक प्रसिद्ध वकील, राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चार लोग, भारत सरकार के अतिरिक्त या संयुक्त सचिव आदि होंगे. इनमें से कम से कम दो महिलाओं का होना आवश्यक.


जिस 'वक्फ बोर्ड' को अंग्रेजों ने बताया था अवैध, नरसिम्हा राव सरकार ने क्यों बढ़ाई उसकी ताकत
देश के आजाद होने के सात साल बाद 1954 में वक्फ अधिनियम पहली बार पारित किया गया. उस समय देश के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे. 9 साल बाद 1964 में केंद्रीय वक्फ परिषद का गठन किया गया, जो अल्पसंख्यक मंत्रालय के अधीन था. इसका काम वक्फ बोर्ड से संबंधित कामकाज के बारे में केंद्र सरकार को सलाह देना होता है. वक्फ परिषद के गठन के लगभग 30 साल बाद साल 1995 में पीवी नरसिम्हा राव की नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने वक्फ एक्ट में पहली बार बदलाव किया. उन्होंने वक्फ बोर्ड की ताकत को और भी बढ़ा दिया. उस संशोधन के बाद वक्फ बोर्ड के पास जमीन अधिग्रहण के असीमित अधिकार आ गए. हालांकि, साल 2013 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए-2 सरकार में वक्फ एक्ट में फिर से संशोधन किया गया.