Tihar jail stories: यूं तो जेलर की छवि क्रूर और अमानवीय व्यक्ति की होती है. लेकिन अब आपको जिसके बारे में बताने जा रहे हैं, उनका नाम सुनील गुप्ता है. सौम्य छवि वाले शांत स्वभाव के गुप्ता जेलर थे. जेलर भी ऐसी-वैसी जगह के नहीं, बल्कि दिल्ली की मशहूर तिहाड़ जेल के. सुनील गुप्ता बाद में लॉ ऑफिसर बने. उन्हें राष्ट्रपति से अवॉर्ड मिला, वो भी दो-दो बार. उन्होंने अपनी करीब 35 साल की नौकरी के अनुभवों को किताब की शक्ल दी है. 


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महिलाएं बच्चा पैदा करने जेल जाती थीं


35 साल तक तिहाड़ जेल (Tihar Jail) के लॉ अफसर और प्रवक्ता रहे सुनील गुप्ता (Sunil Gupta) की किताब का नाम Black Warrant है. किताब में तिहाड़ जेल की कई अनसुनी कहानियां हैं. एक मीडिया इंटरव्यू में तिहाड़ के पूर्व जेलर ने चौंकाने वाला वाकया बताते हुए लिखा कि कई महिलाएं महिलाएं बच्चा पैदा करने के लिए तिहाड़ आती थीं. 


कम लोगों को मालूम होगी ये कहानी


अपनी किताब के लॉन्च के बाद उन्होंने मीडिया के साथ अपने अनुभव बयान करते हुए बताया, 'वो साल था 2003-2004 का जब जेल में महिला कैदियों की डिलीवरी के मामले अचानक तेजी से बढ़े तो तिहाड़ प्रशासन में हड़कंप मच गया. जेल में पैदा हुए बच्चों का आंकड़ा देख कर पूरा प्रशासन दंग भौचक्का रह गया था. 


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भले ही उस समय सोशल मीडिया और वाट्सऐप जैसे रियल टाइम मैसेजिंग साधन नहीं थे, इलेक्ट्रानिक मीडिया भी आज के जैसी एडवांस नहीं थी, फिर भी पत्रकारों से तिहाड़ में पैदा हो रहे बच्चों की खबर छिपाना सबसे बड़ी चुनौती थी. उस समय जेल प्रशासन को डर था कि अगर कहीं ये खबर लीक होकर जेल से बाहर चली गई तो जेल की बड़ी बदनामी होगी कि आखिर जेल में इतने बच्चे कैसे पैदा हो रहे हैं.


अंधविश्वास और सुरक्षा


उन्होंने आगे बताया कि जांच हुई तो ऐसा होने की दो वजहें सामने आईं, पहला - अंधविश्वास और दूसरा जच्चा-बच्चा की सुरक्षा. अंधविश्वास ये कि - बच्चा जेल पैदा हुआ तो लड़का होगा. इसके पीछे उनके दिमाग में भगवान कृष्ण के जन्म की कहानी थी. उनका ये भी मानना था कि वो बालक कन्हैया की तरह स्वस्थ्य, बुद्धिमान, समर्थ, धनवान और दीर्घायु होगा. 


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दूसरी वजह भी दिलचस्प


जेलर गुप्ता ने बताया कि ये महिलाएं कोई हार्डकोर कैदी नहीं, बल्कि आस पास की झुग्गियों यानी स्लम कॉलोनी की महिलाएं थीं. कोई मिथ के चलते तो कुछ महिलाएं जेल हॉस्पिटल के बेहतरीन इंतजाम के चलते बच्चा पैदा करने वहां आती थीं. रिटायर्ड जेलर ने बताया कि उस दौरान उनकी जेल में डिलीवरी कराने के लिए अस्पतालों से भी अच्छे चिकित्सा इंतजाम थे. अच्छी गाइनेकोलॉजिस्ट (Gynaecology) थीं.


इलाज और बच्चों की देखभाल करने के सारे उपकरण थे. इसलिए आस-पास के इलाकों में रहने वाली गरीब महिलाएं अच्छे इलाज के लिए प्रेग्नेंसी कंफर्म होने के बाद खुद को शराब की तस्करी जैसे मामलों में फंसा कर जेल आ जाती थीं. हालांकि कोई नेक्सस नहीं था सबकुछ इतना नेचुरल होता था कि किसी को पता नहीं चलता था.


यूं मिला समाधान


वजह पता चलने के बाद जेलर साहब ने जेल में पैदा हुए बच्चों के आंकड़ों का अध्ययन किया और उसके नतीजों को आसपास के इलाकों खासकर उस समय की झुग्गी बस्तियों में डॉक्टरों को ले जाकर महिलाओं को जागरूक किया. आंकड़े ये बताते थे कि जेल में पैदा होने वाले बच्चों में अधिकांश लड़कियां थीं. डॉक्टरों की समझाइश का असर हुआ कुछ लोकल पुलिस ने ऐसे मामलों पर काबू पाया और धीरे धीरे जेल में पैदा होने वाले बच्चों का आंकड़ा 40 से घटकर सामान्य स्तर यानी 12 से 15 तक आ गया था.