DNA with Sudhir Chaudahry: पैगम्बर मोहम्मद साहब को लेकर देश में जारी विवाद के बीच कई मुस्लिम देशों ने भी बयान जारी किया है. Gulf Countries यानी खाड़ी देश में भी आवाज उठी है. ऐसे में ये जान लेना जरूरी है कि Gulf Countries यानी खाड़ी देश भारत के लिए इतने महत्वपूर्ण क्यों है? इसे आप कुछ Points में समझ सकते हैं. पहला, भारत प्रति दिन जितने कच्चे तेल का निर्यात करता है, उसमें से लगभग 60 प्रतिशत कच्चा तेल इन्हीं खाड़ी देशों से आता है. इसके अलावा भारत Natural गैस के लिए भी काफी हद तक इन्हीं खाड़ी देशों पर निर्भर है. पिछले साल भारत ने अपनी जरूरत की 41 प्रतिशत Natural गैस कतर से और 11 प्रतिशत Natural गैस UAE से खरीदी थी.


इन देशों में लाखों भारतीय काम करते हैं


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दूसरा, विदेशों में काम करने वाले एक करोड़ 35 लाख भारतीयों में से लगभग 80 लाख भारतीय सिर्फ चार खाड़ी देशों में काम करते हैं. इनमें UAE में  35 लाख, सऊदी अरब में 26 लाख, कुवैत में 10 लाख और कतर में लगभग साढ़े सात लाख भारतीय काम करते हैं. कतर की कुल आबादी 29 लाख है, जिसमें से साढ़े सात लाख सिर्फ भारतीय मूल के लोग हैं. इसी तरह कुवैत की कुल आबादी 43 लाख है, जिनमें से 10 लाख भारतीय हैं. यानी इस मुद्दे का असर इन देशों में रहे रहे भारतीय मूल के लोगों पर भी पड़ेगा. तीसरा, भारत में विदेशों से सबसे ज्यादा पैसा खाड़ी देशों से ही आता है. वर्ष 2020 में विदेशों में रहने वाले भारतीयों ने 6 लाख 39 हजार करोड़ रुपये भारत भेजे थे. जिनमें से 53 प्रतिशत यानी सवा तीन लाख करोड़ रुपये सिर्फ पांच अरब देशों से भारत आए, जिनमें UAE, सऊदी अरब, कतर, कुवैत और ओमान जैसे देश शामिल थे.


सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर


चौथा, अमेरिका और चीन के बाद UAE भारत का तीसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है. पिछले साल भारत और UAE के बीच लगभग साढ़े पांच लाख करोड़ रुपये का व्यापार हुआ था. भारत दूसरे देशों में जो अपना सामान भेजता है यानी जो सामान निर्यात करता है, उसका दूसरा सबसे बड़ा खरीददार भी UAE है. पिछले साल भारत ने UAE को दो लाख 15 हजार करोड़ रुपये का सामान निर्यात किया था. UAE के बाद सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है. इराक इस सूची में पांचवें स्थान पर है. एक और बात.. इन तमाम मुस्लिम देशों को भारत ने हमेशा से अहमियत दी है.


आपसी संबंधों पर पड़ेगा असर


इसे आप इस बात से समझ सकते हैं कि, वर्ष 2014 के बाद से प्रधानमंत्री मोदी तीन बार UAE जा चुके हैं, दो बार सऊदी अरब जा चुके हैं. एक-एक बार कतार और ईरान जा चुके हैं. उन्होंने Jordan, ओमान और बहरीन का भी दौर किया है. इन देशों के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री की शानदार Personal Chemistry है. इन देशों ने प्रधानमंत्री को अपने सर्वोच्च सम्मान से नवाजा है. 2019 में UAE ने प्रधानमंत्री मोदी को वहां के सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार, Order of Zayed (ऑर्डर ऑफ ज़ायेद) से सम्मानित किया था. 2016 में सऊदी अरब ने भी मोदी को अपने सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया था. इसी तरह 2019 में बहरीन ने अपने देश का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार और 2016 में अफगानिस्तान ने अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान.. प्रधानमंत्री मोदी को दिया था. इसलिए इस पूरे घटनाक्रम के बाद मोदी की इन देशों के नेताओं के साथ Personal Chemistry पर भी असर पड़ेगा.


इस बार ऐसा क्या हो गया..


जैसा कि हमने आपको बताया.. इससे पहले भी हमारे देश में हिन्दू और मुसलमानों को लेकर कई विवाद हो चुके हैं. जब नागरिकता संशोधन कानून आया था तो हमारे देश के मुसलमानों ने इसके खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए थे. इसी तरह जब जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया था, तब भी हमारे देश के मुसलमानों ने इसका विरोध किया था. मुसलमानों की तथाकथित मॉब लिंचिंग पर भी हमारे देश में काफी हंगामा होता रहा है. भारत में मुसलमानों पर अत्याचार करने का दुष्प्रचार भी होता रहा है. लेकिन आज तक इन तमाम मुद्दों पर इन मुस्लिम देशों ने कभी कुछ नहीं कहा था. तो फिर इस बार ऐसा क्या हो गया कि ये सारे देश भारत के खिलाफ एकजुट हो गए. इसके दो बड़े कारण हैं.


इस बार मुद्दा किसी इंसान को लेकर नहीं


इस बार मुद्दा किसी इंसान को लेकर नहीं था. बल्कि ये मुद्दा पैगम्बर मोहम्मद साहब को लेकर था. दूसरा.. इसके पीछे इन मुस्लिम देशों की अंदरुनी राजनीति है. असल में ये देश अपने यहां के लोगों को ये बताना चाहते हैं कि वो इस्लाम धर्म के सबसे बड़े रक्षक हैं और इस्लाम धर्म के सबसे बड़े अभिभावक हैं. यानी ये मुस्लिम देश इस मुद्दे पर इसलिए भारत का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि ये इस्लामिक दुनिया में अपने प्रभुत्व को बढ़ाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. और इस लड़ाई को वही देश जीतेगा, जो खुद को इस्लाम धर्म का सबसे बड़ा रक्षक साबित कर पाएगा. और ये साबित करने के लिए ऐसे मुद्दे पर विरोध जताना पहली शर्त है. हालांकि, अगर मौजूदा स्थिति का अध्ययन करें तो पता चलता है कि आज इस मुद्दे पर भारत का मुसलमान, भारत के साथ है ही नहीं. जबकि भारत के जो 100 करोड़ हिन्दू हैं, वो बहुत ज़्यादा निराश हैं. और इस निराशा की तीन बड़ी वजह हैं.


हिन्दुओं की हत्याओं पर कभी कुछ नहीं कहते


पहला, इस मामले में बीजेपी ने अपने प्रवक्ताओं के खिलाफ ऐक्शन लिया, जिससे ये संदेश गया कि इस मुद्दे पर बीजेपी का भी वही पक्ष है, जो भारत के मुसलमानों और बाकी के मुस्लिम देशों का है. दूसरा, आज धर्मनिरपेक्षता की सारी जिम्मेदारी हिन्दुओं पर डाल दी गई है. आज हिन्दुओं के लिए धर्मनिरपेक्ष रह कर ऐसे मुद्दों पर भारत के मुसलमानों का समर्थन करना जरूरी माना जाता है. जबकि हमारे देश के बहुत सारे लोग हिन्दुओं की हत्याओं पर कभी कुछ नहीं कहते. तीसरा, हाल ही में RSS प्रमुख मोहन भावत ने अपने एक बयान में कहा था कि हर मस्जिद में शिवलिंग नहीं देखना चाहिए. इस बयान से भी हमारे देश के हिन्दू निराश हुए हैं.


सरकार संवैधानिक जिम्मेदारियों से बंधी


हालांकि यहां लोगों को ये बात समझनी पड़ेगी कि पार्टी और सरकार की कार्यशैली में बहुत बड़ा अंतर होता है. जो सरकार होती है, वो संवैधानिक जिम्मेदारियों से बंधी होती है. आप प्रधानमंत्री मोदी की कार्यशैली को देखेंगे तो उन्होंने अब तक सारे फैसले संवैधानिक दायरे में रहते हुए लिए हैं. राम मन्दिर का जो फैसला आया था, वो भारत की न्यायिक व्यवस्था के तहत आया था. इस तरह जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के लिए सरकार ने संसदीय कार्यप्रणाली का इस्तेमाल किया था. नागरिकता संशोधन कानून बनाने के लिए भी संवैधानिक व्यवस्था का पालन हुआ था. इसलिए आपको ये समझना होगा कि जो सरकार होती है, वो संवैधानिक जिम्मेदारियों से बंधी होती है.


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