PM मोदी को हराने के लिए क्या कर्नाटक से विपक्ष को मिल गया ब्रह्मास्त्र?
अभी तक 2019 के चुनावों में भी पीएम मोदी के नेतृत्व में लगातार बीजेपी की सत्ता में वापसी के कयास लगा रहे राजनीतिक विश्लेषक कर्नाटक की इस सियासी घटना को आने वाले वक्त में बीजेपी के लिए राष्ट्रीय फलक पर बड़ी सियासी चुनौती के रूप में देख रहे हैं.
कर्नाटक में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद आखिरकार सरकार बनाने की रेस में कामयाब नहीं हुई. तीसरे नंबर पर रहने वाली क्षेत्रीय पार्टी जेडीएस, राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सरकार की अगुआई करने जा रही है. अभी तक 2019 के चुनावों में भी पीएम मोदी के नेतृत्व में लगातार बीजेपी की सत्ता में वापसी के कयास लगा रहे राजनीतिक विश्लेषक कर्नाटक की इस सियासी घटना को आने वाले वक्त में बीजेपी के लिए राष्ट्रीय फलक पर बड़ी सियासी चुनौती के रूप में देख रहे हैं.
1. यदि विभाजित विपक्ष एकजुट हो जाए तो बीजेपी को हराया जा सकता है. कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस के मत प्रतिशत को यदि जोड़ दिया तो यह तकरीबन 56 प्रतिशत होता है. इसके बरक्स बीजेपी को तकरीबन 37 प्रतिशत वोट मिले हैं. एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक यदि ये दोनों दल 2019 में साथ मिलकर चुनाव लड़े तो कर्नाटक की 28 लोकसभा में से बीजेपी केवल छह सीटें ही जीत पाएगी. 2014 में बीजेपी ने यहां से 17 सीटें जीती थीं.
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2. हालिया दौर में यह एक बड़ी सियासी घटना है कि राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस, क्षेत्रीय पार्टी के रूप में जेडीएस को राज्य में नेतृत्व का मौका दे रही है. ये एक साधारण घटना नहीं है क्योंकि स्थानीय स्तर पर आमतौर पर यह देखने को मिलता है कि बड़ा दल, बड़े भाई की भूमिका में ही रहने का ख्वाहिशमंद होता है. कांग्रेस ने कर्नाटक प्रयोग के जरिये ये संकेत देने की कोशिश की है कि जिस राज्य में जो क्षेत्रीय दल जिस स्थिति में बीजेपी को रोकने का सामर्थ्य रखेगा, कांग्रेस उसी के हिसाब से अपनी रणनीति तय करेगी.
3. 2015 के बिहार चुनाव में राजद-जदयू महागठबंधन, उसके बाद हाल में गोरखपुर और फूलपुर में सपा-बसपा तालमेल की जीत एवं अब कर्नाटक का गठबंधन का प्रयोग बताता है कि भले ही देश में बीजेपी केंद्र के साथ सबसे अधिक राज्यों में सत्ता में हो लेकिन यदि विभाजित विपक्ष एक साथ मिल जाएं तो बीजेपी को हरा सकते हैं.
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4. कांग्रेस समेत समूचा विपक्ष समझता है कि वह अकेले दम पर बीजेपी को हराने की स्थिति में नहीं हैं लेकिन यदि मिलकर लड़ें तो बीजेपी का रथ रोक सकते हैं. संभवतया इसलिए जब 21 मई को एचडी कुमारस्वामी बुधवार को होने वाले अपने शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को निमंत्रण देने आएं तो उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया. सिर्फ इतना ही नहीं ममता बनर्जी, एन चंद्रबाबू नायडू, के चंद्रशेखर राव जैसे कई क्षेत्रीय क्षत्रप इसमें शिरकत करेंगे. संकेत साफ हैं कि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियां 2019 में बीजेपी और पीएम मोदी को घेरने के लिए एकजुट होने की राह तलाश रही हैं.
5. इन्हीं परिस्थितियों में क्षेत्रीय नेताओं ने कांग्रेस से लचीला रुख अपनाने को कहा है. राज्य में गठजोड़ का नेतृत्व करने के लिए जेडीएस को समर्थन देने के कांग्रेस के फैसले की कई नेताओं ने सराहना की. राकांपा प्रमुख शरद पवार ने कांग्रेस की भूमिका को सूझ बूझ भरा बताया. शरद पवार ने बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को बधाई दी जबकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उन नेताओं में प्रथम थी, जिन्होंने इस घटनाक्रम को क्षेत्रीय मोर्चे की जीत बताया और अपने संदेश में राहुल का जिक्र नहीं किया.
तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता ने कहा था, ''लोकतंत्र की जीत हुई. बधाई हो कर्नाटक. देवगौड़ा जी, कुमारस्वामी जी, कांग्रेस और अन्य को बधाई. क्षेत्रीय मोर्चे की जीत हुई.'' इसका मतलब साफ है कि कुछ क्षेत्रीय नेता विपक्ष का एक बड़ा मोर्चा बनाने में कांग्रेस को नेतृत्व करने की इजाजत नहीं देंगे. विपक्ष के एक नेता को लगता है कि बीजेपी और आरएसएस को बाहर रखने के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले एक महागठबंधन बनाने में कांग्रेस को कहीं अधिक अहम भूमिका निभाने की जरूरत है. वहीं, भाकपा के वरिष्ठ नेता डी राजा ने कहा कि मोर्चे का नेतृत्व कौन करेगा, इसका विकल्प खुला रखना चाहिए. राहुल ने कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बता कर कुछ विपक्षी नेताओं को असहज स्थिति में डाल दिया. हालांकि, राजा ने कहा कि प्रधानमंत्री कौन बनेगा, इस विषय पर अंत में चर्चा की जानी चाहिए. पूरा जोर बीजेपी को शिकस्त देने पर होना चाहिए.