Rajasthan Silicosis Disease: राजस्थान में खान में काम करने वाले मजदूरों का जानलेवा सिलिकोसिस बीमारी (silicosis disease) का सामना करना पड़ रहा है. इस बीमारी की वजह से कई लोग दुनिया छोड़कर जा चुके हैं. हालांकि, इस बीमारी से पीड़ित लोगों को राज्य सरकार की तरफ से मुआवजा भी दिया जाता है, लेकिन जान के आगे ये रकम कुछ भी नहीं है.


जानलेवा बीमारी से हो रहे हैं पीड़ित


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मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, राजस्थान के भीलवाड़ा के कई इलाकों में खदानों से पत्थर निकालने का काम होता है. इनमें संग्रामपुरा, गुलाब सागर समेत कई गांव हैं. यहां रहने वाले लोग जवानी में ही इस जानलेवा बीमारी से पीड़ित हो रहे हैं, जिस वजह से उनको जान तक गंवानी पड़ रही है.


घर का खर्च चलाना मुश्किल


बाकी के जो बचे हैं, वे बीमारी से इस लायक नहीं रहे कि काम कर सके. आलम यह है कि घर का खर्च चलाना मुश्किल पड़ रहा है. लोग दाने-दाने को मोहताज हैं. आलम यह है कि घर की औरतों को मजदूरी कर गुजारा करना पड़ रहा है. 


यहां कोई नहीं करना चाहता शादी


इन इलाकों में लोगों की जान जाने से कोई अपनी बेटी का शादी यहां नहीं करना चाहता है, क्योंकि यहां के पुरुषों के कम उम्र में जान गंवाने से औरते विधवा हो रही हैं. इलाज में सारी रकम खर्च हो जाती है, बाद में घर का आदमी भी नहीं बचता.


पेंशन के तौर पर 1500 रुपये


सिलिकोसिस से जान गंवाने वाले पुरुषों की विधवाओं को हर महीने 1,500 रुपये पेंशन मिलता है, लेकिन ये भी नाकाभी होता है. इनकी बेवाओं और बच्चों को आज भी सरकार की नीति के तहत मिलने वाले मुआवजे व मासिक पेंशन का इंतजार है.


आयोग ने दिया आदेश


वहीं, सिलिकोसिस से मौत के मामले में प्रमाण पत्र नहीं होने से विभाग ने मृतक आश्रितों को मुआवजा देने से इनकार कर दिया, लेकिन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने संवेदनशीलता दिखाते हुए सरकार को पांच लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है.


ऐसे होती है बीमारी


सिलिकोसिस बीमारी फेफड़ों मे धूम के कण जमा होने के कारण होती है. जब मजूदर खदानों में पत्थर काटने का काम करते हैं, तब धीरे-धीरे उसके कण फेफड़ों में जमा होने लगते हैं. इससे उनका सांस लेना दूभर हो जाता है. इसके बाद चलने-फिरने में दिक्कत होने लगती है, साथ ही उल्टियां भी होने लगती हैं. हालत खराब होने पर इंसान की मौत तक हो जाती है.
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