भारत के लोगों की बदलती लाइफस्टाइल, अनहेल्दी खान-पान की आदतें (जैसे कि अधिक मीठा, तला हुआ और प्रसंस्कृत भोजन का सेवन) और तनावपूर्ण जीवन के कारण गंभीर बीमारी के ओर जा रहे हैं. यहीं कारण है कि भारत धीरे-धीरे 'डायबिटीज की राजधानी' बनती जा रही है. एक स्टडी के अनुसार, 2030 तक भारत में करीब 10 करोड़ लोगों को डायबिटीज हो सकता है, जो एक चिंता का विषय है. 


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डायबिटीज में खून में ग्लूकोज (ब्लड शुगर) का स्तर बढ़ जाता है, जो दिल की बीमारियां, किडनी फेलियर और दृष्टि समस्याओं जैसी गंभीर स्वास्थ्य चुनौतियों का कारण बन सकता है. टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों के लिए डाइट एक महत्वपूर्ण तरीका है, जिससे ब्लड शुगर को कंट्रोल किया जा सकता है, लेकिन डाइट में बदलाव करना और इसे मैनेज करना सभी के लिए आसान नहीं होता.


ऑस्ट्रेलिया में एक नए अध्ययन ने ब्लड शुगर को कंट्रोल करने के लिए एक नई तरीका 'टाइम-रिस्ट्रिक्टेड ईटिंग' (T.R.E) की प्रभावशीलता का आकलन किया है. यह तरीका खाने के समय को सीमित करने पर ध्यान केंद्रित करती है, न कि क्या खाया जाए या कितनी मात्रा में. शोध में पाया गया कि यह तरीका डायटीशियन द्वारा दिए गए डाइट प्लान जितनी ही प्रभावी हो सकती है और लोगों के लिए आसान और अपनाने योग्य है.


क्या है टाइम-रिस्ट्रिक्टेड ईटिंग?
टाइम-रिस्ट्रिक्टेड ईटिंग में प्रतिदिन एक निश्चित समय-सीमा में खाना शामिल होता है. उदाहरण के लिए, सुबह 11 बजे से शाम 7 बजे के बीच ही भोजन करना और बाकी समय में उपवास रखना. यह विधि शरीर की सर्केडियन रिदम के साथ मेल खाती है, जिससे मेटाबॉलिज्म बेहतर हो सकता है. टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों में सुबह के समय ब्लड शुगर अधिक होता है, और इस तरीके में नाश्ता देर से करने से शारीरिक गतिविधि के जरिए इसे कम करने में मदद मिलती है.


अध्ययन की प्रमुख बातें
इस अध्ययन में 52 टाइप 2 डायबिटीज मरीजों को शामिल किया गया, जिन्हें दो समूहों में बांटा गया. एक समूह को एक्रेडिटेड डाइटिशियन से डाइट सलाह दी गई, जबकि दूसरे को केवल एक नौ घंटे की खाने की विंडो दी गई. छह महीने के बाद, दोनों समूहों में ब्लड शुगर में कमी देखी गई. हालांकि, टाइम-रिस्ट्रिक्टेड ईटिंग वाले मरीज इसे अपनाने में अधिक सहज पाए गए.


लाभ और चुनौतियां
टाइम-रिस्ट्रिक्टेड ईटिंग में चुनौती के रूप में सामाजिक और काम प्रतिबद्धताएं सामने आईं, लेकिन यह तरीका सरल और पालन करने में आसान है. इसके जरिए डायबिटीज के मरीज बिना अपने खाने की क्वालिटी में बदलाव किए, समय पर कंट्रोल कर सकते हैं. साथ ही, यह भोजन का एक ऐसा तरीका है जिसे विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के लोग आसानी से अपना सकते हैं.