तिरुवनंतपुरम: केरल हाई कोर्ट ने गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) काउंसिल से पूछा है कि पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स (Petroleum Products) जीएसटी (GST) के तहत क्यों नहीं आ सकते? हाई कोर्ट ने ये भी निर्देश दिया कि जीएसटी काउंसिल इस पर 10 दिन के अंदर जवाब दाखिल करे. बता दें कि पेट्रोल-डीजल (Petrol-Diesel) के दाम तेजी से बढ़ने के बाद हाल ही में केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी कम की है. इसके साथ कई राज्यों ने भी पेट्रोल-डीजल पर वैट घटाकर जनता को राहत दने की कोशिश की है.


जीएसटी काउंसिल से हाई कोर्ट का सवाल


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हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार को केरल हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई की. डिवीजन बेंच के चीफ जस्टिस एस मणिकुमार और जस्टिस पी चाली ने जीएसटी काउंसिल से पूछा कि क्या वजह है जो पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के अंतर्गत अभी तक नहीं लाया गया है.


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केंद्र और राज्य पेट्रोल-डीजल पर लगाते हैं कितना टैक्स?


बता दें कि केरल हाई कोर्ट में पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के तहत लाने की मांग वाली जनहित याचिका एक स्वैच्छिक संगठन केरल प्रदेश गांधी दर्शनवादी ने दायर की है. केरल प्रदेश गांधी दर्शनवादी का पक्ष रखते हुए वकील अरुण बी वर्गीज ने केरल हाई कोर्ट में कहा कि अलग-अलग राज्यों में पेट्रोल-डीजल का रेट अलग-अलग है क्योंकि राज्य पेट्रोलियम प्रोडक्ट पर एक समान टैक्स नहीं लगाते हैं. ये संविधान के अनुच्छेद 279 (ए) 6 के तहत राष्ट्रीय बाजार के सामंजस्य में बाधा डालता है. एक लीटर ईंधन की कीमत में कम से कम 60 फीसदी राज्य और केंद्र के टैक्स का योगदान होता है.


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जीएसटी के तहत पेट्रोल-डीजल पर कितना टैक्स लगेगा?


जनहित याचिका में ये भी कहा गया कि अगर पेट्रोल-डीजल जीएसटी के तहत आ जाते हैं तो पूरे देश में पेट्रोल-डीजल का रेट एक समान रहेगा. फिर पेट्रोल-डीजल पर टैक्स सिर्फ 28 फीसदी ही लगेगा. इससे पेट्रोल-डीजल का रेट कम हो जाएगा और आम जनता को राहत मिलेगी. एक वेलफेयर स्टेट वो होता है जहां का हर एक नागरिक रोजमर्रा की चीजों को खरीदने की स्थिति में हो. अगर पेट्रोल-डीजल के दाम ऐसे ही बढ़ते रहे और आम लोगों को मुश्किल का सामना करना पड़ा तो ये संविधान के आर्टिकल 21 का उल्लंघन होगा.


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