आज का DNA हम आपको शाहीन बाग़ से दिखाएंगे. हम गणतंत्र दिवस के 24 के घंटे बाद...शाहीन बाग़ ये पता लगाने गए थे कि भारतीय गणराज्य का कानून और संविधान शाहीन बाग में भी चलते हैं या फिर शाहीन बाग दिल्ली का कश्मीर बन चुका है और क्या कश्मीर की जगह अब यहां धारा 370 लागू हो गई है?. आपको जानकर दुख होगा कि आज जब हम वहां पर गए तो हमें लगा कि हम किसी दूसरे देश में आ गए हैं. थोड़ी देर के लिए तो हमें ऐसा भी लगा कि जैसे कश्मीर के सारे भारत विरोधी शाहीन बाग में आ गए हैं. फर्क सिर्फ इतना था कि प्रदर्शनकारियों ने अपनी रणनीति बदलकर..तिरंगा फहराना शुरू कर दिया और राष्ट्रगान गाना शुरू कर दिया. ये लोग हाथों में संविधान की क़ॉपी लेकर खड़े थे. हैरानी की बात ये है कि जो लोग कुछ महीनों पहले तक राष्ट्रगान पर खड़े नहीं होना चाहते थे, भारत माता की जय कहने से इनकार करते थे, संविधान जिनके लिए मायने नहीं रखता था और जो एक देश में दो निशान दो विधान के सपने देखा करते थे..उन लोगों ने अपने फायदे के लिए इन राष्ट्र के सम्मान से जुड़ी इन चीज़ों का भी राजनीतिकरण कर दिया है. असहनशीलता और अभिव्यक्ति की आज़ादी को कैसे दबाया जाता है..ये आज हमने शाहीन बाग़ में देखा...


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बहुत बार टाई और सूट पहनकर पहनकर स्टूडियो में बैठकर कुछ भी कह देना बहुत आसान होता है..लेकिन ग्राउंड ज़ीरो की जो असलियत होती है वो बहुत अलग होती है और ये असलियत देश के बड़े-बड़े पत्रकारों को दिखाई नहीं देती. इसलिए आज का DNA हमने आपको शाहीन बाग़ से दिखाने का फैसला किया है .


शाहीन बाग़ के हालात सिर्फ धारा 370 वाले ही नहीं है..बल्कि इसे टुकड़े टुकड़े गैंग का मुख्यालय बना दिया गया है और यहां उन सभी संगठनों के पते हैं...जिनका नाम आज एक खुफिया रिपोर्ट में आया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक नया नागरिकता कानून आने के बाद से... Popular Front Of India यानी PFI नाम के एक संगठन की तरफ से देश के कई लोगों को Funding की गई...जैसे जैसे देश में नए कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन तेज़ होते रहे..वैसे वैसे ये फंडिंग भी बढ़ती रही . रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक महीने में विरोध प्रदर्शनों को भड़काने और हिंसा कराने के लिए 120 करोड़ रुपये इकट्ठा किए गए. आज हमने शाहीन बाग़ जाकर इसकी भी तफ्तीश की और पता लगाने की कोशिश की कि इन पैसों और विरोध प्रदर्शनों का क्या संबंध हैं. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि अगर पुलिस या कोई जांच एजेंसी शाहीन बाग़ जाकर...इन आरोपों की जांच भी करना चाहें तो क्या वो कर सकती है?..इसका जवाब है नहीं..क्योंकि फिलहाल तो शाहीन बाग पर जाकर देश की सीमाएं खत्म हो जाती है. इसलिए आज हम आपको शाहीन बाग़ से जुड़ी हर असलियत दिखाएंगे.


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शाहीन बाग जाकर हमें ये बात साफ समझ आ रही थी कि इन प्रदर्शनकारियों का Brain Wash कर दिया गया है. इसलिए ये हमारी बातों पर यकीन नहीं कर रहे थे. कुछ प्रदर्शनकारियों ने हमें कहा कि हम उनकी बात अपने चैनल पर नहीं दिखाते और इन लोगों की बातों को काट दिया जाता है. इसलिए आज हम आपके सामने शाहीन बाग का आंखों देखा हाल लेकर आए हैं. और हमने इस दौरान कही गई किसी भी प्रदर्शनकारी की बातों को नहीं काटा है. लेकिन हमें ये बात समझ आने लगी थी कि शाहीन बाग़ में सच बोलना मना है और यहां सिर्फ उसी लोगों की बातों पर ताली बजती है.


जो देश को तोड़ने के सपने देखते है. शाहीन बाग़ में जो कुछ हो रहा है. वो लोकतंत्र के नाम पर एक दाग़ जैसा है. हम प्रदर्शन स्थल तक जाने का जोखिम उठाने को तैयार थे. य़े बात जानते हुए भी कि इस जगह पर हमारे साथ कुछ भी हो सकता है. हमें मारा जा सकता है. हमारी Mob Lynching भी हो सकती है. या फिर हमारे साथियों को बंधक बनाया जा सकता है.


इन सबके बावजूद हम विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों से बार-बार ये गुज़ारिश कर रहे थे कि वो हमें अंदर जाने दें. ताकि संवाद की स्थिति पैदा हो सके. लेकिन लोकतंत्र में संवाद की अहमियत वही समझ सकता है. जो वाकई संविधान में दी गई अभिव्यक्ति की आज़ादी का सम्मान करता हो, जो वाकई सहनशील हो, लेकिन जो असहनशीलता हमें शाहीन बाग़ में दिखाई दी. उसने हमारे सारे भरोसे को तोड़ दिया.


हमें ऐहसास हुआ कि जितना मुश्किल शाहीन बाग़ में जाकर रिपोर्टिंग करना है. उतना मुश्किल तो सीरिया में जाकर रिपोर्टिंग करना भी नहीं था. कुछ वर्ष पहले जब सीरिया की सेनाएं ISIS के आतंकवादियों के खिलाफ लड़ रही थी और जब वहां के एक बड़े इलाके पर ISIS का कब्ज़ा था. तब भी हम वहां जाकर रिपोर्टिंग कर पाए.


जबकि आज दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की राजधानी दिल्ली के एक ख़ास इलाके में जाकर रिपोर्टिंग करना असंभव हो चुका है. हम कैसे तमाम पाबंदियों और आतंकवादियों की धमकियों के बीच भी सीरिया में रिपोर्टिंग कर पाए थे. सीरिया में ISIS के आतंकवादियों के इलाके में जाकर हम रिपोर्टिंग कर पाए. लेकिन अपने ही देश के एक इलाके से हमें वापस आना पड़ा.


इसलिए अब आप देखिए कि कैसे राष्ट्रगान का सहारा लेकर और महिलाओं को आगे करके शाहीन बाग़ को बहुत सोची समझी साजिश के तहत देश के बाकी हिस्सों से अलग किया जा रहा है. और जो भी शाहीन बाग़ जाकर उसे वापस देश में मिलाने की कोशिश करता है यानी शाहीन बाग़ को Reclaim करना चाहता है. उसे यहां के लोग बिल्कुल पसंद नहीं करते.