Durga Puja Sonagachi: एशिया के सबसे बड़े रेड-लाइट एरिया कोलकाता के सोनागाछी की सेक्स वर्कर्स ने इस साल दुर्गा पूजा से जुड़ी सदियों पुरानी परंपराओं को निभाने से इनकार कर दिया है. पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में हिन्दुओं का सबसे बड़ा पर्व दुर्गा पूजा धूमधाम से मनाया जाता है. कोलकाता में देवी दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए सेक्स वर्कर्स के घरों के बाहर की मिट्टी (पुण्य माटी) के उपयोग की सदियों पुरानी परंपरा है. लेकिन इस बार सेक्स वर्कर्स ने पुण्य माटी देने से इनकार कर दिया है.


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पांच साल से बंद है पुण्य माटी परंपरा


याद दिला दें कि सोनागाछी की सेक्स वर्कर्स ने बड़ी संख्या में बलात्कार और हत्या के शिकार डॉक्टर को न्याय दिलाने के लिए विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया. कोलकाता में जूनियर डॉक्टर के साथ हुए क्रूर बलात्कार और हत्या के खिलाफ सेक्स वर्कर्स ने भी आवाज बुलंद की है. लेकिन पुण्य माटी की परंपरा को अचानक नहीं रोका गया है. बल्कि, इस परंपरा को बंद हुए लगभग पांच साल हो चुके हैं. 


क्या कहा सोनागाछी की सेक्स वर्कर्स ने


सेक्स वर्कर्स का कहना है कि उनकी लंबे समय से चली आ रही मांगों को नजरअंदाज किया जा रहा है. उन्हें आज भी समाज में उनके काम को लेकर सम्मान और स्वीकृति नहीं मिल रही है. एक सेक्स वर्कर ने ज़ी न्यूज़ से बात करते हुए बताया कि यह समस्या अभी की नहीं है. कई वर्षों से हमने पुण्य माटी नहीं दी है. हमारे पेशे को समाज में आज भी स्वीकृति नहीं मिली है. हम लंबे समय से सेक्स वर्क को मान्यता देने की मांग कर रहे हैं. पुण्य माटी के बारे में माना जाता है कि इस मिट्टी में उन लोगों की पवित्रता और गुण समाहित होते हैं जो सेक्स वर्कर्स के पास आते हैं.


पुण्य माटी को बेचने की कोशिश


सेक्स वर्कर्स ने यह भी बताया कि कुछ लोग उनकी मिट्टी को मूर्ति बनाने वालों को बेच रहे हैं. जबकि परंपरा के अनुसार, यह मिट्टी उनसे भीख के रूप में लेकर आशीर्वाद के रूप में प्राप्त की जानी चाहिए. वे यह भी कहती हैं कि उन्होंने दुर्गा पूजा में अनेक योगदान दिए हैं, फिर भी उन्हें समाज से वह "सम्मान" नहीं मिलता जिसकी वे हकदार हैं.


10 दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा...


दुर्गा पूजा एक वार्षिक त्योहार है, जिसे सितंबर या अक्टूबर में मनाया जाता है. यह विशेष रूप से कोलकाता में और भारत के अन्य हिस्सों और बंगाली प्रवासी समुदायों में भी धूमधाम से मनाया जाता है. यह त्योहार 10 दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा के रूप में मनाया जाता है. इसे धर्म और कला के सार्वजनिक प्रदर्शन का सबसे बेहतरीन उदाहरण माना जाता है. इसमें बड़े पैमाने पर मूर्तियों और पंडालों की स्थापना की जाती है. साथ ही पारंपरिक बंगाली ढोल की धुनों के साथ देवी की वंदना की जाती है.