Shyamji Krishna Varma: बात गुलामी के दौर की है. भारत के एक वीर सपूत, क्रांतिकारी की जेनेवा में मौत हो जाती है. उनकी अंतिम इच्छा थी कि आजादी मिलने के बाद उनकी अस्थियां भारत लाई जाएं. 56 साल बाद ऐसे हुआ भी और 2003 में गुजरात के सीएम रहते हुए नरेंद्र मोदी खुद जेनेवा से अस्थियां लाए थे.आइए जानते हैं पूरा किस्सा. आखिर कौन हैं श्यामजी कृष्ण वर्मा और पीएम मोदी ने श्रद्धांजलि में क्या कहा.


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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि उन्होंने अपने क्रांतिकारी कदमों से देश की स्वतंत्रता के संकल्प में अद्भुत शक्ति भरने का काम किया तथा राष्ट्र के प्रति उनका समर्पण और सेवा भाव हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा.



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कौन थे श्यामजी कृष्ण वर्मा?
श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म चार अक्टूबर 1857 को गुजरात के कच्छ जिले के मांडवी गांव में हुआ था. वर्मा का 31 मार्च 1930 को जिनेवा के एक अस्पताल में निधन हो गया था. उनका पार्थिव शरीर अन्तरराष्ट्रीय कानूनों के कारण भारत नहीं लाया जा सका था और वहीं उनकी अन्त्येष्टि की गयी थी. उनका दाह संस्कार कर उनकी अस्थियों को जिनेवा की ‘सेंट जॉर्ज सिमेट्री’ में सुरक्षित रख दिया गया था.


लंदन में इंडियन होम रूल सोसाइटी बनाई
श्यामजी ने लंदन में इंडियन होम रूल सोसाइटी, इंडिया हाउस और द इंडियन सोशियोलॉजिस्ट जैसे संगठनों की स्थापना की. इंडियन होम रूल सोसाइटी और इंडिया हाउस ने अंग्रेजों के ही देश यानी ब्रिटेन में युवाओं को भारत पर राज कर रहे अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियां शुरू करने के लिए प्रेरित किया. 


56 साल बाद मोदी लाए अस्थियां 
गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद मोदी 2003 में जिनेवा गए थे और वर्मा की अस्थियां लेकर भारत आए थे. मोदी ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘महान स्वतंत्रता सेनानी और मां भारती के वीर सपूत श्यामजी कृष्ण वर्मा को उनकी जन्म-जयंती पर शत-शत नमन. उन्होंने अपने क्रांतिकारी कदमों से देश की स्वतंत्रता के संकल्प में अद्भुत शक्ति भरने का काम किया है. राष्ट्र के प्रति उनका समर्पण और सेवा भाव हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा. 


मोदी ने पूरी की आखिरी इच्छा
30 मार्च 1930 को उनकी मृत्यु हो गई. उनकी अंतिम इच्छा थी कि देश को आजादी मिलने के बाद उनकी अस्थियां भारत लाई जाएं. साल 1947 में आजादी मिलने के बाद भी 56 सालों तक उनकी अस्थियों को लेने कोई जेनेवा नहीं गया. आखिर में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जेनेवा गए. 22 अगस्त 2003 को नरेंद्र मोदी ने स्विटजरलैंड की सरकार से श्यामजी की अस्थियां ग्रहण की और खुद भारत लाए.


गुजरात में निकाली गई कलश यात्रा
स्वदेश पहुंचने पर गुजरात में भव्य वीरांजलि यात्रा आयोजित की गई और श्यामजी की अस्थियों का कलश 17 जिलों से होकर गुजरा. लोगों ने सड़कों के किनारे खड़े होकर उनको श्रद्धांजलि अर्पित की. जिस वाहन में अस्थि कलश रखा गया था, उसे विशेष रूप से तैयार कर वीरांजलि-वाहिका नाम दिया गया था. आखिर में अस्थि कलश को मांडवी (कच्छ) में उनके परिवार को सौंप दिया गया था.