कारगिलः ज़ी न्यूज़ ने समय समय पर हमेशा कारगिल युद्ध से जुड़ी बातों का विश्लेषण किया है. और इस बार भी हमारी टीम ने साल 1999 के करगिल युद्ध के वक्त की एक जगह से एक ऐसी ही ग्राउंड रिपोर्टिंग की है. लेकिन इस बार आपको कुछ नया और दिलचस्प देखने को मिलेगा. आज हम आपको द्रास सेक्टर में प्वाइंट 4355 पर लेकर चलेंगे. यह वो इलाका है जहां से ऊपर की दिशा में बत्रा टॉप दिखाई देता है. बत्रा टॉप को पहले प्वाइंट 4875 कहा जाता था. जो क़रीब 15 हज़ार फीट की ऊंचाई पर मौजूद है. और कैप्टन विक्रम बत्रा उसी प्वाइंट पर दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हुए थे.


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लेकिन हमारा विश्लेषण प्वाइंट 4355 पर आधारित है. क्योंकि यह पहली बार खोजा गया है और पिछले 20 साल में ऐसा पहली बार हुआ जब किसी न्यूज चैनल क्रू का कैमरा इस प्वाइंट तक पहुंचा है.आपको बता दें कि द्रास सेक्टर की यही वो जगह है, एक माउंटेन टॉप है. जहां मिले हथियारों और कारतूस के आधार पर कहा जा रहा है कि 20 साल पहले प्वाइंट 4355 पर पाकिस्तानी सैनिकों ने अपना पोस्ट बना रखा था. और वो ऊपर बैठकर भारतीय सैनिकों पर हमला किया करते थे. 



पत्थरों से बने पोस्ट देखकर अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि 20 साल पहले इस पोस्ट में कम से कम 30 पाकिस्तानी सैनिक मौजूद थे और 1999 में जब भारतीय सैनिक ऊपर की दिशा में आगे बढ़ रहे थे. तो जान बचाने के लिए सभी पाकिस्तानी सैनिक वहां से भाग खड़े हुए, लेकिन भागते भागते वो अपने साथ लाए असला, बारूद, कारतूस, रॉकेट लांचर और अपने साथ लाए खाने पीने का सामान छोड़कर भाग खड़े हुए थे.भारतीय फौज से डर कर वो किस तारीख को ये माउनटेन प्वाइंट छोड़कर भागे होंगे, ये नहीं कहा जा सकता. लेकिन दावा किया जा रहा है कि उनमें से कोई भी जीवित नहीं बचा होगा. 



आज आप ज़ी न्यूज के कैमरे से उसी प्वाइंट 4355 देखिए जो भारतीय सेना के फौलादी हौसले और हिम्मत की गवाह बनी और साथ ही गवाह बनी पाकिस्तानी फौज की बुजदीली और नाकामयाबी की भी. ये रिपोर्ट पढते हुए आप ये समझने की कोशिश कीजिए कि कारगिल युद्ध में विजय पाने के लिए हमारे सैनिकों को किन मुश्किल परिस्थितियों का सामना करना पड़ा होगा. 20 साल एक लम्बा वक्त होता है. इन 20 वर्षों में कई सारी चीज़ें ऐसी होती हैं जो समय के साथ-साथ धुमिल होती चली जाती हैं...लेकिन कारगिल युद्ध के निशान 20 साल पहले भी ज़िन्दा थे और आज भी बिल्कुल वैसे ही हैं.



ज़ी न्यूज़ ने समय-समय पर कारगिल युद्ध से जुड़ी रिपोर्टिंग की हैं...टाइगल हिल से लेकर हर वो हिस्सा...जहां पाकिस्तानी घुसपैठियों और सैनिकों ने 20 साल पहले भारत में घुसपैठ की जुर्रत की थी. लेकिन एक जगह ऐसी है जहां आज तक कोई नहीं पहुंच पाया और वो है प्वाइंट 4355.



ज़ी न्यूज़ की टीम आज आपको 20 साल पहले लड़े गए सबसे मुश्किल युद्ध के बेहद पास लेकर चलेगी. यहां तक पहुंचने का रास्ता देखने में जितना खूबसूरत है उतना ही ख़तरनाक भी है. दरअसल फौज के कुछ अधिकारी इस जगह पर पहाड़ी के नीचे से लेकर ऊपर के प्वाइंट तक कई जगहों पर कई अनएक्सप्लोर्ड लैंडमाइंस (Unexplored LandMines) आज भी होने की बात बताते हैं. उनके मुताबिक पाकिस्तानियों ने 1999 में भागने से पहले भारतीय सेना को अपने पास आने से रोकने के लिए इस पूरी पहाड़ी पर लैंडमाइन्स बिछा दी थी. जिनमें से कुछ तो डिटेक्ट हो पाए और फिर उनको निष्क्रिय करके ऊपर तक जाने के लिए एक पूरा ट्रैक सैनिटाइज करके बनाया गया.


पत्थरों के निशान के जरिए पहचान के आधार पर फौज उसी रास्ते आज भी ऊपर तक जाती है, लेकिन इस पहाड़ के बाकी हिस्सों में अब भी पड़ी कई अनएक्सप्लोर्ड लैंडमाइंस की वजह से इसे पहचानने वाले रास्ते से एक कदम भी इधर उधर जाना हमारे लिए खतरनाक हो सकता है.


20 साल पहले इन इलाकों में कैसे हालात रहे होंगे इसका अंदाज़ा आज भी लगाया जा सकता है. क्योंकि, उस युद्ध के दौरान इस्तेमाल हुए हथियार...हैंड ग्रेनेड्स्, गोला बारुद..आज भी बिखरे पड़े हैं. कई घंटों पैदल चलने के बाद आखिरकार हम उस जगह पर पहुंच गए जो साढ़े 14 हज़ार फीट की ऊंचाई पर मौजूद है. यानी प्वाइंट 4355. जहां 20 साल पहले पाकिस्तानी घुसपैठियों और सैनिकों ने अपना कब्ज़ा जमा रखा था और ऊपर से भारतीय सेना पर गोलीबारी कर रहे थे.



प्वाइंट 4355 से ठीक ऊपर है बत्रा टॉप, यानी वो इलाका जहां पाकिस्तानी सैनिकों से युद्ध लड़ते हुए कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपनी शहादत दी थी और मरणोपरांत उन्हें सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. कारगिल की लड़ाई के बीस साल पूरे हो गए हैं  और हमारे सैनिकों के अदम्य साहस, उनके फौलादी हौसले को, उनकी वीरगाथा को याद करते हुए पूरा देश कारगिल युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को अपनो श्रद्धांजलि दे रहा है.