नई दिल्ली: जिस भारत ने दुनिया की बड़ी बड़ी कंपनियों को CEOs दिए. उस भारत ने आज तक दुनिया को कोई ऐसा Global Product या Global Company क्यों नहीं दी, जिसका CEO बनने का सपना विदेशी लोग देखते हों.


पराग अग्रवाल बने Twitter के नए CEO


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भारत के पराग अग्रवाल Twitter के नए CEO बन गए हैं. वो अकेले ऐसे भारतीय नहीं हैं, जो दुनिया की किसी बहुत बड़ी कंपनी के CEO बने हैं.  Microsoft के CEO सत्य नडेला हैं. गूगल के CEO सुंदर पिचाई हैं. Adobe (एडोबी) कम्पनी की कमान शांतनु नारायण के पास है. इसके अलावा IBM और Barclay (बार्कले) कम्पनी के CEO भी भारतीय मूल के हैं. 


सोचिए, जिस देश ने आज़ादी से पहले औद्योगिक क्रान्ति को Miss कर दिया था, आज उसी देश के लोग दुनिया की बड़ी बड़ी कम्पनियों के CEO हैं. क्या आपने कभी सोचा है कि इतने वर्षों में भारत में ऐसी कोई बड़ी कंपनी क्यों नहीं बनी, जिसकी पहचान, Google, Facebook या Apple की तरह Global हो और जिसका CEO बनने के लिए विदेशी लाइन में लगे हों?


भारत में पढ़कर अमेरिका में फहराया परचम


दुनिया की तमाम बड़ी कंपनियों के CEOs भारत में पैदा हुए, उनकी पढ़ाई लिखाई भी भारत में हुई. लेकिन वो नौकरी करने अमेरिका चले गए और फिर अपनी काबिलियत के दम पर CEO बन गए. शायद इसीलिए कई लोग मज़ाक में कहते हैं कि भारत पढ़ेगा तो अमेरिका बढ़ेगा. आजादी के 74 वर्षों के बाद भी भारत ना तो दुनिया को कोई बहुत बड़ा Global Brand दे पाया, ना कोई ऐसा Product बना पाया, जिसकी मांग और पहचान पूरी दुनिया में हो और ना ही कोई ऐसी कंपनी बना पाया, जिसकी पहचान दुनिया के हर कोने में हो.


हम यहां अमेरिका या दूसरे देशों में भारतीय मूल के लोगों की कामयाबी को कम नहीं आंक रहे और ना ही हम रंग में भंग डालने की कोशिश कर रहे हैं. हम सिर्फ वो सवाल पूछ रहे हैं जिसका जवाब देश के नेताओं को और देश को लोगों को देना चाहिए .


भारत इस साल Global innovation index में 132 देशों में 46वें नंबर पर है. पिछली बार भारत 48वें नंबर पर था. स्थिति में सुधार तो हो रहा है. लेकिन आज भी एशिया में सिंगापुर, चीन, जापान और Hong Kong जैसे देश भारत से बहुत आगे हैं. जबकि स्विटज़रलैंड, जर्मनी और अमेरिका जैसे देश Top Ten में आते हैं.


रिसर्च-डेवलपमेंट में बहुत पीछे है भारत


भारत आज भी Research और Development पर अपने GDP का सिर्फ 0.7 प्रतिशत खर्च करता है. जो करीब सवा लाख करोड़ रुपये के आसपास है. जबकि इजराइल अपनी GDP का करीब 5 प्रतिशत Research और Development पर खर्च करता है. जबकि साउथ कोरिया करीब साढ़े चार प्रतिशत और जर्मनी अपने GDP का 3 प्रतिशत R&D पर खर्च करता है. चीन भी इस मामले में भारत से बहुत आगे है. जहां सरकार GDP का करीब ढाई प्रतिशत Research और Development पर खर्च करती है.


इसके अलावा अगर आप भारत की 10 सबसे बड़ी कंपनियों की लिस्ट को ध्यान से देखेंगे तो इसमें करीब 50 प्रतिशत कंपनियां वो दिखाई देंगी जो सरकारी हैं, जैसे Indian Oil Corporation, Oil & Natural Gas Corporation और State Bank of India वगैरह. इससे साबित होता है कि हमने हमेशा से भारत को एक ऐसा देश बनाया. जिसमें आगे बढ़ने के सारे मौके सरकारी कंपनियों को दिए गए जबकि प्राइवेट सेक्टर के लिए मुश्किलें बरकरार रहीं.


क्या Coders का देश बन गया भारत?


इसे एक और उदाहरण से समझिए. आज भारत मोबाइल फोन का सबसे बड़ा बाज़ार है. इस क्षेत्र में भी चीन, दक्षिण कोरिया और अमेरिका की कंपनियों का कब्ज़ा है. जबकि भारत की मोबाइल फोन निर्माता कंपनियों का मार्केट शेयर ना के बराबर है.


भारत कभी कोई बड़ी Global कंपनी इसलिए भी नहीं बना पाया क्योंकि जब भारत में शिक्षा की पहुंच ज्यादा लोगों तक हो भी गई तो भी लोगों ने Innovator यानी अविष्कारक बनने की कोशिश नहीं की. भारत Coders का देश बनकर रह गया. जहां हर साल कॉलेजों से 10 से 15 लाख इंजीनियर्स तो निकलते हैं. लेकिन इनमें से ज्यादातर अपना जीवन नौकरी करने में ही खपा देते हैं. हालांकि हम ऐसा नहीं कह रहे कि सभी ऐसा करते हैं.


भारत के इंजीनियर्स दुनिया की दूसरी कंपनियों के लिए Coding करते हैं लेकिन Innovation की पहेली को Decode नहीं कर पाते. अगर करते भी हैं तो दूसरे देशों में जाकर. ये बात सही है कि भारत आज Start Ups के मामले में दुनिया की राजधानी बनता जा रहा है.


नए स्टार्ट अप्स ने जगाई हैं उम्मीदें


भारत में इस समय 50 हज़ार से ज्यादा Start Ups हैं, जिनमें से करीब 70 तो Unicorn बन चुके हैं यानी इनमें से हर एक का बाज़ार मूल्य कम से कम 7 हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा का हो चुका है. इन 70 Startups में से 33 तो इसी साल Unicorn बने हैं. इनमें से भी शायद ही कोई ऐसा Start Up होगा, जो Global Brand बन गया हो या जिसके Product और सेवाओं की मांग पूरी दुनिया में हो. भारत में कई Start Ups या तो किसी पुराने आइडिया की कॉपी करके शुरू होते हैं या फिर जो Innovative होते हैं, उनके मालिक इन्हें विदेशी कंपनियों को बेच देते हैं.


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यहां हम ना तो Start Ups को हतोत्साहित कर रहे हैं और ना ही भारत के लोगों की क्षमता पर सवाल उठा रहे हैं. हम उस दिन का इंतज़ार कर रहे हैं, जब भारत में एक नहीं बल्कि सैंकड़ों ऐसी Global कंपनियां होंगी, जिनकी शुरुआत भारतीय करेंगे और जिनका CEO बनने के लिए विदेशों के लोग तरसेंगे.


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