नई दिल्ली. जब भी कोई दुर्घटना या फिर किसी तरह का कोई अपराध होता है सबसे पहले हमें उस बात की जानकारी पुलिस को देनी पड़ती है. पुलिस अपने अनुसार नियमों के हिसाब से उस अपराध के लिए अपराधी को सजा देती है. लेकिन कई बार ऐसे मामले सामने आते हैं, जहां पुलिस FIR लिखने से मना कर देती है. ऐसे में आपको क्या करना चाहिए ये हम बताने जा रहे हैं.


दो तरह के होते हैं आपराधिक मामले


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इस बात को हमेशा याद रखें कि किसी आपराधिक मामले की थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाना आपका अधिकार है. वहीं, ऐसे मामलों में आपकी मदद करना एक पुलिसवाले की जिम्मेदारी है. अपराध दो प्रकार के होते हैं एक संज्ञेय (जैसे बलात्कार, दंगा, लूट, मर्डर आदि) और दूसरा गैर-संज्ञेय (जालसाजी, उपद्रव या धोखाधड़ी) अपराध. संज्ञेय मामलों में पुलिस द्वारा FIR दर्ज करना जरूरी हो जाता है. वहीं, गैर-संज्ञेय मामलों में पुलिस विशेष कार्रवाई कर सकती है.


क्या करें जब न दर्ज हो FIR


कोई भी इंसान पुलिस के पास अपनी शिकायत लिखित या मौखिक तौर पर दर्ज करवा सकता है. हर किसी के पास इस बात का अधिकार है. लेकिन अगर पुलिस आपकी शिकायत को दर्ज करने से इनकार कर देती है तो आपके पास अधिकार है कि आप किसी सीनियर ऑफिसर के पास जाकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं.


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ये है नियम


अगर इसके बाद भी FIR दर्ज नहीं होती है तो आप CrPC के सेक्शन 156 (3) के तहत मेट्रोपॉलिटिन मजिस्ट्रेट के पास इसकी शिकायत करने के अधिकारी हैं. आपकी शिकायत पर मजिस्ट्रेट पुलिस को FIR दर्ज करने के निर्देश देने का अधिकार रखते हैं. यदि कोई अधिकारी आपकी FIR लिखने से मना करता है या FIR दर्ज नहीं करता है, तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार उन पर एक्शन लिया जा सकता है.


ऑनलाइन भी कर सकते हैं FIR


पुलिस अगर FIR दर्ज नहीं करती है तो पीड़ित अपनी शिकायत ऑनलाइन भी रजिस्टर करा सकते हैं. अपनी शिकायत ऑनलाइन रजिस्टर करने के लिए आपको अपने एरिया की पुलिस वेबसाइट पर जाना होगा. राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्ली में e-FIR एप के जरिए FIR दर्ज कराई जा सकती है. इसके लिए आपको इस ऐप को इंस्टॉल करना होगा जिसके बाद आप आसानी से अपनी FIR दर्ज करवा सकते हैं.


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कैसे होती है कार्रवाई?


FIR दर्ज होने के बाद तो ड्यूटी ऑफिसर ASI को वारदात वाली जगह पर भेजता है. सभी गवाहों के पूछताछ कर उनका स्टेटमेंट रिकॉर्ड किया जाता है. पहले तो शॉर्ट रिपोर्ट के आधार पर पुलिस रिपोर्ट दर्ज करती है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार पीड़ित की तरफ से FIR दर्ज कराने के पहले एक हफ्ते के अंदर ही फर्स्ट इन्वेस्टिगेशन पूरी हो जानी चाहिए.


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