Saraswathi Rajamani: देश की पहली महिला SPY की ये कहानी भावुक कर देगी, जिससे अबतक अनजान हैं लोग
Indias 1st spy: देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है इसलिए हमें उन लोगों को याद करना चाहिये, जिनके बारे में इतिहास की किताबों में कम चर्चा हुई है. यानी आजादी की लड़ाई के वो गुमनाम नायक-नायिकाएं जिनके बारे में आज की पीढ़ी कुछ भी नहीं जानती है. ऐसे में चर्चा देश की पहली महिला जासूस सरस्वती राजामणि की.
Saraswathi Rajamani youngest spy of India: पिछले साल 13 अगस्त 2022 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 10 साल की दो बेटियों देवयानी और शिवरंजनी के साथ पौध-रोपण कर उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘सरस्वती राजामणि- एक भूली-बिसरी जासूस’ का विमोचन किया था. सरस्वती आजादी की लड़ाई की वो गुमनाम नायक थीं जिनके बारे में कम लोग जानते हैं. सरस्वती राजामणि आज़ाद हिंद फौज की जासूस और बेहद कम उम्र की गुमनाम क्रांतिकारी थी. जिन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को बहुत प्रभावित किया था.
राजामनी की कहानी
सरस्वती राजामणि का जन्म बर्मा के एक संपन्न और देशभक्त परिवार में हुआ था. 1937 में महात्मा गांधी बर्मा की यात्रा पर वहां लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति की लड़ाई के लिए एकजुट होने का आह्वान कर रहे थे. उस दौरान वो रंगून के सबसे धनी परिवार से मिले. पूरा परिवार इकठ्ठा होकर गांधी से मुलाकात कर रहा था तब उनकी 10 साल की बेटी राजामणि अपने बगीचे में बंदूक के साथ खेल रही थी. जब गांधी जी ने उस बच्ची से पूछा कि तुम शूटर क्यों बनना चाहती हो? उस बच्ची ने जबाव दिया कि मैं लुटेरों को मारना चाहती हूं. जब मैं बड़ी हो जाउंगी कम से कम एक अंग्रेज को ज़रूर मार भगाऊंगी. वे हमें लूट रहे हैं. इस बच्ची की पहचान आगे जाकर सरस्वती राजामणि के तौर पर हुई जिन्होंने आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया था.
भारत की सबसे कम उम्र की जासूस
राजामणि जब 16 साल की थीं, तब नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाषण से इतनी प्रभावित हुईं कि अपने सारे गहने आजाद हिंद फौज को दान कर दिए. राजामणि की उम्र देखकर वो जब इसे बच्ची का भोलापन समझकर, गहने लौटाने उनके घर गए तो उन्होंने उन्हें लेने से इनकार कर दिया. राजामणि उसी दौरान गहने लेने के बजाए उन्हें अपनी फौज में भर्ती कराने को लेकर अड़ गईं. वो इतनी उतावली थीं कि अगले ही दिन, सुभाष चंद्र बोस ने राजमणि और उनके 4 दोस्तों को आईएनए की खुफिया विंग में बतौर युवा जासूस भर्ती कर लिया. इसके बाद उन्होंने अपनी सहेली दुर्गा के साथ मिलकर अंग्रेजों के कैंप की जासूसी की और कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां आज़ाद हिन्द फौज को दीं.
हैरान कर देंगी 16 साल की जासूस की ये बातें
राजमणि ने भेष बदलकर ब्रिटिश कैंपों और कंपनी के अफसरों के घरों में बतौर घरेलू सहायक काम किया और इस तरह वो धीरे-धीरे दुश्मन के गढ़ के अंदर गुप्त एजेंट्स के रूप में अंग्रेज सरकार के आदेशों और सैन्य खुफिया सूचनाओं को जुटाकर उन्हें नेता जी सुभाष चंद्र बोस की फौज (INA) तक पहुंचाने का काम करने लगीं. बोस उनकी बहादुरी और सूझबूझ से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें आईएनए की झांसी रानी ब्रिगेड में लेफ्टिनेंट का पद दिया था. राजामणि ने सेना के इंटेलिजेंस विभाग के साथ काम किया. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, राजामणि को कोलकत्ता में ब्रिटिश सैन्य अड्डे में एक कार्यकर्ता के रूप में जासूसी के लिए भेजा गया. आगे 1943 में अंग्रेजों के द्वारा नेता जी की हत्या की योजना को उजागर करने में अहम भूमिका निभाई.
युद्ध के बाद का जीवन
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नेता जी ने आईएनए को भंग कर दिया था. राजामणि का परिवार तबतक अपनी सृमद्धि खो चुका था. 1957 में वो अपने परिवार के साथ भारत आ गई थीं. भारत आकर उन्होंने जीवन गुमनामी और गरीबी में बिताया. लंबे समय तक अनुभवी स्वतंत्रता सेनानी ने चेन्नई में एक कमरे में अकेले जीवन व्यतीत किया. साल 2005 में तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने उन्हें एक घर दिया था. वृद्धावस्था में भी राष्ट्र के प्रति सेवा का भाव कम नहीं हुआ. वो दर्जी की दुकानों पर जाकर बचा कपड़ा इकठ्ठा किया करती थीं. उससे बने वस्त्रों को अनाथालय और वृद्धा आश्रम में दान दिया करती थीं. यही नहीं 2006 में सुनामी के दौरान उन्होंने अपनी मासिक पेंशन रिलीफ फंड में दे दी थी.
साल 2008 में उन्होंने अपनी सेना की वर्दी और बिल्ले, ओडिशा के कटक स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस म्यूजियम को डोनेट कर दिए थे. देश के लिए अपने खून का कतरा-कतरा न्योछावर करने वाली राजामणि ने 2018 में हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया था.
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