Father's Day 2022: पिता एक ऐसा भारी-भरकम शब्द, जिसे सुनकर ही आंखों के सामने जिम्मेदारियों, गुस्से और सख्त मिजाजी की तस्वीर तैरने लगती है. पिता, जिससे बात मनवाने के लिए बच्चे मां की मिन्नतें करते हैं और जब उनकी मां, पिता से बात कर रही होती हैं तो एक कोने में छिपकर खड़े होकर एक आंख से झांकते हुए अपने पापा के एक्सप्रेशन देख रहे होते थे. ये समझने के लिए कि वो हमारी डिमांड पूरी करने वाले हैं या फिर हम पिटने वाले हैं.


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बन चुके हैं बच्चों के बेस्ट फ्रेंड


मगर कहते हैं न अपवाद हर चीज में होते हैं और फिर अब जमाना भी बहुत बदल गया है. आज के पापा बच्चों के लिए डरने वाले शख्स न होकर उनके बेस्ट फ्रेंड बन चुके हैं. अब बच्चे, चाहे वो लड़की हो या लड़का, अपने पापा से वो सब बातें बहुत सहज तरीके से कर पाते हैं, जो वो अपनी मां से भी शेयर नहीं कर पाते.
कुणाल यादव एक ऐसे ही पिता हैं.


बिजनेस एंपयार के साथ बच्चों के संभालते हैं


आज फादर्स डे के मौके पर हम आपको कुणाल यादव से मिलाने जा रहे हैं. ये एक ऐसी शख्सियत जो एक सफल बिजनेसमैन, एक शानदार एथलीट, एक सपोर्टिव पति होने के साथ–साथ अपने बच्चों के बेस्ट फ्रेंड हैं. कुणाल के तीन छोटे-छोटे प्यारे से बच्चे हैं, जिसमें एक तो अभी बोलना सीख रहा है. एक बड़े बिज़नेस एंपायर को संभालने के जिम्मेदारी बखूबी निभाने के साथ ही कुणाल अपने परिवार को समय देना नहीं भूलते. यूं तो ये क्वालिटी एक अच्छी मां में देखी जाती हैं कि वो नौकरी के साथ-साथ अपने घर-परिवार और बच्चों को भी देखे. कुणाल भी एक ऐसे ही लाजवाब पिता है.


ऐसे बिताते है क्वालिटी टाइम


कारोबारी व्यस्तताओं के बीच परिवार के साथ समय बिताने के लिए उन्होंने अपना ही तरीका निकाला है. वे अपने साथ बच्चों को जिम लेकर जाते हैं, उनके साथ क्रिकेट खेलते हैं. उन्हें अपनी छोटी- छोटी एक्टिविटीज में शामिल करते हैं, जिससे बच्चे उनके नज़दीक रहें और उन्हें पिता की कमी महसूस न हो.


बांट लेते हैं जिम्मेदारियां


वैसे तो कुणाल और उनकी पत्नी दोनों ही बिज़नेसमैन हैं, लेकिन उनकी व्यस्तताओं का असर बच्चों की परवरिश पर न आए इसके लिए उन्होंने प्रॉपर पैरेंटिंग प्लान तैयार किया है. दोनों अपने शेड्यूल के मुताबिक़ प्रतिदिन बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियां इस हिसाब से बांट लेते हैं जिससे उनके काम पर ज़्यादा असर भी न पड़े और बच्चों को मां, पिता अथवा दोनों का प्रॉपर टाइम और अटेंशन मिल सके.


ऐसी है परवरिश


ऐसा नहीं है कि कुणाल बच्चों को डांटते नहीं हैं, लेकिन उनका तरीका इतना सहज और दोस्ताना है कि बच्चे उनकी बात को आसानी से समझ भी जाते हैं और अनुशासन में भी रहते हैं. उनका 12 साल की बेटी कहती है कि मुझे कुछ प्रॉब्लम होती है या कुछ चहिये होता है तो मैं सीधे पापा के पास ही जाता हूं, मुझे पता होता है कि यहां मुझे डांट नहीं पड़ेगी.


10 साल की है बेटी


वहीं उनकी बेटी जो कि 10 साल की है, कहती है कि मम्मी बहुत अच्छी हैं लेकिन पापा के कंपेरिजन में थोड़ी स्ट्रिक्ट हैं, इसलिए उनसे कुछ कहो तो वो पहले इनकार ही करती हैं, उन्हें बहुत मनाना पड़ता है, वहीं पापा से कुछ कहा नहीं कि विश पूरी हो जाती है. हमारे पापा वर्ल्ड के बेस्ट पापा हैं. वो हमें बहुत सारी नई नई बातें बताते हैं, सिखाते हैं.


हर फरमाइश नहीं होती पूरी


हालांकि बच्चों की इस बात पर कुणाल मुस्कुराते हुए कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि वो बच्चों की हर फरमाइश पूरी कर देते हैं. वो आगे बताते हैं कि "मैं डिमांड्स से ज़्यादा रिवार्ड्स पर ज़ोर देता हूं क्योंकि इससे बच्चों में कुछ कर के कुछ पाने की भावना का विकास होता है."