नई दिल्ली: केंद्र सरकार द्वारा लागू नए कृषि कानून (New Agriculture Law) बरकरार रहेंगे या रद्द होंगे? मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले के बाद इसका जवाब मिल जाएगा. इस फैसले के साथ पिछले 47 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर जारी किसानों का प्रदर्शन (Farmers Protest) भी समाप्त हो सकेगा.


केंद्रीय कृषि मंत्री ने दिया ये बयान


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केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) ने कल सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद कहा कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में सुप्रीम कोर्ट सर्वोच्च है. हमारी उसके तरफ प्रतिबद्धता है. किसान आंदोलन के परिणाम स्वरूप सरकार चर्चा के रूप में जो कर सकती थी हमने किया. इस दौरान संशोधन का प्रस्ताव भी दिया गया. लेकिन किसान यूनियन तीनों कानून रद्द कराने की मांग पर अड़ी है. हमने कहा कि जिस प्रावधान पर आपत्ति है आप बताइए, हम संशोधन करेंगे. 15 तारिक को हमें लगता है किसान वार्ता को आगे बढ़ाएंगे, और संभवता कुछ हल निकल पाएगा.


चीफ जस्टिस ने जताई नाराजगी


नए कृषि कानूनों और किसान प्रदर्शन से जुड़ी याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस ने एसए बोबडे ने सरकार पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, 'आप बताइए कि कानून पर रोक लगाएंगे या नहीं. नहीं तो हम लगा देंगे. जिस तरह से सरकार इस मामले को हैंडल कर रही है, हम उससे खुश नहीं हैं. हमें पता नहीं कि सरकार कैसे मसले को डील कर रही? कानून बनाने से पहले किससे चर्चा की? कई बार से कह रहे हैं कि बात हो रही है. क्या बात हो रही है?'


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किसानों के प्रदर्शन पर SC ने की टिप्पणी


चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि प्रदर्शन स्थल पर स्थिति खराब हो रही है. किसान आत्महत्या कर रहे हैं. पानी के अलावा बेसिक सुविधाओं का अभाव है. महामारी के दौर में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो रहा है. मैं किसान संगठनों से पूछना चाहता हूं कि आखिर इस ठंड में महिलाएं और बूढ़े लोग प्रदर्शन में क्यों है? उन्होंने कहा कि कोर्ट किसी भी नागरिक को ये आदेश नहीं दे सकता कि आप प्रदर्शन न करें. हां, ये जरूर कह सकता कि आप इस जगह प्रदर्शन करें. अगर कुछ घटित होता है तो उसके जिम्मेदार सब होंगे, हम नहीं चाहते कि हमारे हाथ रक्त रंजित न हो.


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8 वार्ता के बाद भी नहीं बनी सहमति


गौरतलब है कि केंद्र सरकार और किसान संगठन के नेताओं के बीच अभी तक 8 दौर की वार्ता हो चुकी है, जिसमें कोई भी सहमति नहीं बन पाई है. किसान नेता लगातार तीनों कृषि कानूनों को काला कानून करार देते हुए इन्हें रद्द कराने की मांग कर रहे हैं, जबकि सरकार प्रावधानों में बदलाव करते हुए इन्हें बरकरार रखने की जिद्द पर अड़ी है. किसानों का साफ कहना है कि वे कानून रद्द होने तक प्रदर्शन जारी रखेंगे.


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