नई दिल्ली: अगर कोई यह समझ रहा है कि महज ढाई दिन में कर्नाटक के मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने वाले 75 साल के बीएस येदियुरप्पा अब राजनीति के बियाबान में चले जाएंगे, तो उसे एक बारगी पीछे मुड़कर देखना चाहिए. तब समझ में आएगा कि कर्नाटक की राजनीति में बीजेपी का झंडा गाड़ने वाले येदियुरप्पा राजनीति के कितने पक्के खिलाड़ी हैं. इससे पहले 2007 नवंबर में भी वे इसी तरह का गच्चा खा चुके हैं. उस समय वे महज सात दिन के लिए कर्नाटक के सीएम बने थे. कोई और होता तो इस हार के बाद मायूस हो जाता. लेकिन ठीक सात महीने बाद मई 2008 में वे बीजेपी की पूर्ण बहुमत सरकार बनाकर दुबारा कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने.


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एक संयोग यह भी रहा था कि उन्हें उस समय भी सात दिन बाद कुर्सी जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी के कारण ही छोड़नी पड़ी थी और इस बार भी कुमारन्ना उनके लिए राहु बनकर उभरे. उस समय येदियुरप्पा के कुर्सी छोड़ने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया था और इस तरह सात दिन सीएम रहने के बाद दुबारा भी खुद येदियुरप्पा ही सीएम बने, बीच में कोई नहीं आया.


जब दूसरी बार वे मुख्यमंत्री बने तो भ्रष्टाचार के आरोप के कारण तीन साल बाद उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी. उनके दुर्दिन यहीं नही रुके, उन्हें बीजेपी भी छोड़नी पड़ गई. उसके बाद उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाई. उनकी पार्टी के अलग चुनाव लड़ने के कारण ही 2013 विधानसभा चुनाव में बीजेपी बुरी तरह हारी. उस दौर में यह लगने लगा था कि येदियुरप्पा का कैरियर खत्म होने वाला है. लेकिन जल्द ही उन्होंने न सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भरोसा हासिल किया, बल्कि 2018 के कर्नाटक चुनाव की कमान भी अपने हाथ में ली. इस चुनाव में उनकी पार्टी को पूर्ण बहुमत भले न मिल सका हो लेकिन पार्टी 104 सीट तक पहुंची. यहां एक बार फिर सात के आंकड़े ने उन्हें दर्द दिया क्योंकि पार्टी बहुमत के आंकड़े 111 से महज 7 सीट दूर रह गई.


यह येदियुरप्पा ही हैं जिन्होंने 2018, 2008 और 2004 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को नंबर वन पार्टी बनाया. यह येदियुरप्पा ही हैं जिन्होंने 2004 की विधानसभा में पहले कांग्रेस के धरम सिंह और बाद में जेडीएस के कुमारस्वामी की सरकारों के पतन का रास्ता तैयार किया. येदियुरप्पा इस बार भी खामोश नहीं रहेंगे. उनकी अगली बाजी का इंतजार कीजिए.