Zakir Hussain : तबले पर उंगलियां थिरकाकर लोगों को बैठे-बैठे उनकी सीट पर झुमा देने वाला उस्ताद जाकिर हुसैन की तबीयत नासाज बनी हुई है. लोग उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना कर रहे हैं. आइए नजर डालते हैं, तबला 'सरकार' की जिंदगी के रोजनामचे (Ustad Zakir Hussain profile) पर. जाकिर हुसैन साहब का जन्म (Zakir Hussain birth) 09 मार्च 1951 को हुआ था. तबले का जादू उन्हें विरासत में मिला था.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

उनके पिता का भी मौसिकी की दुनिया में बड़ नाम था. वो भी तबला वादक थे. तबले पर जुगलबंदी करने का शौक उस्ताद को पिता को देखकर लगा. पिता ने भी बेटे को शिद्दत से तबले की बारीकियां सिखाई. उस्ताद ने भी उन्हें नाराज नहीं किया, अपने समर्पण से उस्ताद ने बहुत जल्द तबले की हर बारीकी को न सिर्फ समझा, बल्कि उसे अपनी सांसों में समाते हुए जिंदगी में उतार लिया. अल्ला रक्खा खान भी अपने दौर के मशहूर तबला वादक हुआ करते थे. हर पिता की चाहत होती है कि वो अपने बेटे के नाम से जाना जाए, उस्ताद ने अपने पिता को अपने ऊपर गुरूर करने का भरपूर मौका दिया.


ये भी पढ़ें- मुल्क में लगी है आग, मगर बांग्लादेश के सबसे रईस पर नहीं कोई फर्क, अंबानी से होती है तुलना


पूत के पांव पालने में दिख गए थे...पहला कॉन्सर्ट


मायानगरी मुंबई में पैदा हुए जाकिर हुसैन ने सेंट जेवियर्स कॉलेज से पढ़ाई की. 11 साल की उम्र में अमेरिका में उन्होंने अपनी लाइफ का पहला कॉन्सर्ट किया. जिसके बाद हुसैन की पहचान मौसिकी की दुनिया में होने लगी थी. 12 साल की उम्र में वे अपने पिता के साथ एक कॉन्सर्ट में आए थे. वहां संगीत की दुनिया के कई दिग्गज मौजूद थे. उनमें पंडित रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खान, बिस्मिल्लाह खान समेत पंडित शांता प्रसाद और पंडित किशन महाराज भी थे.


पहली कमाई


उस दौरान आयोजकों में से किसी एक ने छोटे से जाकिर को अल्ला रक्खा खान के सुपुत्र होने की वजह से स्टेज पर पुकारा. उम्दा प्रदर्शन की वजह से उस दिन उन्हें इनाम में 5 रुपए मिले थे. उस दौर में वो बड़ी रकम थी. उससे बड़ी बात ये कि उन्हें ये कमाई संगीत की कई महान विभूतियों के बीच मिली. ये किस्सा बताते हुए जाकिर हुसैन साहब ने कहा था कि वो उनके लिए सबसे कीमती तोहफों में से था. 


ये भी पढ़ें- दुनिया की सबसे महंगी मिसाइल, कीमत जानकर भूल जाएंगे गणित! दाम है- 5500000000 रुपये


पहला एलबम


उस्ताद का पहला एलबम साल 1973 में आया. उसे लोगों ने खूब सराहा था. 'लिविंग इन द मटेरियल वर्ल्ड' नाम के एलबम ने उस दौर में धूम मचा दी थी. उस्ताद ऐसे पहले इंडियन फनकार थे जिन्हें ऑल-स्टार ग्लोबल कॉन्सर्ट में हिस्सा लेने के लिए तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने व्हाइट हाउस में आमंत्रित किया गया था. टीन एज शुरू होने से पहले वो अपने पिता के साथ एक कॉन्सर्ट में गए थे. वहां संगीत की दुनिया के कई महान फनकार मौजूद थे. उस महफिल को मानो सितारों से खुद अपने हाथों से सजाया था. उस मंच पर पंडित रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खान, बिस्मिल्लाह खान, पंडित शांता प्रसाद और पंडित किशन महाराज भी मौजूद थे.


ये भी पढ़ें- महाराष्ट्र कैबिनेट: BJP के 19, शिवसेना-NCP को मिले इतने मंत्री, इस फॉर्मूले से बना देवेंद्र फडणवीस का मंत्रिमंडल


विनम्रता की मिसाल


उस्ताद काफी समय से बीमार चल रहे थे, अस्पताल में भर्ती होने की वजह से उनके दिसंबर में भारत में होने वाले कॉन्सर्ट रद्द कर दिए गए थे. अपनी काबिलियत से उन्हें संगीत जगत का सबसे बड़ा खिताब ग्रेमी अवॉर्ड मिला. उनका कहना है कि उस्ताद बड़े विनम्र थे, कामयाबी उनके कदम चूमती थी, फिर भी उन्होंने कभी किसी बात का घमंड नहीं किया. यहां तक कि उन्होंने कभी खुद को सबसे उम्दा तबला वादक नहीं माना. अपने कई इंटरव्यूज में उन्होंने बेबाकी से कहा कि उनके कई साथी उनके जितना या फिर उनसे भी बेहतर तबला बजाते हैं.


'उस्ताद' का निकाह


जाकिर हुसैन ने 1978 में एक कथक परफार्मर एंटोनिया मिनेकोला से शादी की. एंटोनिया इटैलियन अमेरिकी थीं. फैमिली की बात करें तो उनकी दोनों बेटियां अनीसा और इसाबेला कुरैशी हैं.


सम्मान मिलते रहे....


उस्ताद को साल 1988 में पद्म श्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण के सम्मान से नवाजा गया था. इंटरनेशनल अवार्ड्स की बात करें तो साल 1992 में द प्लेनेट ड्रम और 2009 में ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट के लिए उन्हें 2 ग्रैमी अवार्ड मिले. संगीत नाटक अकादमी की ओर से उस्ताद जाकिर हुसैन को सम्मान मिल चुका है. उस्ताद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. स्टेज पर उन्होंने कभी ये नहीं देखा कि उनके साथ कौन है, उन्होंने पूरी शिद्दत से अपना हर असाइनमेंट पूरा किया. उस्ताद जाकिर हुसैन को अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी में म्यूजिक टीचर का पद देने की सिफारिश एक बड़ी हस्ती ने की थी.