ZEE जानकारी: दुनिया में हिंदुओं की आबादी हो रही है कम
वर्ष 1951 मे भारत में 84.1 प्रतिशत हिंदू थे. लेकिन 2011 में हिंदुओं की आबादी घटकर 79.8 प्रतिशत रह गई . यानी 60 वर्षों में भारत में हिंदुओं की आबादी 4.3 प्रतिशत घट गई .
हिंदू धर्म को सनातन धर्म भी कहा जाता है . सनातन का मतलब है... शाश्वत यानी हमेशा बना रहने वाला . मतलब जिसकी ना कभी शुरुआत हुई और ना ही कभी अंत होगा . ये सनातन शब्द की परिभाषा है... लेकिन सनातन धर्म यानी हिंदू धर्म की आबादी पूरी दुनिया में लगातार घटती जा रही है .
आज हमने इस पर एक अध्ययन किया है . अगर कुछ प्रमुख देशों की सरकारी एजेंसियों और दुनिया के मशहूर रिसर्च Institues के आंकड़े देखें तो ये पता चलता है कि हिंदू धर्म के मानने वाले अब लगातार कम होते जा रहे हैं .
वर्ष 1951 मे भारत में 84.1 प्रतिशत हिंदू थे. लेकिन 2011 में हिंदुओं की आबादी घटकर 79.8 प्रतिशत रह गई . यानी 60 वर्षों में भारत में हिंदुओं की आबादी 4.3 प्रतिशत घट गई .
नेपाल में वर्ष 1952 में 88.87 प्रतिशत हिंदू थे. लेकिन 2011 में नेपाल में हिंदुओँ की आबादी घटकर 81.3 प्रतिशत हो गई. यानी 59 वर्षों में नेपाल में भी हिंदुओं की आबादी 7.57 प्रतिशत घट गई .
बांग्लादेश में वर्ष 1951 में करीब 22 प्रतिशत हिंदू थे. लेकिन 2015 में हिंदुओं की आबादी घटकर 10.5 प्रतिशत हो गई.यानी 64 वर्षों में बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी करीब साढ़े 11 प्रतिशत घट गई.
Mauritius में वर्ष 1901 में 55.62 प्रतिशत हिंदू थे. लेकिन 2010 में हिंदुओं की आबादी घटकर 48.5 प्रतिशत हो गई. यानी 109 वर्षों में Mauritius में हिंदुओं की आबादी 7.12 प्रतिशत घट गई .
दक्षिण अमेरिकी देश Guyana में वर्ष 1991 में कुल जनसंख्या के 35 प्रतिशत हिंदू थे. लेकिन वर्ष 2012 में हिंदुओं की आबादी घटकर 24.8 प्रतिशत हो गई . यानी 21 वर्षों में Guyana में हिंदुओं की आबादी करीब 10 प्रतिशत घट गई.
इसी तरह... फिज़ी में वर्ष 1976 में 40 प्रतिशत हिंदू थे. लेकिन वर्ष 2007 में हिंदुओं की आबादी घटकर 28 प्रतिशत हो गई. यानी 31 वर्षों में फिज़ी में हिंदुओं की आबादी घटकर 31 प्रतिशत हो गई.
देश में ये आम धारणा है कि भारत में हिंदू बहुसंख्यक हैं और बाकी धर्म अल्पसंख्यक हैं . लेकिन ये पूरी तरह सच नहीं है . देश में 7 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में हिंदुओँ की आबादी 50 प्रतिशत से भी कम हो चुकी है .
2011 की जनगणना के मुताबिक लक्षद्वीप में सिर्फ 2.7 प्रतिशत हिंदू हैं .
मिज़ोरम में 2.75 प्रतिशत हिंदू हैं .
नागालैंड में कुल आबादी में केवल 8.75 प्रतिशत हिंदू हैं .
वहीं, मेघालय में 11.53 प्रतिशत हिंदू हैं .
जबकि, जम्मू और कश्मीर की आबादी में 28.44 प्रतिशत हिस्सा ही हिंदुओं का है.
वहीं, अरुणाचल प्रदेश में केवल 29 प्रतिशत हिंदू हैं .
तो, मणिपुर में कुल जनसंख्या का 31.39 प्रतिशत हिंदू हैं .
और पंजाब की आबादी में 39.4 प्रतिशत हिंदू हैं .
लेकिन इनमें से किसी भी राज्य में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं मिला है.
इसी महीने, अखिल भारतीय संत समिति ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखकर हर राज्य में संप्रदायक के आधार अल्पसंख्यकों की पहचान करने की मांग की थी .
वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्ज़ा दिलाने के लिए एक याचिका दायर की गई थी .
याचिका में मांग की गई थी कि अल्पसंख्यक आयोग और सरकार उन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करे, जहां पर हिंदुओँ की आबादी कम है . सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि वो इसके लिए सरकार से मांग करें . लेकिन सरकार ने इस पर कोई Action नहीं लिया.
11 फरवरी 2019 को इस मामले में एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई . सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि वो 90 दिन के अंदर अल्पसंख्यक की परिभाषा तय करे. और साथ ही वो मापदंड निर्धारित किए जाएं जिससे अल्पसंख्यकों की पहचान की जा सके.
10 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश के भी 90 दिन पूरे हो गए. लेकिन अब तक ना तो अल्पसंख्यक की परिभाषा निर्धारित हुई और ना ही इसके लिए कोई पैमाना तय हुआ.
हमारे देश में अल्पसंख्यकों के लिए अलग मंत्रालय है. इस मंत्रालय का काम अल्पसंख्यक समुदायों की भलाई की योजनाएं बनाना और उन्हें लागू करना है. इस मंत्रालय का काम गरीब अल्पसंख्यक छात्रों की पढ़ाई को बढ़ावा देना होता है. इसके लिए उनको Scholarship भी दी जाती है.
लेकिन हमारे देश में अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने वाले समुदायों को जो सबसे बड़ी चीज़ मिलती है... वो है सहानुभूति.
अल्पसंख्यक होने पर सहानुभूति का भाव... बहुत बड़ा लाइसेंस हैं . स्कूल, कॉलेज, समाज... हर तरह की संस्थाओं में अल्पसंख्यकों को विशेष महत्व दिया जाता है .
पुलिस थानों में अल्पसंख्यकों की विशेष सुनवाई होती है . पुलिस के बड़े-बड़े अधिकारों के हाथ कांप जाते हैं जब वो ये जानते हैं कि कि ये मामला Minority Community का है .
राजनीति में अल्पसंख्यकों का महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि नेता उनको वोट बैंक की तरह महत्व देते हैं.
भारत में अल्पसंख्यक का दर्जा किसी VIP Status से कम नहीं है.
भारत को दुनिया ने विश्व गुरु कहा . यहां एक से एक बड़े विद्वान हुए . लेकिन हमारे देश के विचारकों ने कभी अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक शब्द या विचार का निर्माण नहीं किया . क्योंकि हिंदू धर्म बहुत सहनशील है . हिंदू धर्म का मूल विचार ये है कि ईश्वर को प्राप्त करने के सबके अलग-अलग तरीके हो सकते हैं . यही वजह है कि हिंदू धर्म ने कभी किसी और धर्म का विरोध नहीं किया . उसने दूसरे धर्मों को भी ईश्वर तक पहुंचने का एक माध्यम माना .
लेकिन, दुनिया के दूसरे देशों में इतनी सहनशीलता कभी नहीं रही .
एशिया और यूरोप के देशों का इतिहास धर्म के नाम पर खून-खऱाबे से भरा हुआ है .
20वीं शताब्दी की शुरूआत में पूरे यूरोप और एशिया में अल्पसंख्यकों के खिलाफ बहुत ज्यादा हिंसा हुई . खास तौर पर यहूदियों को निशाना बनाया गया . यहूदियों की संख्या कम होने की वजह से वो अपनी रक्षा भी नहीं कर सके .
Turkey में पहले विश्व युद्ध के दौरान आर्मेनियन नस्ल के लाखों लोगों का नरसंहार किया गया . उन पर Russia के साथ मिले होने का आरोप लगा था. इस नरसंहार का आरोप Ottoman Empire पर है .
दूसरे विश्व युद्ध के पहले और युद्ध के दौरान जर्मनी के तानाशाह Adolf Hitler ने बहुत बड़ी संख्या में यहूदियों का नरसंहार किया .
यही वजह है कि 1945 में संय़ुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद पूरी दुनिया में अल्पसंख्यकों की रक्षा का एक भाव पैदा हुआ .
लेकिन विश्व स्तर पर अल्पसंख्यक की कोई परिभाषा तय नहीं हो पाई .
1992 में सहमति के साथ United Nations Minorities Declaration स्वीकार किया गया .
इसके पहले Article के मुताबिक नस्ल, भाषा, संस्कृति और पहचान के आधार पर संख्या में कम लोगों की सुरक्षा की जानी चाहिए . इसे दुनिया में एक अंतरराष्ट्रीय कानून के तौर पर मान्यता प्राप्त है .
भारत के संविधान के Article 29 और 30 में अल्पसंख्यकों को विशेष संरक्षण का ज़िक्र है .
Article 29 के मुताबिक जिन लोगों की अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उनको इसे बनाए रखने का अधिकार है .
सरकार की मदद से चलने वाली किसी शिक्षण संस्था में धर्म, वंश, जाति या भाषा के आधार पर किसी को वंचित नहीं किया जाएगा .
Article 30 के मुताबिक धर्म या भाषा के आधार पर अल्पसंख्यक लोगों को अपनी रुचि के हिसाब से शिक्षा संस्थान चलाने का अधिकार है .
लेकिन, भारत के संविधान में अल्पसंख्यक की कोई परिभाषा नहीं दी गई है.
भारत में संस्कृति, खान-पान और संबंधों के आधार पर देखा जाए तो हिंदू और मुसलमानों के बीच हमेशा एक दूरी रही. लेकिन दोनों समुदाय सदियों से एक दूसरे के साथ रहे हैं .
1857 में अंग्रेज़ों के खिलाफ एक बड़ा विद्रोह हुआ . इस विद्रोह का नेतृत्व हिंदू और मुसलमान दोनों ही समुदायों ने किया . हिंदू और मुसलमान दोनों अंग्रेजों से लड़े.
उस वक्त अंग्रेज़ों की सेना में मौजूद हिंदू सिपाहियों ने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को अपना नेता माना था .
1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच भेदभाव पैदा करने वाली नीतियां बनाईं . और इस तरह की राजनीति करने वाले लोगों को प्रोत्साहित किया .
वर्ष 1906 में ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना की गई थी. मुस्लिम लीग ने मुसलमानों को अल्पसंख्यक होने के आधार पर नौकरियों में आरक्षण की मांग की .
बाद में मुसलमानों को अलग निर्वाचन क्षेत्र का अधिकार भी मिल गया . यानी मुसललानों के लिए सीटें भी आरक्षित कर दी गईं .
उस वक्त की राजनीति में अल्पसंख्यक जैसा कोई शब्द चर्चा में नहीं था. लेकिन मुस्लिम लीग की नींव में अल्पसंख्यक-वाद की राजनीति भी है.
आज़ादी के बाद भी देश में अल्पसंख्यक-वाद की राजनीति जारी रही .
हिंदुओँ की आबादी घटने की प्रमुख वजह... अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में लगातार हिंदुओँ का दमन है. और ये सिलसिला एक हजार वर्षों से जारी है.
अगर हम भारत के इतिहास पर गौर करें तो पहले भारत की सीमाएं अफगानिस्तान के पार जाती थीं. ईरान भी हमारा पड़ोसी देश ही था. वर्ष 980 में यानी आज से करीब एक हज़ार वर्ष पहले अफगानिस्तान पर राजा जयपाल का शासन था. वो एक हिंदू राजा थे. लेकिन मुस्लिम शासकों ने उन पर हमला करके, उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया था. और इसके बाद धीरे-धीरे अफगानिस्तान, भारत के नक्शे से बाहर चला गया. आज अफगानिस्तान में गिने-चुने हिंदू और सिख बचे हैं.
1947 में भारत के बंटवारे के बाद पाकिस्तान में भी बहुत बड़े पैमाने पर हिंदुओँ का दमन हुआ .
1947 में पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी 15 फीसदी थी. लेकिन आज वहां की कुल आबादी में केवल डेढ़ प्रतिशत हिंदू ही बचे हैं.
वर्ष 1947 में पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में 22 फीसदी आबादी हिंदुओं की थी. जो वर्ष 2015 में घटकर सिर्फ़ 10.5 फीसदी रह गई.
जबकि भारत में, मुसलमानों की संख्या बढ़ रही है. आजादी के बाद 1951 में मुसलमानों की आबादी करीब 10 प्रतिशत थी. और 2011 की जनसंख्या के मुताबिक़ मुसलमानों की आबादी करीब 14 प्रतिशत है.
आज़ादी के बाद 1951 में भारत में साढ़े 3 करोड़ मुसलमान थे. जो 2011 तक 17 करोड़ से ज़्यादा हो चुके थे. और अनुमान ये है कि 2050 तक भारत में मुसलमानों की संख्या 31 करोड़ से ज्यादा होगी.