कौन थी तुलसी? यहां पढ़िए पूरी कहानी...
तुलसी (पौधा) पूर्व जन्म में एक लड़की थी, जिस का नाम वृंदा था. राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था. बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी. बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी. जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया. जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था. वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी, सदा अपने पति की सेवा किया करती थी.
नई दिल्ली: तुलसी (पौधा) पूर्व जन्म में एक लड़की थी, जिस का नाम वृंदा था. राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था. बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी. बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी. जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया. जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था. वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी, सदा अपने पति की सेवा किया करती थी.
एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा कि स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं, आप जब तक युद्ध में रहेंगे में पूजा में बैठ कर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करूंगी और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प नहीं छोडूंगी. जलंधर तो युद्ध में चले गए और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर से न जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गए.
सब ने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि वृंदा मेरी परम भक्त है. मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता. फिर देवता बोले- भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है. अब आप ही हमारी मदद कर सकते हैं. भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पहुंच गए. जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वह तुरंत पूजा में से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए. जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओं ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया.
जलंधर का सिर वृंदा के महल में आकर गिरा. जब वृंदा ने देखा कि उसके पति का सिर तो कटा पड़ा है, तो फिर यह जो मेरे सामने खड़े हैं यह कौन हैं? उन्होंने पूंछा- आप कौन हैं? जिसका स्पर्श मैंने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गए, पर वह कुछ न बोल सके. वृंदा सारी बात समझ गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया कि आप पत्थर के हो जाओ और भगवान तुंरत पत्थर के हो गए.
सभी देवता हाहाकार करने लगे. लक्ष्मी जी रोने लगीं और प्रार्थना करने लगे फिर वृंदा ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वह
सती हो गईं. उनकी राख से एक पौधा निकला. तब भगवान विष्णु जी ने कहा कि आज से इनका नाम तुलसी है और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा, जिसे शालीग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा और मैं बिना तुलसी जी के भोग स्वीकार नहीं करूंगा. तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे. और तुलसी जी का विवाह शालीग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है. देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है.