How 'Wrinkles Achhe Hain' Campaign Can Fight Climate Change: रिंकल्स का नाम सुनते ही आपके जेहन में झुर्रियों वाला चेहरा नजर आने लगता है, लेकिन ये वो रिंकल्स नहीं है जैसा कि आप सोच रहें. दरअसल 'काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च' (Scientists of Council of Scientific and Industrial Research) यानी सीएसआईआर (CSIR) के साइंटिस्ट ने एक 'रिंकल्स अच्छे हैं' कैंपेन चलाया है जिसके तहत हर कर्मचारी को सोमवार के दिन बिना आयरन किए हुए कपड़े पहनने हैं, इससे आप इनडायरेक्ट रूप से धरती को फायदा पहुंचाना है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

पर्यावरण को बचाने की मुहिम


सीएसआईआर के मुताबिक 'रिंकल्स अच्छे हैं' इस कैंपेन से एनर्जी बचाने में मदद मिलती है. इस संस्थान ने एक्स अकाउंट पर पोस्ट करते हुए लिखा, "आइए हम क्लाइमेटिक चेंज को आयरन ऑउट करते हैं न कि अपने कपड़े को." जाहिर सी बात है कि लाखों करोड़ों लोग इस प्रैक्टिस को अपनाएं तो काफी पॉजिटिव चेंजेज आ सकते हैं. एक अनुमान के मुताबिक एक जोड़ी कपड़े आयरन करने पर 200 ग्राम कार्बन का उत्सर्जन होता है.


 




कपड़े आयरन न करने से क्या होगा?


सीएसआईआर और प्रयोगशालाओं के अपने विशाल नेटवर्क, जो मौजूदा वक्त में 1 से 15 मई तक 'स्वच्छता पखवाड़ा' (Swachta Pakhwada) मना रहे हैं, ने अपनी पहली महिला डायरेक्टर जनरल डॉ. एन कलाइसेल्वी (Dr. N Kalaiselvi) की लीडरशिर में 'रिंकल्स अच्छे हैं' कैंपेन शुरू किया है, जिन्होंने कई एनवायरनमेंट फ्रैंडली उपायों की शुरुआत की है. एक मीडिया इंटरव्यून में, उन्होंने कहा कि कपड़ों के हर सेट को आयरन करना कार्बन डाइऑक्साइड इमिशन के बराबर है. उन्होंने कहा कि बिना इस्त्री वाले कपड़े पहनकर कुछ हद तक इस तरह के उत्सर्जन को रोका जा सकता है. भारत में इलेक्ट्रिसिटी प्रोडक्शन का मेजर सोर्स कोयला है इसलिए अगर आप बिजली बचाएंगे तो कहीं न कहीं कोयले की खपत को कम करेंगे, जिससे कार्बन इमिशन भी घटेगा.



हालांकि सीएसआईआर की पहल प्रतीकात्मक है, यह कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन से लड़ने में मदद करने के लिए युवा वैज्ञानिकों को ग्रीन टेक्नोलॉजी में नयापन लाने के लिए प्रेरित करती है. अन्य ऊर्जा-बचत उपायों में, डॉ. कलाइसेल्वी के नेतृत्व वाला सीएसआईआर अपनी प्रयोगशालाओं में 10% बिजली की खपत को कम करने की भी योजना बना रहा है. हाल ही में, CSIR मुख्यालय की इमारत के ऊपर भारत की सबसे बड़ी जलवायु घड़ी स्थापित की गई थी.