World Homeopathy Day: होम्योपैथी की मीठी गोलियों पर देश को कितना विश्वास?
World Homeopathy Day: देश भर में होम्योपैथी के 245 कॉलेज हैं, जिनमें हर साल 19,572 डाक्टर सेवा के लिए निकलते हैं. भारत में होम्योपैथी, आयुष (AYUSH) मंत्रालय के तहत आता है.
World Homeopathy Day: होम्योपैथी (Homeopathy) की मीठी गोलियों का कुछ लोग मजाक उड़ाते हैं और कुछ इसके फायदे गिनाते नहीं थकते. लगभग हर परिवार में किसी न किसी ने होम्योपैथी इलाज का कभी न कभी इस्तेमाल जरूर किया होगा. 10 अप्रैल को पूरी दुनिया जर्मन चिकित्सक डॉक्टर क्रिस्टियन फ्रेडरिच सैमुअल हेनेमन के जन्मदिन को होम्योपैथी दिवस (World Homepathy Day) के रुप में मनाती है. आइये इस मौके पर आपको बताते हैं दुनिया के साथ-साथ भारत में Homeopathy के आंकड़े क्या कहते हैं?
भारत में होम्योपैथी
सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में कुल एलोपैथी डाक्टरों की संख्या 12.68 लाख है. आयुष के तहत वैकल्पिक पद्धतियों में रजिस्टर्ड प्रैक्टिशनर का आंकड़ा देखें तो कुल 5,93,761 में से करीब आधे 2,37,412 होम्योपैथी पद्धति में सेवा प्रदान करते हैं. Ayush Portal के अनुसार होम्योपैथी 3,69,32,068 लोगों को उपचार उपलब्ध करवा चुका है.
देश भर में होम्योपैथी के 245 कॉलेज
देश भर में होम्योपैथी के 245 कॉलेज हैं, जिनमें हर साल 19,572 डाक्टर सेवा के लिए निकलते हैं. भारत में होम्योपैथी, आयुष (AYUSH) मंत्रालय के तहत आता है. भारत में आयुष मंत्रालय के तहत आने वाले कुल 3,859 अस्पतालों में से 262 अस्पताल होम्योपैथी की सेवाएं देते हैं. वहीं छोटी डिस्पेंसरी की बात करें तो आयुष की कुल 29,951 डिस्पेंसरी में से 27 प्रतिशत (8,230) होम्योपैथी से जुड़ी हुई है.
दुनिया में होम्योपैथी
होम्योपैथी वर्तमान में 80 से अधिक देशों में चलन में है. इसे 42 देशों में चिकित्सा की एक व्यक्तिगत प्रणाली के रूप में कानूनी मान्यता मिल चुकी है. करीब 28 देशों में होम्योपैथी को पूरक और वैकल्पिक चिकित्सा के एक भाग के रूप में मान्यता प्राप्त है.
देश में कहां सबसे ज्यादा इस्तेमाल होती है होम्योपैथी
साल 2016 का NSSO का सर्वे बताता है कि पूर्वी भारत के चार राज्य पश्चिम बंगाल, असम, बिहार और ओडिशा में होम्योपैथी को अपनाने वाले चार सबसे बड़े राज्य हैं. सर्वे के अनुसार पश्चिम बंगाल में 27.4 प्रतिशत लोग होम्योपैथी को अपनाते हैं.
जानिए होम्योपैथी के दो नियमों के बारे में
होम्योपैथी उपचार पद्धति जर्मनी में करीब 200 साल पहले विकसित हुई थी. होम्योपैथी के मुख्यरुप से दो सिंद्धांत हैं. पहला 'लाइक क्योर लाइक' यानी बीमार लोगों का इलाज करने के लिए ऐसे पदार्थ को खोजना जो, स्वस्थ लोगों में समान लक्षण पैदा करता हो. दूसरा है 'न्यूनतम खुराक का नियम', इसका मतलब है कि दवा की खुराक जितनी कम होगी, उसकी प्रभावशीलता उतनी ही अधिक होगी. होम्योपैथी दवाईयां अधिकतर लाल प्याज, पर्वती जड़ी बूटियों जैसे अर्निका, बेलाडोना, सफेद आर्सेनिक जैसे पौधों और खनिज से तैयार की जाती है.
व्याक्ति अलग उपचार अलग
किसी एक बीमारी के लिए एक ही होम्योपैथी दवाई नहीं दी जा सकती. दरअसल, होम्योपैथी में उपचार 'व्यक्तिगत' होता है. इसका मतलब है कि इलाज हर व्याक्ति के अनुरुप होगा. एक ही स्थिति वाले अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग उपचार होना होम्योपैथी में आम बात है. इस बारे में होम्योपैथी के वरिष्ठ डॉक्टर सुबोध सिंघल ने बताया कि होम्योपैथी में आपसे जानकर बीमारी का कारण खोजने की कोशिश की जाती है. उसके बाद कारण को जानकर उसका निदान किया जाता है. इसीलिए आपको बेहतर नतीजे मिलते हैं.
होम्योपैथी कितनी लाभकारी?
होम्योपैथी को उपयोगी और सस्ता उपचार का साधन माना जाता है. डॉ. सुबोध सिंघल ने बताया कि हमारी एलोपैथी से कोई लड़ाई नहीं है. हम सब डॉक्टर उपचार करना चाहते हैं. मगर होम्योपैथी Cost effective होने के साथ-साथ क्योर भी करता है. हम सिर्फ बीमारी या लक्षणों को दबाकर फौरी राहत देने में विश्वास नहीं करते. कोविड के समय आयुष मंत्रालय ने Immunity Booster के तौर पर Album-30 नामक होम्योपैथी दवाई की सिफारिश की थी. जिसपर काफी विवाद भी हुआ था. हालांकि असम जैसे कई राज्यों ने इस दवाई को बड़े स्तर पर आशा वर्कर के जरिए लोगों तक पहुंचाई थी.
अभी उपचार की पहली पसंद नहीं
अभी भी बहुत लोग अलग-अलग उपचार पद्धतियों से परेशान होकर होम्योपैथी उपचार के लिए आते हैं. डॉ. सुबोध सिंघल ने बताया कि कोविड के बाद अब हम देख रहे हैं कि धीरे-धीरे लोग इसे प्रथम उपचार पद्धति के तौर पर भी आजमा रहे हैं. वीडियो कॉफ्रेंसिंग के जरिए अब हम देश और दुनिया के कई हिस्सों में पहुंच रहे हैं.
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