आज DNA में हम सबसे पहले उस अमूल्य तोहफे का विश्लेषण करेंगे जिस पर आपका और हमारा जीवन निर्भर है. ये तोहफा भगवान ने हम सबको दिया है. इससे हमारा साथ हमारी मृत्यु के समय ही छूटता है. यानी ये प्रक्रिया हमारे जन्म के साथ ही शुरु हो जाती है और हमारे जीवन के अंत तक चलती रहती है . हम सांसों की बात कर रहे हैं . ये सांसें दुनिया के 750 करोड़ लोगों को बिना किसी भेदभाव के मिली हैं. आप चाहे नई दिल्ली में रहते हों या फिर न्यूयॉर्क में... आप से कोई भी सांस लेने का अधिकार नहीं छीन सकता . लेकिन अगर हम कहें कि ऐसा नहीं है और ये अधिकार आपसे छीना जा रहा है तो आप शायद यकीन नहीं करेंगे .


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इसलिए आज हम World Lung Day के मौके पर आपके फेफड़ों की सेहत का एक विश्लेषण करेंगे . दिल्ली से लेकर अमेरिका के New york तक जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण को लेकर बड़ी बड़ी बातें हो रही हैं . New York में तो Climate Change Summit में इन चुनौतियों से लड़ने को लेकर बड़े बड़े वादे भी किए गए हैं. जबकि दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर का ताज पहनने को बेकरार है. और पूरा भारत वायु प्रदूषण के मामले में विश्व विजेता बनने की तरफ आगे बढ़ रहा है और ये स्थिति बिल्कुल भी अच्छी नहीं है . क्योंकि प्रतियोगिताएं हम हार जाएं, तो ही अच्छा है .


इसलिए हमने आज ये विश्लेषण New Delhi और न्यू यॉर्क दोनों शहरों से किया है. आज हम आपको बताएंगे कि न्यूयॉर्क में रहने वाले एक व्यक्ति के फेफड़ों और दिल्ली में रहने वाले एक व्यक्ति के फेफड़ों की सेहत में क्या फर्क है . भारत में रहने वाले हर 10 में से 6 फेफड़े के मरीजों को ये बीमारी प्रदूषण की वजह से होती है. जबकि अमेरिका में 10 में से सिर्फ एक ही फेफड़े के मरीज को बीमारी प्रदूषण से मिलती है .


भारत में प्रदूषण की वजह से हर साल करीब 12 लाख लोगों की मौत होती है . जबकि अमेरिका में ये आंकड़ा 1 लाख मौतों का है . दिल्ली और न्यूयॉर्क की तुलना करें तो दिल्ली में हर साल प्रदूषण की वजह से 10 हज़ार से 30 हज़ार लोगों की मौत होती हो जाती है . जबकि न्यू यॉर्क में हर साल करीब 3 हज़ार लोग वायु प्रदूषण की वजह से मारे जाते हैं .


यानी प्रदूषण दुनिया के हर कोने में लोगों की जान ले रहा है . लेकिन दिल्ली के मुकाबले New York वायु प्रदूषण के खिलाफ ये लड़ाई ज्यादा प्रतिबद्धता के साथ लड़ रहा है . आपको जानकर हैरानी होगी कि 1970 के दशक में New York में वायु प्रदूषण की स्थिति बहुत खराब थी . वहां सांस लेना एक दिन में 10 सिगरेट पीने के बराबर था .


जबकि दिल्ली में आज भी ये 18 से 20 सिगरेट पीने के बराबर है . 1970 के बाद New York में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कड़े नियम कायदे लागू किए गए . इसके लिए अमेरिका में Environmental Protection Agency की स्थापना की गई . जिसने प्रदूषण के खिलाफ सख्त नियम और कानून बनाए . और उनका सख्ती से पालन कराया गया . आज New York में चलने वाले वाहन 1960 के दशक के मुकाबले 99 प्रतिशत तक कम प्रदूषण फैलाते हैं . वाहनों के धुएं में शामिल खतरनाक Sulfur की मात्रा में भी 90 प्रतिशत की कमी आई है .


अब आपको New York की दो तस्वीरें दिखाते हैं. पहली तस्वीर 1973 की है. जब New York भी दिल्ली की तरह प्रदूषण, धूल और धुएं से ढका रहता था . जबकि दूसरी तस्वीर वर्ष 2013 की है. जिसमें आप साफ साफ देख सकते हैं कि New York ने प्रदूषण के खिलाफ युद्ध को कैसे 4 दशकों में जीत लिया .


अब आप को दिल्ली की भी ऐसी ही दो तस्वीरें दिखाते हैं. पहली तस्वीर 1973 की है. और दूसरी तस्वीर वर्ष 2018 की है. इन तस्वीरों को देखकर आप समझ सकते हैं कि 1973 में दिल्ली की हालत आज के New York जैसी हुआ करती थी . जबकि आज की दिल्ली प्रदूषण के मामले में 1973 के New York जैसी हो चुकी है .


हमारे देश में जानलेवा प्रदूषण के बारे में कोई बात नहीं करता, संसद में इस पर बहस नहीं होती, कोई इसे लेकर Open Letter नहीं लिखता, Television Studios की डिबेट से भी ये मुद्दा गायब रहता है . पिछले महीने DNA में हमने आपको दिल्ली की एक 28 साल की लड़की की कहानी दिखाई थी जो Lung Cancer का शिकार हो गई है .


जब ये लड़की डॉक्टर के पास गई तो पता लगा कि वो सिगरेट नहीं पीती, उसके परिवार में भी कोई धूम्रपान नहीं करता, फिर भी उसे कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो गई है . लड़की का इलाज करने वाले डॉक्टर का कहना है कि ये वायु प्रदूषण की वजह से हुआ है . ये बहुत डराने वाली स्थिति हैं. क्योंकि अगर आप धूम्रपान नहीं करते हैं, तंबाकू नहीं चबाते हैं और अपनी सेहत का पूरी तरह ख्याल रखते हैं, तो भी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि आपको कैंसर नहीं होगा . हम ऐसा क्यों कह रहे हैं इसको साबित करने के लिए मैं आपको एक उदाहरण देना चाहता हूं .


प्रदूषण पर निगाह रखने वाली एक संस्था Berkeley earth के मुताबिक अगर हवा में PM 2.5 कणों की मात्रा सिर्फ 22 भी है.. तो ऐसी हवा में सांस लेना एक सिगरेट पीने के बराबर है . पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के मुताबिक आज दिल्ली की हवा में PM 2.5 कणों की औसत मात्रा 52 है . दिल्ली के नज़रिए से देखा जाए तो आज हवा में प्रदूषण की मात्रा बहुत कम है . लेकिन Berkeley-Earth के मुताबिक ये भी करीब 3 सिगरेट पीने के बराबर है . यानी दिल्ली में हर वक्त हर कोई.. ना चाहकर भी धूम्रपान कर रहा है . भयंकर प्रदूषण वाले दिनों में दिल्ली का Air Quality Index 400 तक भी पहुंच जाता है .


इस हवा में सांस लेना हर रोज़ 18 से 20 सिगरेट पीने के बराबर है . यानी दिल्ली में पैदा होने वाला हर बच्चा, जन्म के साथ ही प्रतिदिन 15 से 20 सिगरेट पीना शुरू कर देता है . ये हाल सिर्फ दिल्ली का नहीं बल्कि देश के तमाम शहरों का है . जहां हर व्यक्ति, हर रोज एक पैकेट सिगरेट पीने को मजबूर है .


घर के बाहर का वायु प्रदूषण लोगों की जान ले रहा है. लेकिन घर के अंदर भी हालात अच्छे नहीं है. पिछले एक वर्ष में दिल्ली-NCR के 400 घरों पर एक रिसर्च किया गया . रिसर्च के दौरान इन घरों में Carbon Dioxide की मात्रा तय मात्रा से 6 गुना ज्यादा पाई गई . इसी तरह TVOC यानी Total Volatile Organic Compunds की मात्रा 5 गुना ज्यादा पाई गई .


ये Indoor Pollution आपके किचन से निकलने वाले धुएं, Perfumes, Deodorant, मच्छर भगाने वाली मशीनों और यहां तक कि Room Freshner से भी होता है .यानी घर के बाहर ही नहीं बल्कि घर के अंदर भी आप प्रदूषण का शिकार हो रहे हैं .ये स्थिति बहुत डरावनी है .