नई दिल्ली: आज दुनिया भर में वर्ल्ड टॉयलेट डे मानया जा रहा है. लोगों में सफा-सफाई को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए इस दिन का विशेष महत्व है, क्योंकि अगर भारत की ही बात करें तो यहां साफ-सफाई के अभाव में होने वाली मौतों का आंकड़ा पाकिस्तान जैसे देश से भी ज्यादा है. आंकड़ों की बात बाद में होगी पहले बात टायलेट की. इस दिन का जिक्र करते हुए पूर्वोत्तर भारत का वह एक छोटा सा गांव मुझे अपनी ओर खींच रहा है, जिसने साफ-सफाई के मामले में वह मिसाल पेश की जिसे शायद दिल्ली या मुंबई में बैठे लोग ना कर पाएं. 


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असम के गुवहाटी से करीब 150 किलोमीटर दूर ग्वालपाड़ा जिला है. यह जिला ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी किनारे पर बसा हुआ है और मेघालय के पूर्वी और पश्चिमी गारो हिल्स जिले को इसकी सीमाएं छू रही हैं. मुस्लिम बाहुल्य इस जिले की खूबसूरती भी कुछ अलग ही है. इस जिले में एक ब्लॉक है बालिजाना और ग्वालपाड़ा से भी करीब 15 किलोमीटर कच्चे रास्ते पर होकर आप पहुंच सकते हैं रंगसापाड़ा गांव. रंगसापाड़ा इसाई बहुल्य गांव है. करीब 800 लोगों की आबादी का यह गांव साफ-सफाई के मामले में पूरे असम के मस्तक पर चांद बनकर चमक रहा है. यहां हर घर में पक्का शौचालय बना हुआ है. गांव के लोग हफ्ते में एक बार मिलकर पूरे गांव की सफाई करते हैं. हर घर के बाहर कुड़ेदान लगा हुआ है और घर का जैविक और अजैविक कूड़े को अलग-अलग बरतनों में इकट्ठा किया जाता है. 


रंगसापाड़ा गांव के हर घर और हर धार्मिक स्थल के बाहर Use Me की टोकरी लटकी हुई मिलेगी

दूरदराज के एक गांव में साफ-सफाई को लेकर इतनी जागरूकता को देखकर आपको यह लग सकता है कि शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत की मुहिम इन लोगों के लिए प्ररेणा बनी हो, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है. हां स्वच्छ भारत मिशन से इन लोगों को इतना फायदा जरूर हुआ है कि अब इसके काम को प्रशासन नोटिस में लेता है और सरकार तक उनकी मिसाल पेश की जाने लगी है. गांव के मुखिया है रॉबर्टसन मोमिन. मोमिन बताते हैं कि उनके गांव के लोग 1990 से ही साफ-सफाई पर खासा ध्यान दे रहे हैं. और इसकी शुरूआत कुछ इस तरह हुई कि सभी गांव वालों ने एक बैठक कर गांव के लिए कुछ करने का फैसला किया. और इसमें सबसे पहला कदम था साफ-सफाई को लेकर. 
रॉबर्टसन मोमिन बताते हैं कि गंदगी, नशाखोरी, खुले में शौच और आपस में होने वाले लड़ाई-झगड़े के खिलाफ मिलकर मुकाबला करने की पूरे गांव ने सौगंध ली. इस सौगंध को तोड़ने वाले के लिए सजा भी सभी गांववालों ने मिलकर ही तय की. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आज से करीब 27 साल पहले इस छोटे से गांव में गंदगी फैलाने वाले, नशा करने वाले या फिर लड़ाई-झगड़ा करने वालों के लिए क्या सजा मुकर्रर की होगी. पूरे 5001 रुपये का जुर्माना. 1990 में मजदूरी कर गुजर-बसर करने वालों के लिए ये 5 हजार का जुर्माना क्या होगा, इसके बारे में सोचा जा सकता है. हालांकि मेरे लिए आज भी यह एक बड़ी रकम है. 


खास बात यह है कि पंचायत ने जुर्माना तो तय कर दिया, लेकिन जुर्माना वसूलने की कभी नौबत तक नहीं आई. सभी गांव वालों ने इस नियमों को दिल से लगाया और गांव के विकास में जुट गए. आज इन्हीं लोगों की बदौलत ग्वालपाड़ा को पूरे असम का सबसे स्वच्छ गांव होने का खिताब मिला है. असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने पिछले साल एक भव्य कार्यक्रम में गांव को 45 लाख रुपये की नकद राशि देकर सम्मानित किया.


बहुत पहले से कर रहे हैं टायलेट का इस्तेमाल: बालिजाना ब्लाक की प्रमुख रत्ना देवी बताती हैं कि इस इलाके में गारो समुदाय के लोग रहते हैं और यह समुदाय सफाई पंसद है. यहां के लोग खुले में शौच नहीं जाते. घरों में कच्चे शौचालय बने थे, उन्हीं का इस्तेमाल होता था. इन शौचालयों को बनाने के लिए सभी लोगों ने मिलकर श्रमदान किया था. रत्ना देवी बताती हैं कि 'स्वच्छ भारत मिशन' आने से कच्चे शौचालयों को बदलकर पक्का किया गया. घर-घर में पानी का इंतजाम किया गया. 


गांव के लोग हर त्योहार मिलकर मनाते हैं

इस काम में संयुक्त राष्ट्र बाल कोष यानी यूनिसेफ का अहम रोल रहा है. यूनिसेफ यहां पर गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर लोगों में साफ-सफाई और खुले में शौच मुक्त होने के प्रति जागरूकता फैलाना का काम कर रहा है. 


अब असम में स्वच्छता की बात बालिजाना और रंगसापाड़ा के बिना पूरी नहीं होती है


पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट (P.H.E) में काम करने वाली मानालिसा दास बताती हैं कि वह पिछले कई साल से बालिजाना ब्लॉक में आने वाली सभी 10 पंचायतों में साफ-सफाई पर काम कर रही हैं. मानालिसा बताती हैं कि इस गांव से प्रेरणा लेकर आसपास के गांववालों ने भी खुले में शौचमुक्त और साफ-सफाई की मुहिम शुरू की और आज यहां के सभी गांव स्वच्छ गांवों की श्रेणी में आते हैं.